बंगाल में मां, माटी-मानुष का बरसा TMC पर प्रेम, BJP के वोट बैंक में लगी सेंध
पश्चिम बंगाल में सात चरणों में हुए लोकसभा चुनाव के रुझानों में तृणमूल कांग्रेस, बीजेपी से आगे चल रही है.
West Bengal Election Result 2024: पश्चिम बंगाल में सात चरणों में हुए लोकसभा चुनाव के रुझानों में तृणमूल कांग्रेस, बीजेपी से आगे चल रही है. इस बार राज्य का लोकसभा चुनाव कई मायनों में अनोखा रहा. किसी भी पार्टी या व्यक्ति विशेष के पक्ष में कोई स्पष्ट लहर दिखाई नहीं दी. वहीं, मतदाताओं के एक बड़े हिस्से में चुप्पी के कारण यह ठीक से पता लगाना असंभव हो गया कि लहर किस पार्टी के पक्ष में है. एक तरफ भ्रष्टाचार और कुशासन के आरोपों से घिरी सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस थी और दूसरी तरफ मुख्य विपक्षी दल भाजपा, जिसका जमीनी स्तर पर अपेक्षाकृत कमजोर संगठन है. ऐसे में बीजेपी ने सत्तारूढ़ पार्टी की विफलताओं और उसके खिलाफ सत्ता विरोधी लहर पर अधिक फोकस किया. लेकिन वह इसे जनता तक पहुंचाने में कामयाब नहीं हो पाई.
राज्य के मुद्दे हावी
इस बार के चुनाव में विश्लेषकों के पूर्वानुमानों में एकरूपता नहीं रही. कुछ भाजपा की जीत के बारे में आश्वस्त थे तो कुछ हार के बारे में. कई लोगों ने करीबी मुकाबले की भी भविष्यवाणी की थी. उनका कहना था कि कभी इतना चुप मतदाता नहीं देखा. बंगाल के इस चुनाव में इस बार राष्ट्रीय मुद्दों की बजाय राज्य के मुद्दे अधिक हावी दिखाई दिए. सत्तारूढ़ पार्टी के स्थानीय नेताओं द्वारा कथित अत्याचारों के खिलाफ संदेशखाली में महिलाओं का आंदोलन, स्कूल सेवा भर्ती घोटाला, पीडीएस घोटाले को बीजेपी ने हथियार बनाकर चुनाव में खूब इस्तेमाल किया.
कल्याणकारी योजनाएं
वहीं, तृणमूल ने अपनी कल्याणकारी योजनाओं पर ध्यान केंद्रित किया, जिसने उसे वर्षों से भरपूर चुनावी लाभ दिया है. लेकिन सही मायनों में तृणमूल का भविष्य केवल दो मुद्दों पर ही टिका था. इनमें लक्ष्मी भंडार योजना (राज्य की गरीब महिलाओं के लिए मासिक भत्ता) और मुस्लिम मतदाताओं का समर्थन शामिल है.
ध्रुवीकरण
तृणमूल और भाजपा दोनों के लिए यह चुनाव अस्तित्व की लड़ाई रही है. दोनों दलों के समर्थकों के बीच यह भावना रही है कि इस मुकाबले में जो भी पराजित होगा, वह फिलहाल राज्य में अपनी राजनीतिक पकड़ खो देगा. हालांकि, राजनीतिक पर्यवेक्षक इस बात पर सहमत थे कि पश्चिम बंगाल में चुनावों में धार्मिक आधार पर इतना तीव्र ध्रुवीकरण कभी नहीं देखा गया. तृणमूल और भाजपा के शीर्ष नेताओं- ममता बनर्जी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने भाषणों में धर्म के मुद्दे को उठाकर इस मुद्दे को और भी तीखा बना दिया.
सीएए
इस बार बंगाल की राजनीति में धार्मिक आधार पर ध्रुवीकरण अब तक का सबसे ज़्यादा रहा है. पिछले लोकसभा चुनाव में हिंदू मतदाताओं के बीच भाजपा का वोट शेयर लगभग 54 प्रतिशत था. बीजेपी को इस बार यह बढ़कर 60 प्रतिशत होने की उम्मीद थी. इसी वजह से केंद्र ने चुनाव से ठीक पहले सीएए को लागू किया था. हालांकि, बंगाल के मतदाताओं ने सीएए को पूरी तरह से नकार दिया.