'The Dirty Sky': अंतरिक्ष में बढ़ते कचरे की डरावनी कहानी
डॉक्यूमेंट्री फिल्म निर्माता ओपी श्रीवास्तव ने ‘द डर्टी स्काई’ के जरिए चेतावनी दी है कि अंतरिक्ष, जो अनंत है, एक कचरे में बदल रहा है.;
फरवरी 2009 में एक बड़ा हादसा हुआ, जब एक नया अमेरिकी उपग्रह (Iridium) एक पुराने और बंद हो चुके रूसी सैन्य सैटेलाइट (Kosmos 2251) से 790 किलोमीटर की ऊंचाई पर टकरा गया। दोनों सैटेलाइट्स हजारों टुकड़ों में बिखर गए, जो बहुत तेज़ी से अंतरिक्ष में फैल गए। इस घटना ने पूरी दुनिया का ध्यान अंतरिक्ष कचरे (space junk) की गंभीर समस्या की ओर खींचा।
अंतरिक्ष का हाल
2010 में अनुमान था कि पृथ्वी की कक्षा में करीब 17,000 टुकड़े मलबे के रूप में घूम रहे हैं। आज ये संख्या बढ़कर 45,000 से भी ज्यादा हो गई है। ये टुकड़े छोटे से पेंट के धब्बे से लेकर एक स्कूल बस जितने बड़े हो सकते हैं और ये 18,000 मील प्रति घंटे की रफ्तार से घूमते हैं।
डॉक्युमेंट्री: 'The Dirty Sky'
मुंबई के बैंकर से फिल्ममेकर बने ओपी श्रीवास्तव ने इस विषय पर एक दमदार डॉक्युमेंट्री बनाई है – ‘The Dirty Sky’, जो इस सप्ताह बेंगलुरु इंटरनेशनल सेंटर में दिखाई जाएगी। फिल्म बताती है कि कैसे देशों और अंतरिक्ष एजेंसियों ने इस संकट को नजरअंदाज किया। श्रीवास्तव कहते हैं कि हम मानते हैं कि अंतरिक्ष अनंत है। इसलिए हम लगातार सैटेलाइट्स भेजते रहते हैं। लेकिन सच्चाई यह है कि ज़्यादातर सैटेलाइट अब काम ही नहीं कर रहे। फिल्म में बताया गया है कि सिर्फ 7% सैटेलाइट ही काम कर रहे हैं, बाकी सब अंतरिक्ष में मलबे की तरह घूम रहे हैं।
श्रीवास्तव का मानना है कि सरकारें इस मुद्दे को गंभीरता से इसलिए नहीं ले रही। क्योंकि इनमें से ज़्यादातर सैटेलाइट्स जासूसी के लिए हैं। इसलिए देश खुलकर बात नहीं करते और पारदर्शिता की कमी है। लोग पैसे खर्च करना नहीं चाहते। क्योंकि इसका कोई बिजनेस मॉडल नहीं है।
समाधान
फिल्म में दिखाया गया है कि वैज्ञानिक नए टेक्नोलॉजिकल तरीकों पर काम कर रहे हैं जैसे कि लेज़र से मलबा हटाना, रोबोटिक आर्म्स, स्पेस टग्स और मछली पकड़ने जैसे नेट। सिंगापुर की कंपनी Astroscale इस दिशा में आगे है। उसके फाउंडर नोबू ओकाडा कहते हैं कि 7 साल में हम नियमित तौर पर अंतरिक्ष साफ करेंगे।
टकराव से बढ़ रहा मलबा
फरवरी 2009 के बाद 4 बड़ी टक्करें और हो चुकी हैं। प्रोफेसर मोरीबा जाह, जो स्पेस ट्रैफिक पर काम करते हैं, कहते हैं कि जल्द ही Low Earth Orbit इतना मलबे से भर जाएगा कि वहां कोई स्पेस मिशन चलाना मुश्किल हो जाएगा। सोचिए अगर हाईवे पर लोग कारें छोड़कर चले जाएं। अंतरिक्ष में यही हो रहा है।
भारत का योगदान
फिल्म में ISRO या भारत का नाम ज़्यादा नहीं आया। श्रीवास्तव कहते हैं कि या तो भारत इस पर काम नहीं कर रहा या फिर बोलना नहीं चाहता। हालांकि, उन्होंने बेंगलुरु की एक कंपनी Digantara का ज़िक्र किया, जो स्पेस डेब्रिस ट्रैक करने के लिए टेक्नोलॉजी बना रही है। यूरोपीय यूनियन, जापान और ब्रिटेन इस मुद्दे को गंभीरता से ले रहे हैं। हालांकि, अब भी कोई सख्त अंतरराष्ट्रीय कानून या समझौता नहीं है, जो सभी देशों को ज़िम्मेदार बनाता हो।
भविष्य का खतरा
फिल्म में चेतावनी दी गई है कि अगर यह कचरा एक के बाद एक सैटेलाइट से टकराता रहा तो यह "कास्केडिंग इफेक्ट" पैदा करेगा – यानी हर टक्कर से और मलबा बनेगा और खतरा बढ़ता जाएगा। श्रीवास्तव बताते हैं कि एलोन मस्क के Falcon 9 रॉकेट का एक हिस्सा ऑस्ट्रेलिया के एक खेत में गिरा था। इसी तरह नागपुर में भी छत पर एक धातु का टुकड़ा गिरा, जो स्पेस जंक हो सकता है।
श्रीवास्तव अब इस फिल्म को IIT कानपुर, IIT मुंबई और अन्य कॉलेजों में ले जा रहे हैं, ताकि युवाओं को जागरूक किया जा सके। उन्होंने कहा कि यह मेरी जिम्मेदारी है कि मैं आने वाली पीढ़ियों के लिए यह संदेश फैलाऊं।