Maharaja Review: विजय सेतुपति के बदले ने लोगों को चौंकाने पर किया मजबूर, थ्रिलर का डबल डोज
निथिलन सामिनाथन की दूसरी फिल्म महाराजा एक थ्रिलर फिल्म है, जिसका क्लाइमेक्स चौंकाने वाला है.
फिल्म महाराजा के निर्देशक निथिलन सामीनाथन की ये दूसरी फिल्म है. इस फिल्म से पहले उन्होंने कुरंगु बोम्मई बनाई थी. फिल्म महाराजा की शुरुआत में समिनाथन के व्यवहार से हमें लगता है कि महाराजा जॉन विक का देसी वर्जन है. जो किसी के द्वारा उसके पपी को मार दिए जाने के बाद लड़ाई छेड़ने के लिए जाना जाता है. यहां फर्क ये है कि महाराजा जो विजय सेतुपति ने किरदार निभाया है वो एक नाई अपराधियों के एक ग्रुप को मारता है, जिन्होंने उसकी एक कीमती चीज चुरा ली होती है. जिसने एक दुर्घटना में उसकी बेटी को बचाया था. लेकिन जैसे-जैसे कहानी आगे बढ़ती है, हम समझने लगते हैं कि समिनाथन ने हमें धोखा देने के लिए इस एंगल को चतुराई से यूज किया है और फिर अंतिम मोड़ पर पहुंचता है जो आपको एक फेमस साउथ कोरियाई फ़िल्म की याद दिलाते हुए, आपको एक सस्पेंस में छोड़ देता है.
एक अलग किरदार
हम इन दो फिल्मों का हवाला निथिलन की विश्वसनीयता को कम करने के लिए नहीं दे रहे हैं. बल्कि उनकी कहानी बहुत ही अलग है और उन्होंने इन सभी चीजों को एक स्टोरी में काफी सही तरीके से लोगों तक पहुचाई. जो बिना किसी रुकावट के आगे बढ़ती है. निथिलन की स्टोरी काफी शानदार है. उन्होंने अपने दो अलग-अलग समय को चतुराई से उपयोग किया है और अपनी फिल्म की काहनी से हमें चौंका दिया है. निर्देशक के काम के बारे में जो बात सराहनीय है वो यह है कि उनकी प्रतिभा बहुत अलग है. यह केवल फिल्म को लेकर ये सोचते हैं अगर में दर्शक हूं तो मैं बड़े पर्दे पर क्या देखना ज्यादा पसंद करुंगा. जबकि क्लाइमेक्स में शॉक वैल्यू है. निर्देशक ने एक अलग फ्रेम भी जोड़ा है, जो फिल्म का एक सीन है. निथिलन की स्टोरी में ये भी देखने वाली बात है कि किन संकेतों को रखकर दर्शकों को किस तरह से ट्विस्ट और टर्न तक पहुंचाया जा सकता है.
सेतुपति अपनी फिल्मों और एक्टिंग के लिए जाने जाते हैं. अपनी 50वीं फिल्म महाराजा के साथ सेतुपति एक बार फिर से सफल हुए. तमिल सिनेमा के दर्शक विजय सेतुपति को याद कर रहे थे, जो बेहतरीन स्क्रिप्ट चुनने और पूरी तरह से फिट होने के लिए जाने जाते हैं. महाराजा में सेतुपति एक आम हीरो की तरह नहीं बल्कि एक भरोसेमंद किरदार के रूप में सामने आता है. धीरे-धीरे उनकी स्क्रीन हीरो की तरह बढ़ती जाती है.
निथिलन एक ऐसे निर्देशक हैं, जिनके हकदार सेतुपति जैसे अभिनेता/सितारे हैं. वो एक सीन जिसमें सेतुपति लोहे की छड़ पकड़कर छत तोड़ देता है, जब स्कूल का एक टीचर उसकी बेटी को गलत तरीके से फंसाने के लिए कोशिश करता है. वो सीन सच में देखने लायक है. एक्टर इस सीन को एक नए स्तर पर ले जाता है और जब भी फिल्म में इसी तरह के सीन दोहराए जाते हैं, तो ये देखने लायक तो बनते है.
सेतुपति की एकल नायक के रूप में वापसी
सेतुपति के बाद हम सभी अनुराग कश्यप को महाराजा में सेलेवम नामक डाकू की उनकी भूमिका के लिए याद करेंगे. शानदार फिल्म निर्माता ने ये भी साबित कर दिया है कि वह एक शक्तिशाली कलाकार हैं. वो तमिल फिल्म में एलियन नहीं लगते हैं, लेकिन खतरनाक डाकू के रूप में पूरी तरह से फिट बैठते हैं. निथिलन की कास्टिंग चॉइस महाराजा का एक और बड़ा फायदा है.
उदाहरण के लिए, नटराजन सुब्रमण्यन, जिन्हें आमतौर पर एक भ्रष्ट पुलिस अधिकारी की भूमिका में देखा जाता है, को दूसरे भाग में एक शानदार सकारात्मक मोड़ मिलता है, जो फिल्म की सबसे बड़ी हाइलाइट्स में से एक है. साथ ही, सिंगमपुली, जिन्होंने कई तमिल फिल्मों में एक कॉमेडी साइडकिक के रूप में काम किया है. यहां एक विपरीत भूमिका निभाई है और ये फिल्म के लिए अच्छा संकेत है. सेल्वम की पत्नी का किरदार निभाने वाली अभिरामी को कुछ ही सीन मिले हैं. सेतुपति की बेटी का किरदार निभाने वाली जोथी भी काफी अच्छी च्वाइस हैं. निष्कर्ष तौर पर महाराजा साल की बेस्ट फिल्म में से एक है.
(ये स्टोरी कोमल गौतम द्वारा हिंदी में अनुवाद की गई है)