अमरा राम: शेखावाटी के 'लाल टापू' से सीपीएम के पोलितब्यूरो तक
अमरा राम उत्तर भारत से सीपीआई(एम) की सर्वोच्च नीति-निर्धारक और कार्यकारी समिति पोलित ब्यूरो में एकमात्र चेहरा हैं। आखिर कौन हैं अमरा राम जिन्हें ये जगह मिली?;
सीकर से सांसद और पूर्व विधायक अमरा राम किसान आंदोलनों के ज़रिए राजनीतिक पटल पर उभरे और उन्होंने राजस्थान के शेखावाटी क्षेत्र में सीपीआई(एम) की जड़ें जमाने में अहम भूमिका निभाई।
शेखावाटी, जिसमें सीकर भी शामिल है, मुख्यतः जाट किसानों का इलाका है। अमरा राम पिछले चार दशकों से किसान आंदोलनों की अगुवाई कर रहे हैं, जिनका प्रभाव केवल शेखावाटी तक सीमित नहीं रहा। यही उनकी राजनीतिक प्रासंगिकता की सबसे बड़ी वजह रही है।
2017 का सीकर आंदोलन: जब विचारधाराएं पिघल गईं
12 सितंबर 2017 को सीकर के रामू का बास गांव में चल रहे किसान धरने में एक अनोखा दृश्य देखने को मिला। वकील महावीर सिंह (सीपीआईएम), स्थानीय नेता जयंत कीचर (कांग्रेस) और रिटायर्ड सैन्य चिकित्सक डॉ. हरि सिंह (बीजेपी)—तीनों एक ही खाट पर बैठे थे। आम दिनों में ये साथ बैठना तो दूर, विचार साझा भी नहीं करते।
उनके साथ सैकड़ों किसान थे, और इस आंदोलन को बहुजन समाज पार्टी, आम आदमी पार्टी, जनता दल (सेक्युलर) और कई निर्दलीय विधायकों का समर्थन प्राप्त था।
इन सबको एक मंच पर लाने वाले थे – अमरा राम, जो उस समय अखिल भारतीय किसान सभा (AIKS) के राष्ट्रीय अध्यक्ष थे। आज वे सीकर से सांसद हैं और हाल ही में उन्हें सीपीआई(एम) की पोलितब्यूरो में शामिल किया गया है – उत्तर भारत से एकमात्र प्रतिनिधि के रूप में।
उस समय, जैसा कि आज भी है, राजस्थान में पार्टी का कोई विधायक नहीं था, फिर भी अमरा राम और पूर्व विधायक पेमा राम के नेतृत्व में आंदोलन इतना असरदार था कि प्रशासन और पुलिस तक गायब नज़र आए। 13 दिन चले इस आंदोलन की मांगें थीं – कर्ज़ माफी, फसल के उचित दाम, और स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशों का क्रियान्वयन।
राजनीति में सफर: ज़मीनी संघर्ष से संसद तक
69 वर्षीय अमरा राम ने अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत 1978 में श्री कल्याण कॉलेज, सीकर में छात्रसंघ अध्यक्ष के रूप में की। 1984 में वे अपने गांव मुण्डवारा के सरपंच बने। पढ़ाई के साथ-साथ उन्हें कबड्डी का शौक था और वे राजस्थान का राष्ट्रीय स्तर पर प्रतिनिधित्व कर चुके हैं।
अमरा राम ने राजनीतिक जीवन में कई चुनावी हारें देखीं, पर कभी हिम्मत नहीं हारी।
लोकसभा से: 1990 के दशक से 6 बार हारने के बाद 2024 में आखिरकार सीकर से जीत दर्ज की।
विधानसभा में: 1990 में धोद से हारने के बाद 1993, 1998 और 2003 में जीत दर्ज की, 2008 में डांटा रामगढ़ से विधायक बने। लेकिन 2013, 2018 और 2023 में वहीं से लगातार हार का सामना करना पड़ा।
फिर भी 2011 में उन्हें ‘सर्वश्रेष्ठ विधायक’ का सम्मान मिला।
"लाल टापू" बनी शेखावाटी
शेखावाटी लंबे समय से किसान आंदोलनों की ज़मीन रहा है। सीपीआई(एम) ने इन्हीं आंदोलनों के ज़रिए अपनी जड़ें जमाईं। 2008 में बिजली दरों में वृद्धि के खिलाफ किसान आंदोलन इतना असरदार रहा कि पार्टी को तीन विधानसभा सीटें मिलीं। इसी कारण शेखावाटी को “लाल टापू” कहा जाने लगा।
2024 लोकसभा जीत: रणनीति, लहर और समर्पण का संगम
2024 में अमरा राम की जीत कई वजहों से खास थी: कांग्रेस ने पिछली दो लोकसभा चुनावों में राजस्थान से कोई सीट नहीं जीती थी। इस बार उसने तीन सीटें सहयोगी दलों के लिए छोड़ीं – सीकर (CPI(M)), नागौर (हनुमान बेनीवाल – RLP) और बांसवाड़ा (राजकुमार रोत – भारत आदिवासी पार्टी)।
जाटों में भाजपा के खिलाफ लहर थी, और अमरा राम खुद जाट समुदाय से आते हैं। कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा, जो खुद सीकर से हैं, ने राम के लिए प्रचार किया। परिणामस्वरूप, विपक्षी INDIA गठबंधन ने राजस्थान की 25 में से 11 सीटें जीत लीं।
राम की जीत कितनी बड़ी थी?
2019 में सीकर से बीजेपी के सुमेधानंद सरस्वती को 58% वोट मिले थे, कांग्रेस को 35.7%, और अमरा राम को सिर्फ 2.4% (लगभग 31,000 वोट)। 2023 विधानसभा चुनाव में डांटा रामगढ़ से उन्हें 21,000 (9.5%) वोट ही मिले। लेकिन 2024 में, अमरा राम ने सीकर से 6.59 लाख वोट (50.68%) हासिल कर भाजपा के कद्दावर संत नेता को हराया।
एक बार फिर अपने पुराने प्रतिद्वंद्वी, भगवाधारी सुमेधानंद को हराकर उन्होंने कहा था: "केवल भगवान से पेट नहीं भरता। सब राम को मानते हैं, मेरा नाम ही अमरा राम है।"