सुलतानपुर में कौन बनेगा सुल्तान, मेनका गांधी के सामने क्या है चुनौती
आम चुनाव 2024 में बीजेपी ने एक बार फिर मेनका गांधी पर भरोसा जताया है. बता दें कि 2019 से अलग सपा और बीएसपी अलग अलग चुनाव लड़ रहे हैं.
Sultanpur Loksabha News: दिल्ली का रास्ता लखनऊ से गुजरता है. भारतीय राजनीति में इस वाक्य को आप सब अक्सर सुनते होंगे. दरअसल इसके पीछे वजह भी है. यूपी में लोकसभा की कुल 80 सीटें हैं. ये 80 सीटें किसी भी राजनीतिक दल के दिल्ली की कुर्सी पर काबिज होने के लिए अहम है. इन्हीं 80 सीटों में एक सीट सुलतानपुर की है. इस सीट पर 2019 में मेनका गांधी बीजेपी से सांसद रही हैं और एक बार फिर चुनावी किस्मत आजमा रही हैं. सवाल यह है कि क्या वो एक बार फिर यहां से झंडा गाड़ने में कामयाब होंगी. या नतीजा कुछ और होगा. इन सबके बीच हम आपको बताएंगे कि 2022 के विधानसभा चुनाव में कौन दल आगे रहा. इस लोकसभा में सुलतानपुर, जयसिंहपुर सदर, लंभुआ, कादीपुर और इसौली है.
सुलतानपुर का समीकरण
अब नजर डालते हैं कि यहां कुल मतदाताओं पर. कुल वोटर्स की संख्या 18 लाख के करीब है जिसमें पुरुष और महिला मतदाता करीब करीब बराबर हैं. 2019 में इस सीट से मेनका गांधी के बेटे वरुण गांधी को जीत हासिल हुई थी. उन्होंने बहुजन समाज पार्टी के पवन पांडेय को करीब 1 लाख 90 हजार मतों से हराया था. लेकिन 2019 में इस सीट पर बीजेपी ने मेनका गांधी को मौका दिया. मेनका गांधी जीत हासिल करने में कामयाब तो रहीं लेकिन जीत का अंतर सिर्फ 15 हजार का था. मेनका गांधी ने बीएसपी के चंद्रभद्र सिंह को हराया था. अगर विधानसभा की बात करें तो चार सीट पर बीजेपी और एक सीट पर सपा का कब्जा है. इस लिहाज से आप बीजेपी को मजबूत भूमिका में मान सकते हैं. लेकिन यह जरूरी नहीं है कि कोई पार्टी विधानसभा में बेहतर प्रदर्शन दिखाने में कामयाब रही हो तो वो लोकसभा में भी बेहतर प्रदर्शन कर सकेगी.
- कुल वोटर्स- करीब अठारह लाख
- पुरुष मतदाता- साढ़े नौ लाख के करीब
- महिला मतदाता- साढ़े आठ लाख के करीब
- ओबीसी वर्ग के मतदाता(गैर यादव) 15 प्रतिशत, मुस्लिम मतदाता 19 प्रतिशत, निषाद मतदाता 10 प्रतिशत दलित मतदाता 22 प्रतिशत, सवर्ण मतदाता 15 प्रतिशत, यादव मतदाता 9 प्रतिशत
मेनका गांधी के लिए जाति कितनी बड़ी चुनौती
मेनका गांधी की राह में जाति बाधक है या सहायक. इसे लेकर जानकारों की राय बंटी हुई है. कुछ लोग कहते हैं कि जाति का असर तो है. अगर ऐसा नहीं होता तो 2019 में जीत का फासला कम नहीं होता. हालांकि कुछ लोग कहते हैं कि अगर आप 2014 के नतीजों से तुलना करें तो पाएंगे कि बीजेपी के वोटों में बढ़ोतरी हुई है. जहां तक मेनका गांधी की बात है कि उन्हें लोग गांधी परिवार के नाम पर वोट देते हैं. लेकिन जिस तरह से सपा और बीएसपी ने जातियों को गोलबंद करने की कोशिश की है उसे आप नकार नहीं सकते हैं. इस दफा सपा ने जहां राम भुआल निषाद को तो बीएसपी ने उदयराज वर्मा को चुनावी मैदान में उतारा है. सुलतानपुर में निषाद और वर्मा जाति के लोगों की अच्छी संख्या है. अगर आप 2014 और 2019 में विपक्ष के उम्मीदवारों को देखें तो पवन पांडेय और चंद्रभद्र सिंह दोनों अगड़ी जाति से थे.
सुलतानपुर में क्या हैं मुद्दे
अगर मेनका गांधी चुनाव जीतने में कामयाब होती हैं तो वो सातवीं बार संसद का हिस्सा बनेंगी. इम सबके बीच हम आपको बताएंगे कि सुलतानपुर के मुद्दे क्या हैं. जब तक अमेठी इस जिले का हिस्सा था तो औद्योगिक तौर पर यह अगड़ा जिला था. लेकिन अमेठी के अलग होने के बाद यह जिला उद्योगविहीन है. लोग यह तो कहते हैं कि योगी राज में कानून- व्यवस्था में सुधार हुआ है लेकिन उद्योग धंधे की कमी खलती है. मूंज से बनने वाला बांध (चारपाई बनाने में इस्तेमाल) यहां का सबसे बड़ा कारोबार है, ओडीओपी के तहत इसका चयन भी किया गया है. लेकिन कारोबारी कहते हैं इस पर और ध्यान देने की जरूरत है.