सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद चुनावी बॉन्ड का विकल्प तलाशने की जरूरत: अमित शाह

केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने कहा कि चुनावी बांड योजना को रद्द करने के सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद चल रहे लोकसभा चुनावों के दौरान काले धन का इस्तेमाल बढ़ जाएगा. ऐसे में सभी को विचार-विमर्श करके एक विकल्प पर निर्णय लेना होगा.

Update: 2024-05-27 16:06 GMT

Electoral Bond Scheme: केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने कहा कि चुनावी बांड योजना को रद्द करने के सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद चल रहे लोकसभा चुनावों के दौरान काले धन का इस्तेमाल बढ़ जाएगा. उन्होंने सुझाव दिया कि सभी हितधारकों को विचार-विमर्श करके एक विकल्प पर निर्णय लेना होगा. क्योंकि अगर काले धन का प्रभाव बढ़ता है तो कोई विकल्प ढूंढा जाना चाहिए. राजनीतिक दलों को वित्त पोषण देने के किसी अन्य तंत्र पर संसद को चर्चा करनी होगी और निर्णय लेना होगा. अमित शाह ने एक न्यूज एजेंसी को दिए इंटरव्यू के दौरान ये बातें कहीं.

राजनीति में बढ़ेगा काले धन का प्रभाव

उन्होंने कहा कि चुनावी बांड योजना दानदाताओं को एसबीआई से बांड खरीदकर गुमनाम रूप से राजनीतिक दलों को धन मुहैया कराने की अनुमति देती थी. लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने लोकसभा चुनावों की घोषणा से एक महीने पहले फरवरी में इस योजना को रद्द कर दिया था. इससे चुनाव और राजनीति में काले धन का प्रभाव बढ़ेगा. जब राजनीतिक दल इस वित्तीय वर्ष के लिए अपना लेखा-जोखा प्रस्तुत करेंगे, तब पता चलेगा कि कितना धन नकद दान से आया है और कितना चेक से. जबकि, बांड के समय चेक से दान करने का आंकड़ा 96 प्रतिशत तक पहुंच गया था.

संसद में होना चाहिए बहस

अमित शाह ने कहा कि अब आपको पता चल जाएगा कि अगर काले धन का असर बढ़ता है तो कोई विकल्प तलाशना चाहिए. संसद में इस पर बहस होनी चाहिए. इस मुद्दे पर विभिन्न राजनीतिक दलों सहित सभी हितधारकों के साथ चर्चा की जानी चाहिए. सुप्रीम कोर्ट का फैसला आने के बाद उनका दृष्टिकोण भी बहुत महत्वपूर्ण है. अटॉर्नी जनरल और सॉलिसिटर जनरल से भी परामर्श करना होगा. इसलिए हमें सामूहिक रूप से विचार-विमर्श करना होगा और एक नया विकल्प तय करना होगा.

काले धन पर अंकुश

बता दें कि सुप्रीम कोर्ट ने चुनावी बॉन्ड योजना को यह कहते हुए रद्द कर दिया था कि यह संविधान के तहत सूचना के अधिकार और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का उल्लंघन करती है. कोर्ट ने सभी दानदाताओं और उनके लाभार्थियों के नाम भी सार्वजनिक कर दिए थे. हालांकि, केंद्र सरकार ने इस बात पर जोर दिया था कि इस योजना का उद्देश्य राजनीति में काले धन के प्रभाव पर अंकुश लगाना है और दानदाताओं को गुमनाम रहने की अनुमति दी गई है, ताकि उन्हें किसी राजनीतिक दल द्वारा अपने प्रतिद्वंद्वी दलों को वित्त पोषण करने के लिए निशाना न बनाया जाए.

विपक्ष ने लगाए थे ये आरोप

वहीं, विपक्षी दलों ने आरोप लगाया था कि इस योजना का इस्तेमाल बीजेपी द्वारा व्यापारिक हितों के लिए रिश्वतखोरी को वैध बनाने के लिए किया गया था. हालांकि, सत्तारूढ़ पार्टी ने इस आरोप को खारिज कर दिया था और दावा किया था कि उसके प्रतिद्वंद्वियों को उनकी चुनावी ताकत से अधिक धन प्राप्त हुआ था.

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