क्या NDA का खेल बिगाड़ रहे हैं क्षेत्रीय दल, इन 5 प्वाइंट्स से समझें

आम चुनाव 2024 के औपचारिक नतीजे तो 4 जून को घोषित किए जाएंगे.लेकिन एनडीए और इंडी ब्लॉक की तरफ से बड़े बड़े दावे किए जा रहे हैं.

By :  Lalit Rai
Update: 2024-05-18 01:48 GMT

Loksabha Election News 2024:  आम चुनाव 2024 के चार चरणों का चुनाव संपन्न हो चुका है. अब चुनाव अपने अंतिम चरण की तरफ बढ़ रहा है. एनडीए और इंडी ब्लॉक दोनों तरफ से जीत के दावे किए जा रहे हैं. शुक्रवार को ओडिशा के राउरकेला में गृहमंत्री अमित शाह ने कहा था कि चार चरण के चुनाव के बाद हम 270 के आंकड़े पर हैं और तेजी से टारगेट 400 की तरफ आगे बढ़ रहे हैं. यह बात अलग है कि इंडी ब्लॉक का कहना है कि इस दफा बीजेपी 200 के नीचे रहेगी और सत्ता विपक्ष के हाथ में होगी. यहां हम समझने की कोशिश करेंगे कि क्या वास्तव में क्षेत्रीय दल बीजेपी की गणित गड़बड़ करने का काम रहे हैं.

क्षेत्रीय दलों को मिली ताकत

सियासत के जानकार कहते हैं कि करीब 10 साल के बाद क्षेत्रीय दल मजबूत होकर उभरे हैं, जैसे पश्चिम बंगाल में टीएमसी, बिहार में आरजेडी, ओडिशा में बीजेडी, यूपी में समाजवादी पार्टी टक्कर दे रही है. अगर भारत में क्षेत्रीय दलों के इतिहास को देखें तो इनका जन्म बड़े राष्ट्रीय दलों में टूट फूट से हुआ, इसमें क्षेत्रीय भावना को उभार देने के साथ साथ जातीय गणित पर खासा ध्यान दिया गया, यूपी में सपा-बीएसपी, बंगाल में टीएमसी, बिहार में आरजेडी को उसी रूप में देखा जा सकता है.

400 का नारा हो रहा है बैकफॉयर

नरेंद्र मोदी ने इस दफा 400 पार का नारा दिया है. इसे कई लोग बैकफायर मान रहे हैं यानी कि दांव उल्टा पड़ गया है. कुछ लोगों का मानना है कि इसकी वजह से विपक्ष में जो नैरेटिव सेट किया है कि उसकी वजह से दलित समाज, पिछड़ी जाति और अल्पसंख्यकों को लगता है कि संविधान में बदलाव होगा और उसकी वजह से उन्हें मिलने वाली सुविधाओं पर चोट पहुंचेगी.इसके साथ ही अल्पसंख्यक समाज को लगता है कि बीजेपी जो कि विकास के कैंपेव पर आगे बढ़ रही थी. एकाएक हिंदू मुस्लिम क्यों करने लगी

विपक्ष अब पहले की तुलना में एकजुट

2014-2019 की तुलना में इस दफा विपक्ष एकजुट हुआ है, चुनाव शुरू होने से पहले विपक्ष बिखरा बिखरा नजर आ रहा था. लेकिन उन्हें ऐसा लगता है कि मोदी को सत्ता में आने से रोकने के लिए दलगत विचार को त्याग कर एक मंच पर आना होगा. आप इसे पश्चिम बंगाल की सीएम ममता बनर्जी की एक बात से समझ सकते हैं जब वो ये कहती हैं कि पोस्ट पोल अलाएंस के लिए उनके दरवाजे इंडी ब्लाक के लिए खुले है.

एमबीसी पर भरोसा

इस दफा के चुनाव के बारे में जानकार कह रहे हैं कि आरक्षण का नारा बुलंद कर सत्ता में आने वाले क्षेत्रीय दलों ने पिछड़ी जातियों में भी अति पिछड़ी जाति के सदस्यों को टिकट देकर बीजेपी का काम खराब करने में जुटे हुए हैं. खास तौर से बिहार और उत्तर प्रदेश में चोट पहुंचाने की कोशिश कर रहे हैं. अगर आप 2014 और 2019 के नतीजों को देखें तो बीजेपी ने यहां बेहतर प्रदर्शन किया था. पिछड़ी जातियों में सेंध लगाने के लिए अति पिछड़ी जातियों को मौका दिया. अब जब क्षेत्रीय दल भी उसी रास्ते पर चल पड़े हैं और यह संदेश देने की कोशिश में जुटे हैं कि सही मायनों में अगर कोई उनका हितैषी है तो वो हैं. 

एनडीए के खिलाफ है नाराजगी

सियासी पंडित यह भी कह रहे हैं कि अलग अलग राज्यों में स्थानीय स्तर पर सत्ता विरोधी लहर है. इस लहर पर सवार होकर क्षेत्रीय दल वोटर्स के दिलों में उतरने की कोशिश कर रहे हैं. खासतौर से वो राज्य जहां बीजेपी के सहयोगी सत्ता में है उनके खिलाफ लोगों में आक्रोश है,जैसे आरजेडी का कहना है कि बिहार में नीतीश कुमार के खिलाफ उनकरे पालाबदल नीति से लोग नाराज हैं. उसका असर भी देखा जा सकता है. विपक्षी दलों के साथ मतदाता कदम ताल कर रहे हैं और उसका फायदा हमें जरूर मिलेगा. जिस तरह से एनडीए की सरकार क्षेत्रीय दलों के नेताओं को टारगेट कर रही है उसका फायदा मिल रहा है. क्षेत्रीय दल के नेता खास तौर से अरविंद केजरीवाल और हेमंत सोरेन प्रकरण का जिक्र कर रहे हैं.

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