खुद नहीं तो परिवार वाले ही सही, जीत की जुगत में UP के ये बाहुबली

संसद में दाखिल होने का सपना देख रहे यूपी के कुछ बाहुबलियों को झटका लगा है. वो किसी भी तरह से अपने सगे संबंधियों को संसद पहुंचाने की कोशिश में जुट गए हैं.

By :  Lalit Rai
Update: 2024-04-29 06:41 GMT

18वीं लोकसभा के लिए सात चरणों में चुनाव संपन्न होगा. यह चुनाव जहां एनडीए गठबंधन के लिए अहम है तो दूसरी तरफ विपक्ष के लिए भी उतना ही महत्वपूर्ण है. देश के लोकतांत्रिक इतिहास में धनबल, बाहुबल की बात कोई नई नहीं है. देश के सभी सूबों में बाहुबलियों को चुनावी कसरत करते हुए देखा गया है. इन सबके बीच बात हम देश के सबसे बड़े सूबों में से एक उत्तर प्रदेश की सियासत कि करेंगे जहां राजनीति को ये बाहुबली कंट्रोल करते रहे हैं. इन बाहुबलियों में से तो कुछ ऐसे हैं कि जो अब जेल की सलाखों के पीछे हैं. लेकिन जेल के अंदर से राजनीति की पिच पर चौका छक्का मारने की जुगाड़ में हैं.

उत्तर प्रदेश की राजनीति में वैसे तो कई बाहुबली विधानसभा और लोकसभा की शोभा बढ़ा रहे हैं. हालांकि यहां हम बात धनंजय सिंह, अब्बास अंसारी, उदयभान करवरिया, इरफान सोलंकी की करेंगे जो इस समय जेल में हैं लेकिन सियासी पिच बैटिंग और बोलिंग दोनों के जरिए अपनी हनक को कायम रखने की कोशिश करते हुए नजर आ रहे हैं. सबसे पहले यहां हम बात धनंजय सिंह की करेंगे.

धनंजय सिंह

धनंजय सिंह का नाता, यूपी के जौनपुर जिले से है. वो यहां से लोकसभा का प्रतिनिधित्व भी कर चुके हैं. हालांकि 2009 के बाद से वो संसद का हिस्सा नहीं बन सके. सियासत में कदम रखने से पहले इनका नाता जुर्म से रहा. इलाके के लोग कहते हैं कि आपराधिक छवि का फायदा उठाकर इन्होंने अकूत संपदा इकट्ठा की और उसके बाद राजनीतिक छत्रछाया के लिए राजनीतिक दलों की तलाश में जुटे. राजनीतिक दलों ने भी इन पर मेहरबानी दिखाने में कंजूसी नहीं की. लेकिन कहते हैं कि एक ना एक दिन तो बुरे कर्मों का नतीजा भुगतना ही पड़ता है. 2024 के आम चुनाव के ऐलान से पहले उन्हें जब सात साल की सजा सुनाई गई तो यह साफ हो गया कि उनकी सियासी पारी पर विराम लग चुका है. लेकिन सियासत जब किसी के रगों में बहने लगती है तो आसानी से उससे छुटकारा पाना संभव नहीं होता. धनंजय सिंह के सियासी सफर पर जब अदालत ने ब्रेक लगा दिया तो उन्होंने अपनी पत्नी श्रीकला रेड्डी को बीएसपी के टिकट पर चुनावी मैदान में उतारा है. बता दें कि बीजेपी की तरफ से कद्दावर नेता कृपाशंकर सिंह चुनौती दे रहे हैं.

अब्बास अंसारी

धनंजय सिंह के बाद अब बात करेंगे अब्बास अंसारी की. अब्बास अंसारी, पूर्वी यूपी के मऊ सदर से विधायक हैं और इस समय कासगंज जेल में बंद हैं. अब जेल में बंद हैं तो अंदाजा लगा सकते हैं कि कोई न कोई इनके खिलाफ तामील होगा. इनकी दूसरी पहचान ये है कि वो मुख्तार अंसारी के बेटे हैं. बता दें कि मार्च के महीने में मुख्तार अंसारी की कॉर्डिएक अरेस्ट से मौत हो गई थी. यह पहला मौका होगा जब अंसारी परिवार का सदस्य पहली बार मुख्तार अंसारी के छत्रछाया के बिना चुनावी मैदान में होगा. बता दें कि अब्बास अंसारी के चाचा और मुख्तार अंसारी के भाई अफजाल अंसारी गाजीपुर लोकसभा सीट से समाजवादी पार्टी के उम्मीदवार हैं. अब्बास अंसारी के बारे में कहा जा रहा है कि भले ही वो जेल में बंद हैं लेकिन अपने प्रभाव का इस्तेमाल वो मऊ और गाजीपुर दोनों जगहों पर कर रहे हैं.

उदयभान करवरिया

धनंजय सिंह और अब्बास अंसारी के बाद हम बात उदयभान करवरिया की करेंगे. उदयभान के बारे में कहा जाता है कि बीते जमाने में वो अतीक अहमद के साथ काम किया करते थे. बात जब अतीक अहमद की हो रही है तो उनके अतीत से आप भली भांति परिचित भी होंगे. सजायाफ्ता होने की वजह से करवरिया अब सीधे तौर पर चुनावी प्रक्रिया का हिस्सा नहीं हो सकते हैं. लेकिन ब्राह्मण समाज में प्रभाव होने की वजह से वो अपनी प्रासंगिकता बनाए रखने में कामयाब रहे हैं. कहा जाता है कि अब भले ही वो सक्रिय राजनीति का हिस्सा नहीं हों. लेकिन सलाखों के पीछे से वो अपने प्रभाव को किसी भी कीमत पर कम नहीं होने देना चाहते.

इरफान सोलंकी

इसी तरह का एक और नाम है इरफान सोलंकी का. इरफान सोलंकी समाजवादी पार्टी के विधायक हैं और इस समय वो एक मामले में यूपी की महाराजगंज जेल में बंद हैं. वो जब पेशी पर कानपुर आते हैं तो मार्मिक तरीके से अपने साथ हो रहे प्रतिशोध का जिक्र करते हैं. ये बात अलग है कि जिस महिला ने उन पर जमीन कब्जे और परेशान करने का आरोप लगाया था कि वो कहती है इरफान सोलंकी घडियाली आंसू बहा रहे हैं. कानपुर की जनता उनके हर एक मिजाज से वाकिफ है. इरफान सोलंकी के बारे में कहा जाता है कि वो हर एक दांवपेंच के जरिए अपनी हनक को कायम रखना चाहते हैं.

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