MVA में सीएम फेस कौन ? पवार के पावर से क्या ठाकरे गुट के सुर पड़े नरम
महाराष्ट्र में महाविकास अघाड़ी और महायुति आमने सामने हैं। लेकिन सीएम पद को लेकर दिलचस्प लड़ाई महाविकास अघाड़ी में है।उद्धव गुट सीएम चेहरे को सामने लाने की मांग कर रहा है।
MVA CM Face: महाराष्ट्र में विधानसभा चुनाव का ऐलान होने में एक महीने का समय बचा है लेकिन सियासी सरगर्मी जोरों पर है। एनडीए और इंडिया दोनों गठबंधन अपने ढीले पेंच कस रहे हैं और जीत के संभावित सभी समीकरणों को साधा जा रहा है लेकिन सबसे बड़ा सवाल महाविकास अघाड़ी यानी MVA के सीएम फेस पर है। सीएम का चेहरा कौन बनेगा। इस पर शिवसेना उद्धव गुट, कांग्रेस और एनसीपी की राय बंटी हुई है। उद्धव गुट चाहता है कि चुनाव और सीट बंटवारे से पहले उद्धव ठाकरे को सीएम पद का उम्मीदवार घोषित कर दिया जाए लेकिन इसके लिए कांग्रेस और एनसीपी तैयार नहीं है। कांग्रेस और एनसीपी का कहना है कि चुनाव रिजल्ट आने के बाद ही सीएम चेहरे पर फैसला होगा। यानी कि जो दल सबसे ज्यादा सीटें जीतकर आएगा सीएम पद उसे ही मिलेगा
सीएम फेस पर खींचतान
एमवीए में सीएम चेहरे के लिए खींचतान चल रही है। सीएम फेस बनने की सबसे ज्यादा बेचैनी उद्धव ठाकरे की है। चुनावी रणनीतिकार मानते हैं कि चुनावी चैनौतियों और खिसकती सियासी जमीन ने उद्धव ठाकरे की मुश्किलें बढ़ गई हैं। इसलिए वह चाहते हैं कि अभी से उन्हें सीएम पद का उम्मीदवार घोषित कर दिया जाए। लोकसभा चुनाव के बाद उन्हें अपनी घटती राजनीतिक ताकत का अहसास हो गया है। लोकसभा चुनाव के बाद एमवीए के भीतर समीकरण तेजी से बदल रहे हैं। लोकसभा चुनाव में उद्धव ठाकरे की शिवसेना ने सर्वाधिक 21 सीटों पर चुनाव लड़ा लेकिन वह केवल 9 सीटें ही जीत पाई जबकि कांग्रेस ने 17 में से 13 सीटें और शरद पवार की एनसीपी 10 में से 8 सीटें जीतने में सफल हुई। जीत के स्ट्राइक रेट में कांग्रेस-एनसीपी के मुकाबले उद्धव गुट पिछड़ गया।
ठाकरे गुट क्यों दे रहा जोर
दरअसल, राजनीति और गठबंधन में आपका कद आपके बयानों से नहीं बल्कि जीत से बढ़ता है। इस कसौटी पर अगर देखें तो एमवीए में सबसे कमजोर दल अभी अगर कोई है तो वह है उद्धव गुट शिवसेना (यूबीटी) की स्थिति कमजोर होने की वजह से उद्धव ठाकरे की मुख्यमंत्री पद की दावेदारी भी सवालों के घेरे में आ गई है। बताया जा रहा है कि कांग्रेस ने हाल ही में एक सर्वे कराया है।इस सर्वे में उद्धव ठाकरे की लोकप्रियता कम होना बताया गया है। इसके बावजूद उद्धव ठाकरे सीएम पद से कोई समझौता करने के मूड में नहीं दिखाई दे रहे हैं। कांग्रेस को मनाने और समझाने के लिए वह दिल्ली तक चले गए।दिल्ली में उन्होंने कांग्रेस नेतृत्व से मुलाकात की और मुख्यमंत्री पद के फॉर्मूले में बदलाव की मांग की। उनका तर्क है कि सबसे अधिक सीटें पाने वाली पार्टी को मुख्यमंत्री पद देने का परंपरागत फॉर्मूला गठबंधन को कमजोर करता है।
उद्धव ने कहा कि इस फॉर्मूले के तहत गठबंधन के हर दल में अधिक से अधिक सीटों की मांग की होड़ लग जाती है। जिससे चुनाव के बाद स्थिति और जटिल हो जाती है। उन्होंने कांग्रेस नेतृत्व से यह सुनिश्चित करने की मांग की कि अगर एमवीए विधानसभा चुनाव जीतता है, तो उन्हें मुख्यमंत्री पद मिलना चाहिए लेकिन उद्धव अपनी इस दलील से कांग्रेस और एनसीपी दोनों को भरोसे में नहीं ले पाए हैं। दो दिन पहले शरद पवार ने स्पष्ट रूप से कह दिया कि एमवीए से सीएम चेहरा कौन होगा, इस पर फैसला चुनाव परिणाम आने के बाद होगा। अगले दिन महाराष्ट्र कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष नाना पटोले भी पवार के सुर में सुर मिलाते दिखे। पटोले ने भी एनसीपी नेता की कही हुई बात को दोहराया।
पवार के पावर के आगे बेदम
सीएम फेस पर कांग्रेस और एनसीपी का यह रुख उद्धव गुट पर दबाव बनाते हुए दिखा कल तक सीएम चेहरे पर अड़ी रहने वाला उद्धव गुट कांग्रेस और एनसीपी के हां में हां मिलाते हुए दिखा। शिवसेना नेता संजय राउत ने कहा कि सीएम फेस पर फैसला चुनाव नतीजों के बाद ही होना चाहिए लेकिन उन्होंने इसमें किंतु-परंतु जोड़ दिया। राउत ने कहा कि जनता के मन में सीएम फेस पहले से ही है वह इसे ही चुनेगी। जाहिर है कि उद्धव गुट सीएम पद का मोह छोड़ नहीं पा रहे हैं दरअसल, यह मोह नहीं छोड़ पाने की वजह भी है। उद्धव ठाकरे को एहसास हो गया है कि अगर उन्हें मुख्यमंत्री का चेहरा घोषित किया जाता है, तो ही वह अपनी पार्टी के नेताओं और समर्थकों को एकजुट रख पाएंगे क्योंकि एकनाथ शिंदे लगातार उनके जमीनी स्तर के नेताओं को तोड़कर अपनी तरफ खींच रहे हैं।
शिंदे भी अब बड़ी चुनौती
पिछले चुनावों में शिवसेना ने नारायण राणे और राज ठाकरे जैसे नेताओं की चुनौतियों का सामना किया है लेकिन अब एकनाथ शिंदे की चुनौती सबसे बड़ी है शिंदे न केवल 40 बागी विधायकों को अपने साथ रखने में सफल रहे हैं बल्कि उन्होंने और भी नेताओं को अपने पक्ष में कर लिया है। उन्होंने लोकसभा की 7 सीटें भी जीतीं जो उद्धव की तुलना में महज 2 सीटें कम हैं। यही नहीं कांग्रेस और एनसीपी भी उद्धव को सीएम उम्मीदवार घोषित करने पर होने वाले खतरे और नुकसान को भांप रहे हैं। उन्हें लगता है कि उद्धव को अभी से अगर मुख्यमंत्री पद का चेहरा घोषित कर दिया जाता है तो भाजपा खासकर हिंदुत्व के मुद्दे पर उन पर जोरदार हमला करेगी...यह कांग्रेस और एनसीपी के सेक्युलर वोट बैंक के लिए मुश्किलें खड़ी कर सकता है। उद्धव से अपनी दावेदारी छोड़ती नहीं बन रही है। कांग्रेस-एनसीपी ने अपना रुख साफ कर दिया है। ऐसे में एमवीए में मुख्यमंत्री का चेहरा यक्ष प्रश्न बन गया है। इस चुनाव में सबसे बड़ी चुनौती उद्धव ठाकरे के ही सामने है। चुनाव में जीत और हार उनके लिए बहुत कुछ लेकर आएगा।