UP के इन फेज में परीक्षा सिर्फ BJP की नहीं, इन चेहरों का भी इम्तिहान
ओम प्रकाश राजभर और संजय निषाद ये दोनों चेहरे योगी आदित्यनाथ सरकार में मंत्री हैं. जहां राजभर समाज पर ओम प्रकाश राजभर वहीं निषादों में संजय निषाद की पकड़ है.
Om Prakash Rajbhar- Sanjay Nishad News: देश के सबसे बड़े सूबे उत्तर प्रदेश में सात चरणों में चुनाव हो रहा है. यहां पर हम 6वें-7वें चरण के चुनाव की बात करेंगे जो पूर्वांचल के इलाकों में होना है. ये वो इलाके हैं जहां 2019 के चुनाव में बीजेपी ने शानदार प्रदर्शन किया था. इस दफा के चुनाव में बीजेपी के सामने जहां एक तरफ कड़ी परीक्षा है वहीं उसके दो सहयोगियों ओम प्रकाश राजभर और संजय निषाद के सामने भी चुनौती कम नहीं हैं. संजय निषाद के बेटे प्रवीण निषाद जहां संत कबीर नगर से चुनावी मैदान में हैं वहीं घोसी से ओम प्रकाश राजभर के बेटे अरुण राजभर किस्मत आजमां रहे हैं. संजय निषाद हों या ओम प्रकाश राजभर दोनों का दावा है कि इस बार नतीजे अलग आएंगे.
ओम प्रकाश राजभर का इतना असर
यूपी में राजभर समाज की आबादी करीब चार फीसद है लेकिन 18 सीटों की गणित बनाने और बिगाड़ने की क्षमता है. इस समाज का ज्यादा असर आजमगढ़, वाराणसी, गोरखपुर, देवीपाटन मंडल में है. घोसी में करीब चार लाख वोटर, सलेमपुर में करीब सवा तीन लाख वोट, गाजीपुर में करीब ढाई लाख, बस्ती में 2 लाख, संतकबीरनगर में करीब 2 लाख, कुशीनगर में 2 लाख, जौनपुर में करीब 2 लाख, अंबेडकर नगर में 2 लाख वोट हैं. अगर इन मतों को देखें तो अनुमान लगा सकते हैं इनका किसी दल से जुड़ना या दूर जाना कितना असर डाल सकता है. पूर्वांचल की राजनीति को करीब से देखने वाले पत्रकार संजय मिश्रा कहते हैं कि अगर आप 2014 से लेकर 2022 के नतीजों को देखें तो राजभर प्रेशर ग्रुप का ही काम करते रहे हैं. वो अपनी ताकत को समझते हैं और उसका इस्तेमाल समय समय पर करते रहे हैं.
संजय निषाद पर क्यों टिकी नजर
अब बात करते हैं कि संजय निषाद की. निषाद जाति में कई उप समुह हैं, जैसे केवट, बिंद, मल्लाह, कश्यप, मांझी और गोंड. यूपी में 20 लोकसभा सीटों पर इनकी संख्या किसी का खेल बनाने या बिगाड़ने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं. इस जाति का असर गोरखपुर, प्रयागराज मंडल के अलावा नदियों के किनारों वाली लोकसभाओं में अधिक है. संजय निषाद की राजनीति भी प्रेशर पॉलिटिक्स की रही है. गोरखपुर के पत्रकार विनोद सिंह सेंगर कहते हैं कि यह बात सही है कि निषाद समाज का असर कुछ लोकसभाओं में है. लेकिन जब इस तरह के सामाजिक आधार वाले दल किसी बड़े राजनीतिक दल से जुड़ते हैं तो उसका संदेश अलग तरह का होता है. बीजेपी को पता है कि निषाद की ताकत कुछ लोकसभाओं तक ही है. लेकिन पूरे प्रदेश में वो यह संदेश देते है कि सामाजिक आधार का दायरा दूसरे दलों से अधिक है.
क्या कहते हैं जानकार
पूर्वांचल की राजनीति पर नजर रखने वाले स्थानीय पत्रकार संजय मिश्रा कहते हैं कि इसमें दो मत नहीं कि इन दोनों चेहरों का प्रभाव है. चाहे बात आप ओम प्रकाश राजभर की करें या संजय निषाद की इस इलाके की कम से कम पांच लोकसभा सीटों की गणित को ये बना-बिगाड़ सकते हैं.लेकिन मौजूदा समय में इनके सामने चुनौती भी है. दोनों के बेटे चुनावी मैदान में हैं. समय समय पर अपने कोर वोटर्स को साधने के लिए अगड़ी जातियों के खिलाफ जहर उगलते रहे हैं. अब अतीत में जो कुछ बातें इन्होंने कही है उसका असर जमीन पर नजर आ रहा है. हालांकि अगर बड़े फलक पर देखें तो मोदी और योगी की लोकप्रियता और उनके लिए सम्मान का भाव अगड़ी जातियों में है लिहाजा इनके खिलाफ चुनाव आते आते नाराजगी खत्म हो सकती है.