जरांगे के यू टर्न से महाराष्ट्र में किसे हो सकता है फायदा, रोचक है चुनावी गणित

महाराष्ट्र विधानसभा का चुनाव इस दफा बेहद दिलचस्प है। मराठा आरक्षण के लिए आंदोलन चलाने वाले मनोज जरांगे का यू-टर्न लेना सुर्खियों में है।

By :  Lalit Rai
Update: 2024-11-04 08:12 GMT

Maharashtra Elections 2024:  महाराष्ट्र की सभी 288 सीटों के लिए चुनाव 20 नवंबर को एक चरण में कराया जाएगा। 4 नवंबर के बाद प्रचार की रफ्तार और तेज हो जाएगी क्योंकि आज नाम वापसी की आखिरी तारीख है। नाम वापसी के बाद तस्वीर पूरी तरह इस मायने में साफ होगी कि किस दल के बागी सबसे अधिक चुनाव मैदान में तो किसके बागी सिरदर्द अधिक देंगे। नाम वापसी वाले दिन तीन बड़ी खबरें आईं। पहली खबर मराठा आरक्षण(Maratha Reservation) की लड़ाई लड़ने वाले मनोज जरांगे(Manoj Jarange) से जुड़ी है। दूसरी खबर एनकाउंटर स्पेशलिस्ट प्रदीप शर्मा की पत्नी से जुड़ी है उन्होंने अपना नाम वापस ले लिया। तीसरी खबर बोरीवली से बीजेपी के बागी गोपाल शेट्टी से जुड़ी हुई है उन्होंने भी अपना नाम वापस ले लिया है। 

चुनावी लड़ाई से जरांगे हुए बाहर
जरांगे ने निर्दलीय मराठा उम्मीदवारों से आज अपना नामांकन वापस लेने की अपील की है। जालना के अंतरवाली सरती गांव में कहा कि केवल एक समुदाय के आधार पर चुनाव लड़ना संभव नहीं है। दलित और अन्य संगठनों से सहयोगियों की सूची समय पर नहीं आई। महाविकास अघाड़ी (Maha Vikas Aghadi) ने बेहद सधी प्रतिक्रिया में कहा कि यह मुख्य रूप से एक सामाजिक आंदोलन था और लोकतंत्र में सभी को अपना निर्णय लेने का अधिकार है। श्री जरांगे का चुनावी प्रक्रिया में भाग न लेने का निर्णय उनकी पिछली रणनीति से एक बड़ा बदलाव है। क्योंकि उन्होंने कुछ निर्वाचन क्षेत्रों की पहचान की थी जहाँ वे कुछ उम्मीदवारों का समर्थन या विरोध करने का इरादा रखते थे। ऐसा माना जाता है कि जरांगे का प्रभाव करीब 35 विधानसभाओं में है। मनोजर जरांगे के चुनावी मैदान से हटने पर महायुति ने स्वागत किया है। बता दें कि जरांगे महायुति की सरकार को लेकर कुछ अधिक तीखे बोल बोलते रहे हैं। 

कौन हैं मनोज जरांगे

  • मूल रूप से बीड जिले के रहने वाले।
  • जरांगे-पाटिल विवाह के बाद जालना जिले के शाहगढ़ में बस गए।
  • करीब 15 साल पहले सरकारी नौकरियों और शिक्षा में मराठा समुदाय के लिए आरक्षण के आंदोलन में शामिल हुए।
  • अपनी दैनिक जरूरतों को पूरा करने के लिए अपनी चार एकड़ में से 2.5 एकड़ कृषि भूमि भी बेच दी।
  • शुरुआत में कांग्रेस के लिए काम किया।
  • मराठा आरक्षण के लिए विरोध प्रदर्शन शिवबा संगठन बनाया। 

क्या कहते हैं जानकार
सवाल यह है कि जरांगे का चुनावी मैदान से हटना किसके लिए फायदे का सौदा रहेगा। महाराष्ट्र की राजनीति(Maharashtra Assembly Elections 2024) पर नजर रखने वाले कहते हैं कि इसमें दो मत नहीं कि जो भी सरकार में हैं वो जरांगे का विरोधी है। मराठा आरक्षण की मांग पर उनका नजरिया यह रहा है कि सत्तासीन दल कुछ खास नहीं किए। यह मामला अदालत में गया तो वहां बात सही ढंग से नहीं रखी गई। ऐसे में स्वाभाविक है वर्तमान सरकार से ही खिलाफत होती। लेकिन एक सच यह भी है कि आप किसी विषय को लेकर लंबे समय तक आंदोलन चला सकते हैं। अगर आंदोलन का स्वरूप समाज के हर धड़े से जुड़ा है तो आपकी स्वीकार्यता बनेगी। लेकिन जब आप किसी खास समाज के लिए आंदोलन करते हैं तो जाहिर सी बात है कि सामाजिक दायरा कम होगी। आंदोलन के जरिए सुर्खियों में बने रह सकते हैं। लेकिन जब बात चुनावी लड़ाई की होती है तो संगठन का होना बेहद जरूरी होता है।  जरांगे के बाहर होने से राहत करीब करीब सभी राजनीतिक दलों को होगी। लेकिन महायुति (Mahayuti Politics) के लिए यह राहत भरी खबर आई है। 

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