वोट चोरी के आरोपों पर पूर्व CEC का जवाब, पारदर्शिता ही समाधान

बिहार SIR विवाद में पूर्व CEC ओपी रावत ने आखिरी वक्त के रिविजन को गलत बताया, कमजोर तबकों पर असर की आशंका जताई और पारदर्शिता की मांग की।;

By :  Neelu Vyas
Update: 2025-08-14 02:44 GMT

इस समय चुनाव आयोग, विपक्षी दलों के निशाने पर है। मुद्दा, वोटचोरी और बिहार स्पेशनल इंटेंसिव रिविजन का है। इस मुद्दे पर सत्ता और विपक्ष अपने अपने नजरिए को पेश कर रहे हैं। लेकिन आम लोग या मतदाताओं में भ्रम की स्थिति बनी हुई है कि आखिर किसका पक्ष मजबूत इस विषय द फेडरल देश के खास कार्यक्रम निष्पक्ष में नीलू व्यास ने पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त ओ पी रावत से विस्तार से बातचीत की।  बहस का केंद्र यह रहा कि क्या यह जल्दबाजी में किया गया कदम वंचित वर्गों को मताधिकार से वंचित करने का खतरा पैदा करता है और पारदर्शिता व प्रक्रियात्मक निष्पक्षता पर सवाल खड़े करता है।

‘गलत समय पर किया गया अभ्यास’

रावत ने चेतावनी दी कि चुनाव से ठीक पहले मतदाता सूची का गहन पुनरीक्षण करना उचित नहीं है। उन्होंने उदाहरण देते हुए कहा कि 2003 के रिविजन और 2005 के चुनाव के बीच दो साल का अंतर था। उनके मुताबिक, आख़िरी वक्त में SIR शुरू करना अफरा-तफरी और भ्रम को न्योता देता है और इससे “मौके का फ़ायदा उठाने वाले” सक्रिय हो सकते हैं जैसा कि आज बिहार में हो रहा है।


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कमजोर तबकों पर असर

सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई के दौरान न्यायमूर्ति सूर्य कांत ने माना कि सूची तैयार करते समय गलतियां हो सकती हैं और EC सुधार के लिए तैयार है। वहीं, वकील अभिषेक मनुसिंघे और प्रशांत भूषण का तर्क था कि जल्दबाज़ी में किया गया SIR गरीब, अनुसूचित जाति, ओबीसी और मुस्लिम समुदाय को ज्यादा प्रभावित करता है—क्योंकि दस्तावेज़ कवरेज सीमित है और प्रक्रियात्मक अड़चनें अधिक हैं।

रावत ने EC के कुछ राहत भरे कदमों का बचाव किया

2003 की मतदाता सूची में शामिल लोगों को बिना दस्तावेज़ के नागरिक मानना।

जिनके माता-पिता 2003 की सूची में थे, उन्हें दस्तावेज़ जमा करने से छूट देना।

इन कदमों से लगभग 30% लोगों को राहत मिली है।

तकनीकी गड़बड़ियां, जानबूझकर नहीं

बूथ लेवल अफसर (BLO) द्वारा खुद फॉर्म भरने, मृत व्यक्तियों के नाम सूची में आने और वाल्मीकि नगर में 2,92,000 मकानों को “0000” दर्शाने जैसी घटनाओं पर रावत ने कहा कि यह तकनीकी गड़बड़ी या प्रणालीगत त्रुटियां हैं, न कि जानबूझकर की गई हेरफेर। उन्होंने ऐसी अनियमितताओं पर तुरंत सार्वजनिक स्पष्टीकरण देने की जरूरत बताई।

पारदर्शिता की कमी और अविश्वास

पत्रकार अजीत अंजुम की गिरफ्तारी और EC की खामोश प्रतिक्रिया पर रावत ने चिंता जताई कि यह भरोसे और पारदर्शिता में गिरावट का संकेत है। लगभग 64 लाख मतदाताओं के नाम हटाने और कारण न बताने पर उन्होंने सख्त नाराज़गी जताई और मांग की कि EC श्रेणीवार कारण सार्वजनिक करे तथा विवादित रिविजन के दौरान पहले जैसी जन-संवाद प्रक्रिया अपनाए।

राहुल गांधी के आरोपों पर प्रतिक्रिया

राहुल गांधी द्वारा फर्जी वोट, सर्च टूल हटाने और आधार/EPIC को न मानने के आरोप पर रावत ने कहा कि दुर्भावनापूर्ण इरादा साबित नहीं होता। लेकिन, जांच और तथ्य सार्वजनिक न करना ही संदेह पैदा करता है। उनका मानना है कि त्वरित ऑडिट और जानकारी साझा करने से विवाद टाला जा सकता था। उन्होंने कहा कि मतदान सख्त निगरानी वाले केंद्रों पर होता है, जिससे बड़े पैमाने पर वोट चोरी की संभावना कम है अगर सूची में गलतियां हों।

‘गृह मंत्रालय तय करे नागरिकता’

रावत ने स्पष्ट किया कि नागरिकता निर्धारण गृह मंत्रालय का काम है, EC का नहीं। आयोग को फॉर्म-6 पर दी गई घोषणा के आधार पर काम करना चाहिए, जब तक कि ठोस सबूत न मिले और नोटिस, सुनवाई व आदेश के बाद ही नाम काटे जाएं। उन्होंने सख्त दस्तावेज़ी शर्तों (मैट्रिकुलेशन/जन्म प्रमाणपत्र) को लेकर याचिकाकर्ताओं की चिंता दोहराई और गरीबों के लिए आसानी से उपलब्ध विकल्प (EPIC, राशन कार्ड) को स्वीकारने का समर्थन किया।

EC के लिए सुझाव

रावत ने EC से अपील किया कि सूची की अनियमितताओं की तुरंत जांच कर रिपोर्ट सार्वजनिक करे।संसाधन-वंचित मतदाताओं को प्रक्रिया में मदद दे।‘इमेज बचाने’ के बजाय पारदर्शिता अपनाए।रावत को उम्मीद है कि सुप्रीम कोर्ट ऐसा संतुलित फैसला देगा जिससे मतदाताओं को न्यूनतम नुकसान हो।

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