मायावती का क्यों आम चुनाव से हो चुका है मोह भंग, 5 प्वाइंट्स में समझें
यूपी की सियासत में बीएसपी का आधार अब पहले जैसा नहीं है. लेकिन मायावती कहती हैं कि उनकी आवाज को दरकिनार नहीं किया जा सकता. क्या इसके पीछे कोई आधार है,
Mayawati News: आम चुनाव 2024 में बहुजन समाज पार्टी कितनी ताकतवर होकर उभरेगी उसका फैसला यूपी के नतीजों पर निर्भर करेगा. अगर 2014 के नतीजों को देखें तो पार्टी के खाते में शून्य सीटें आईं थीं. हालांकि 2019 में समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन का फायदा बीएसपी को मिला और 10 सीटें मिलीं. यह बात अलग है कि मायावती ने सपा पर वोट ट्रांसफर ना करा पाने का आरोप लगाया. हालांकि जानकार कहते हैं कि अगर सपा का वोट ट्रांसफर न हुआ तो 10 सीट नहीं मिलती. इन सबके बीच आम चुनाव 2024 की करेंगे. इस चुनाव में बीएसपी बिना किसी गठबंधन चुनाव में है. पहले तीन चरण के चुनाव संपन्न हो चुके है. तीसरे चरण के चुनाव के बाद ही मायावती ने एक बड़ा फैसला लेते हुए अपने भतीजे आकाश आनंद को ना सिर्फ नेशनल को ऑर्डिनेटर के पद से हटाया बल्कि उत्तराधिकार से भी रुखसत कर दिया. वजह राजनीतिक परिपक्वता बता डाला. लेकिन क्या बात सिर्फ यही है या वास्तव में लोकसभा चुनाव से मोहभंग होता जा रहा है.
मायावती के मोहभंग के पीछे की पांच वजहें
- सियासत में सामान्य तौर पर यह कहावत है कि सभी पत्तों को एक साख ना खोलो. समय का इंतजार करो. लेकिन यदि आप सही समय की पहचान नहीं कर पा रहे हों को उन पत्तों का क्या करेंगे, ऐसा बताया जा रहा है कि 2027 में होने वाले विधानसभा चुनाव के मद्देनजर मायावकी फ्रंट फुट पर खेलने से बच रही हैं. लेकिन यहीं अहम सवाल यह है कि अगर आप अपने विरोधियों को मजबूत होने का मौका देंगे तो अगली लड़ाई आसान कहां रहने वाली है.
- अगर आप 2019 के नतीजों पर ध्यान दें तो बीएसपी के कुल 10 सांसद चुन कर आए. लेकिन 2024 तक आते आते ज्यादातर सांसदों ने पाला बदल लिया. अधिकतर सांसदों ने सपा के साइकिल की सवारी की. मायावती को लगता है कि सबसे पहले काम तो यह है कि उनकी जीत से अधिक सपा के उभार को रोकना जरूरी है. अगर आप उनके प्रचार के तौर तरीके, उम्मीदवारों के चयन को देखें तो उनका मकसद सिर्फ और सिर्फ समाजवादी पार्टी को नुकसान पहुंचाना है. उन्हें ऐसा लगता है कि जमीन पर समाजवादी पार्टी जितना कमजोर होगी. 2027 में वो बीजेपी के मुकाबले वो ताकतवर होंगी. हालांकि यह सच्चाई है कि 2022 के विधानसभा चुनाव में बीएसपी को महज एक सीट मिली थी.
- 2019 के नतीजों को देखें तो बीएसपी के खाते में 10 सीट गई थी. हालांकि मायावती को लगता है कि सपा के लोगों ने उतनी मेहनत नहीं की. लेकिन यदि सपा की सीट को देखेंगे तो आप अंदाजा लगा सकते हैं किसे नुकसान अधिक हुआ. 2024 के आम चुनाव में जब सपा और कांग्रेस ने गठबंधन किया तो अखिलेश यादव के खाते में अधिक सीटें आईं. जाहिर सी बात है कि अगर इंडी ब्लॉक को जीत हासिल होती है तो सपा की सीटें अधिक होतीं. स्वाभाविक तौर पर मायावती की नजर में अगर किसी ने धोखा दिया तो वो सपा थी. इसमें आश्चर्य की बात नहीं कि मायावती को लगा होगा कि आकाश सपा के खिलाफ ज्यादा मुखर होंगे लेकिन जमीन पर कुछ और ही हुआ. आकाश आनंद ने बीजेपी को आतंकियों की सरकार तक करार दिया था.
- यूपी की जौनपुर लोकसभा सीट से अंतिम समय में बीएसपी ने श्रीकला सिंह की जगह श्याम सिंह यादव को टिकट दिया. मायावती के इस कदम को माना गया कि इससे बीजेपी की राह आसान हो जाएगी. इससे एक संदेश गया कि मायावती के लिए आम चुनाव 2024 प्राथमिकता में नहीं है. वो किसी भी तरह समाजवादी पार्टी को नुकसान पहुंचाना चाहती हैं ताकि उनकी पार्टी बीजेपी के खिलाफ 2027 में मुख्य मुकाबले में रहे.
- पांचवीं सबसे बड़ी बात, अगर मायावती लोकसभा चुनाव को लेकर संजीदा रहतीं तो वो वाराणसी सीट से शायद उम्मीदवार नहीं उतारतीं. लेकिन अपना प्रत्याशी देकर बीजेपी विरोधी वोटों को काटने की कोशिश की है. बीएसपी मे मुस्लिम कैंडिडेट का मौका दिया है जबकि सपा-कांग्रेस गठबंधन से अजय राय चुनावी मैदान में है. बीएसपी के प्रत्याशी को देखें तो इंडी ब्लॉक की राह आसान नहीं हैं. हालांकि मुस्लिम वोटर्स टैक्टिकल वोटिंग के लिए जाने जाते हैं.
2027 पर मायावती की नजर !
अगर आप मायावती की राजनीति देखें तो वो यूपी की तीन दफा सीएम रहीं. लेकिन पांच साल के कार्यकाल को सिर्फ एक बार पूरा करने में कामयाब हुईं. इसका आंकलन आप ऐसे कर सकते हैं कि राष्ट्रीय स्तर की राजनीति में वो सिर्फ किसी का खेल बना या बिगाड़ सकती हैं, पूर्ण तौर पर सत्ता में हिस्सेदार नहीं हो सकतीं. लेकिन राज्य स्तर की राजनीति में सरकार बनाने में वो खुलकर खेल सकती हैं.