मिली दो सीट मांग थी पांच की, क्या यूपी में फिर सपा-कांग्रेस की राह होगी अलग

यूपी उपचुनाव में जहां कांग्रेस पांच सीट की मांग कर रही थी वहीं सिर्फ दो सीटें मिली हैं। कांग्रेस को जो दोनों सीट मिली है वहां जीत का स्वाद चखे 2 और 4 दशक बीत चुके हैं।

By :  Lalit Rai
Update: 2024-10-21 06:07 GMT

UP Assembly By Poll 2024:  सियासत में कोई भी रिश्ता स्थाई भाव के साथ नहीं होता है। यानी कि जरूरत के हिसाब से सियासी दल, सियासी चेहरे अपना रंग रूप, चाल ढाल बदलते रहते हैं। क्या कांग्रेस और समाजवादी पार्टी एक साथ मिलकर चुनाव लड़ सकते थे। क्या सपा और बसपा के बीच गठबंधन हो सकता था। लेकिन 2017 में सपा और कांग्रेस के बीच गठबंधन हुआ। दो लड़कों यानी राहुल गांधी और अखिलेश यादव की जोड़ी बनी। लेकिन नतीजों के बाद जोड़ी टूट गई। इसी तरह 2019 में बुआ और भतीजा यानी मायावती और अखिलेश एक साथ आए। लेकिन नतीजों के बाद जोड़ी टूट गई। समय का चक्र आगे बढ़ा सपा के साथ साथ कांग्रेस के रणनीतिकारों को यह बात समझ में आई कि नरेंद्र मोदी और योगी आदित्यनाथ को हराने के लिए एक होना जरूरी है। 2024 के आम चुनाव में दोनों दल एक साथ आए और नतीजा भी बेहतर रहा। लेकिन नतीजों के महज चार महीने बाद रिश्ता बेपटरी होता नजर आ रहा है, वजह यूपी में विधानसभा के लिए होने वाले 10 सीटों पर उपचुनाव है। 

10 में से 9 सीटों पर उपचुनाव
चुनाव आयोग ने 10 में से 9 सीटों के लिए चुनावी तारीख का ऐलान कर दिया है। मिल्कीपुर की सीट पर चुनाव अदालती वजह से नहीं हो रहा है। इन सबके बीच कुल 9 सीटों पर समाजवादी पार्टी ने सात सीटों पर चुनाव लड़ने का फैसला किया है जबकि कांग्रेस को महज 2 सीट मिली है जबकि कांग्रेस पांच सीटों की मांग कर रही थी जिसमें फूलपुर और मझवां सीट थी। लेकिन समाजवादी पार्टी ने उन दो सीटों को कांग्रेस के हवाले किया है जिनमें से कांग्रेस एक सीट पर 44 और दूसरी सीट पर 22 साल पहले चुनाव जीती थी। यानी कि इन दोनों सीटों पर करीब चार दशक और दो दशक से पार्टी को जीत का इंतजार है। 

  • 44 साल पहले कांग्रेस ने खैर सीट जीती थी
  • 22 साल पहले गाजियबाद की सीट कांग्रेस ने जीती थी
  • कांग्रेस की तरफ से पांच सीटों की मांग की गई थी।
  • 2022 के चुनाव में खैर में कांग्रेस प्रत्याशी को महज 1514 वोट मिले थे

समाजवादी पार्टी का तल्ख रवैया
अब सवाल यह है कि कांग्रेस के साथ इतना सख्त सौटा समाजवादी पार्टी ने क्यों किया। इस सवाल का जवाब हरियाणा के चुनाव से जुड़ा हुआ है। हरियाणा चुनाव में गठबंधन धर्म का हवाला देकर पर जब समाजवाादी के नेताओं ने सीट की मांग की तो दीपेंद्र हुड्डा के तेवर सख्त थे। दीपेंद्र हुड्डा ने साफ तौर पर कहा कि यहां समाजवादी पार्टी का जनाधार क्या है। ऐसे में क्या उसी तर्क को समाजवादी पार्टी ने यूपी में दोहराने का काम किया है। समाजवादी पार्टी के समर्थक कहते हैं कि जब सीट जीतने की बात है तो हमें राजनीतिक दल की क्षमता देखनी होगी। यह तो सच्चाई है कि यूपी में कांग्रेस कमजोर है। यहां जितनी भी सीट मिली वो तो सब समाजवादी पार्टी की वजह से ही मिली। हालांकि दोनों दलों के बड़े नेता इस मुद्दे पर बोलने से बचते रहे हैं। 

सियासी नजरिया
इस विषय में सियासी पंडित कहते हैं कि जब राजनीतिक फसल को काट कर ही आपको सत्ता में आना है तो सियासी दल एक दूसरे के दोस्त कब तक बने रह सकते हैं। राजनीति के टाइम फ्रेम में जो सत्ता में है उसके खिलाफ विपक्ष होगा। लेकिन विपक्षी दलों की भी अपनी राजनीति है। अगर बात यूपी की करें तो समाजवादी पार्टी की तुलना में कांग्रेस कमजोर है। लेकिन सच यह भी है कि कांग्रेस भले ही कमजोर हो उसका संगठन तो पूरे प्रदेश में है, हालांकि सक्रियता के स्तर पर वो धार नहीं है। कांग्रेस, समाजवादी पार्टी के सहयोग से पुनर्जीवित हो रही है ऐसे में समाजवादी पार्टी दीर्घकाल की रणनीति को देखकर खाद पानी क्यों देना चाहेगी। ऐसे ही कांग्रेस भी कब तक पिछलग्गू बन कर रहेगा। एक ना एक दिन तो गैंड ओल्ड मैन पार्टी को अपना दम दिखाना ही होगा। यानी कि दोनों को एक दूसरे की जरूरत तो है लेकिन मजबूरी भी है कि दोनों इतना ताकतवर ना बने कि एक दूसरे के सामने उठ खड़े हों।

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