अमृता शेरगिल: भारत की 'फ्रिडा काहलो', जिन्होंने आधुनिक भारतीय कला को दिए नए आयाम

अमृता शेरगिल का नाम भारतीय कला में एक मील का पत्थर है. एक ऐसी कलाकार, जिन्होंने भारतीय चित्रकला की सीमाओं को चुनौती दी और उसे एक नई दिशा दी. उन्हें अक्सर “भारत की फ्रिडा काहलो” कहा जाता है. लेकिन यह तुलना पूरी तरह से सही नहीं है.;

Update: 2025-03-08 02:39 GMT

अमृता शेरगिल की 1935 की पेंटिंग 'थ्री गर्ल्स' में तीन महिलाएं एक साथ शांतिपूर्वक बैठी हैं. उनमें से एक हरे रंग में है. जबकि बाकी दो गहरे लाल रंग में हैं. उनकी आंखों में एक गहरी उदासी है, जो उनके पूरे अस्तित्व में समाई हुई है और ये चेहरे अनकही कहानियां छुपाए हुए हैं. आंखें भीतर की ओर मुड़ी हुई हैं और हाथ एक नर्म संकल्प में आराम से रखे हैं. वे न एक-दूसरे को देखती हैं, न हमें.

इन महिलाओं के चेहरे पर कोई स्पष्ट कष्ट या नाटकीयता नहीं है. लेकिन फिर भी उनकी चुप्प इतनी गहरी और तेज़ लगती है, जैसे शब्दों से भी ज़्यादा. क्या वे किसी भविष्य का इंतजार कर रही हैं? क्या यह जीवन उनके लिए पहले से तय किया गया है? शेरगिल इस चुप्प के जरिए हमें उनके अंदर की तड़प महसूस कराती हैं, जो हमारे अंदर भी गूंजती है.

अमृता शेरगिल 20वीं सदी की सबसे महान महिला कलाकारों में से एक थीं. उन्होंने महज 28 वर्ष की उम्र में अपनी जान दी. लेकिन उनका आर्ट कलेक्शन आज भी जीवित है. उनकी पेंटिंग्स भारतीय कला के सबसे महंगे और मूल्यवान कार्यों में मानी जाती हैं. उन्हें अक्सर "भारत की फ्रिडा काहलो" कहा जाता है. हालांकि, यह तुलना अधूरी है. शेरगिल एक कहानीकार, एक बौद्धिक और एक आधुनिकतावादी थीं, जिन्होंने भारतीय कला की नींव को चुनौती दी. फिर भी, क्या है जो अमृता को किंवदंती बनाता है? क्यों उनकी कला एक ऐसे देश में प्रभावी बनी हुई है, जहां महिला कलाकारों को अक्सर हाशिए पर रखा जाता है? कैसे उनका काम पहचान, नारीवाद और उपनिवेशोत्तर आधुनिकतावाद पर होने वाली चर्चाओं को आकार देता है?

अमृता का जीवन

अमृता शेरगिल का जन्म एक सिख कुलीन पिता और हंगेरियाई-यहूदी ओपेरा गायिका मां से हुआ था. वे संस्कृतियों, महाद्वीपों और परंपराओं के बीच सेतु बनीं. उनके पिता, उमराव सिंह शेरगिल, एक बौद्धिक व्यक्तित्व थे, जिनका जन्म 1870 में हुआ था. उन्होंने संस्कृत और फारसी का अध्ययन किया और भारतीय तथा पश्चिमी दर्शन पर विचार-विमर्श किया. उन्होंने महात्मा गांधी और जवाहरलाल नेहरू के साथ संवाद किया और टॉल्स्टॉय के विचारों से भी जुड़ाव था. हालांकि, भारतीय राष्ट्रवाद के प्रति सहानुभूति थी, उनका मुख्य घर बौद्धिक वैश्विकवाद था.

उमराव सिंह का असली जुनून फोटोग्राफी था. उन्होंने छह दशकों में 80 आत्मचित्र बनाए, जो उनकी आत्मा का एक दृश्य संग्रह थे. उनके कार्यों में उपनिवेशी दृष्टिकोण को नकारते हुए, उन्होंने एक व्यक्तिगत दृष्टिकोण अपनाया, जिसमें परिवार ही विषय और दुनिया दोनों बन गया. उनका काम भारतीय फोटोग्राफी में नवाचार था. हालांकि, उनका योगदान समय के साथ कम पहचाना गया.

अमृता की कला यात्रा

1985 में, फिल्म निर्माता कुमार शाही ने अमृता शेरगिल पर एक फीचर फिल्म बनाने का प्रस्ताव रखा, जिसमें उनके भतीजे विवान सुंदरम को सहयोगी के रूप में जोड़ा. फिल्म निर्माण के इस शोध यात्रा में वे बुडापेस्ट, पेरिस, शिमला, सराया और लाहौर गए, जिन स्थानों से अमृता का जीवन प्रभावित हुआ था. उनका यह शोध तड़प, निर्वासन और कला के प्रति जुनून की कहानी है. अमृता ने पारंपरिक सुंदरता और आराम को त्याग दिया. उन्होंने रंगों को इतिहास में समेटा, मुद्राओं को दर्द का प्रतीक बनाया और चुप्प को शोर के बराबर महसूस कराया. 'थ्री गर्ल्स' की तरह, उनकी अधिकांश पेंटिंग्स अनकहे, अधूरे और अनसुलझे होते हैं. वे उन क्षणों की छवियां हैं, जो समय के बीच में जमी हुई हैं — जीवित, इंतजार करती और देखती हुई.

अमृता का नया आधुनिकतावाद

अमृता की कला में एक नया आधुनिकतावाद देखने को मिलता है. उन्होंने पेरिस में यूरोपीय चित्रकला की सोंध दृष्टियों को अपनाया. लेकिन भारतीय सांस्कृतिक परिप्रेक्ष्य में इसे फिर से आकार दिया. 1934 में जब वह भारत लौट आईं तो उन्होंने ग्रामीण भारत की महिलाओं और उनके जीवन की गहरी और वास्तविक तस्वीरें प्रस्तुत कीं. उनके चित्रकारिता में भारतीय समाज की गहरी समझ और उसके आधुनिकतावादी रूप का एक सुंदर मिलाजुला था.

अमृता शेरगिल का मिथक

अमृता की स्थायी लोकप्रियता का एक कारण उनकी असाधारण और स्वतंत्र व्यक्तित्व है. वह न केवल एक महान कलाकार थीं, बल्कि अपने समय से आगे भी थीं. वह एक साहसी महिला थीं, जिन्होंने अपने समय की सीमाओं को चुनौती दी. उन्होंने अपने जीवन में कई पुरुषों और महिलाओं के साथ रिश्ते बनाये, जिनकी खुली स्वीकार्यता उस समय के समाज के लिए एक स्कैंडल थी. उनके पत्रों में कड़ी बौद्धिकता और ताजगी झलकती है और वे अपने वक्त के सामाजिक और सांस्कृतिक बंधनों से बाहर थीं. अमृता की मृत्यु 1941 में मात्र 28 वर्ष की आयु में हुई. लेकिन उनका योगदान आज भी जीवित है, उनके कामों में एक ऐसी स्थायिता है जो समय को चुनौती देती है.

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