कैपिटल बीट: प्रेम शंकर झा ने कहा ‘अडानी, संविधान से कांग्रेस को वोट नहीं मिलेंगे’

वरिष्ठ पत्रकार और लेखक प्रेमशंकर झा का कहना है कि इंडिया ब्लॉक विफल हो रहा है और वह इसके लिए कांग्रेस को जिम्मेदार मानते हैं।;

Update: 2024-12-05 12:47 GMT

Capital Beat : द फेडरल के कार्यक्रम कैपिटल बीट में नीलू व्यास के साथ चर्चा के दौरान वरिष्ठ पत्रकार और पूर्व प्रधानमंत्री वी.पी. सिंह के सलाहकार रह चुके प्रेम शंकर झा ने INDIA गठबंधन और कांग्रेस पार्टी की नेतृत्व संबंधी चुनौतियों पर गहन टिप्पणी की। उनकी आलोचना INDIA गठबंधन की संरचनात्मक कमजोरियों से लेकर इसके प्रभावहीन नैरेटिव तक विस्तृत थी।


INDIA गठबंधन की असंगति और कांग्रेस की जिम्मेदारी
झा ने INDIA गठबंधन में व्याप्त अव्यवस्था को रेखांकित करते हुए इसका मुख्य कारण कांग्रेस पार्टी की नेतृत्व रणनीति में कमी को बताया। उन्होंने कहा कि कांग्रेस, जो गठबंधन का सबसे बड़ा घटक है, इसे संगठित करने की जिम्मेदारी निभाने में असफल रही है, जिसका कारण आंतरिक गुटबाजी और नेतृत्व संकट है।
उन्होंने राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा का उदाहरण देते हुए बताया कि कैसे इसने बिहार में नितीश कुमार जैसे क्षेत्रीय सहयोगियों को अलग-थलग कर दिया। झा ने कहा, “साथ मिलकर काम करने के लिए समझौता करना पड़ता है,” लेकिन कांग्रेस ने इस सबक को अपनाने में असफलता दिखाई है।

राष्ट्रीय मुद्दे: अडानी, रोजगार और चुनाव सुधार
अडानी विवाद पर विपक्ष के ध्यान केंद्रित करने के सवाल पर झा ने इसे वोट बटोरने में अप्रभावी बताया। उन्होंने स्वीकार किया कि पूंजीवादी पक्षपात के आरोप गंभीर हैं, लेकिन जोर दिया कि बेरोजगारी और न्यायिक अक्षमता जैसे मुद्दे आम मतदाता के लिए अधिक प्रासंगिक हैं। उन्होंने कहा, “इस देश के भविष्य के लिए अडानी जैसे मुद्दे को उठाना पूरी तरह से अप्रासंगिक है,” और कांग्रेस को लोगों से जुड़े मुद्दों पर ध्यान केंद्रित करने की सलाह दी।
झा ने भाजपा सरकार द्वारा चुनावी प्रणाली के प्रबंधन की भी आलोचना की, विशेष रूप से फॉर्म 7 के दुरुपयोग पर, जिससे मतदाता सूची में हेरफेर किया गया। उन्होंने विपक्ष से आह्वान किया कि वह ऐसी प्रावधानों को खत्म करने के लिए आक्रामक अभियान चलाए।

कांग्रेस में गुटबाजी और नेतृत्व संकट
झा ने कांग्रेस के केंद्रीय नेतृत्व पर भी कटाक्ष किया और इसे गुटबाजी और पुराने तौर-तरीकों से जकड़ा हुआ बताया। उन्होंने 1969 से पहले के कांग्रेस सिंडिकेट मॉडल की पुनर्स्थापना का सुझाव दिया, जिसमें साप्ताहिक बैठकें और नीतिगत निर्णयों को एकजुटता के साथ लागू किया जा सके।
उन्होंने प्रियंका गांधी की प्रशंसा करते हुए उन्हें आदर्शवादी और व्यावहारिक बताया, लेकिन कांग्रेस में उनकी कम भागीदारी को लेकर अफसोस जताया।

व्यापक राजनीतिक परिदृश्य और चुनावी सुधार
भाजपा के प्रभुत्व पर टिप्पणी करते हुए झा ने स्वीकार किया कि सत्तारूढ़ दल ने अपना आधार मजबूत कर लिया है, लेकिन उसकी नीतियां देश में व्याप्त बेरोजगारी संकट का समाधान करने में विफल रही हैं। उन्होंने राजनीति में आपराधिकरण को रोकने के लिए राज्य द्वारा वित्तपोषित चुनाव प्रणाली की आवश्यकता पर बल दिया और गुणवत्तापूर्ण शिक्षा और रोजगार सृजन को प्राथमिकता देने की वकालत की।

आगे का रास्ता
झा ने संवेदनशील और जमीनी नेतृत्व की जरूरत पर जोर देते हुए कहा, “यह देश गहरे दर्द में है।” उन्होंने विपक्षी नेताओं से आग्रह किया कि वे उन आर्थिक और सामाजिक मुद्दों को प्राथमिकता दें जो अधिकांश आबादी को प्रभावित करते हैं। उन्होंने चेतावनी दी कि यदि ऐसा बदलाव नहीं हुआ, तो विपक्ष भाजपा की राजनीतिक मशीनरी के सामने अप्रासंगिक बना रहेगा।
प्रेम शंकर झा का यह बेबाक विश्लेषण विपक्षी गठबंधन के सामने मौजूद संरचनात्मक और नैरेटिव संबंधी चुनौतियों को उजागर करता है, खासकर जब भारत महत्वपूर्ण चुनावी चरण की ओर बढ़ रहा है। कांग्रेस और उसके सहयोगी इस सलाह को कितना अपनाएंगे, यह तो समय ही बताएगा।

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