सुप्रीम कोर्ट समिति की सिफारिश, कैश मामले में जस्टिस वर्मा को हटाया जाए

सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित समिति का कहना है कि साक्ष्यों, वीडियो और तस्वीरों से यह स्थापित हुआ कि जस्टिस वर्मा और उनके परिवार को स्टोर रूम में जाने की विशेष अनुमति थी।;

By :  Lalit Rai
Update: 2025-06-19 09:11 GMT
इस विवाद के बाद जस्टिस यशवंत वर्मा को वापस इलाहाबाद हाईकोर्ट में ट्रांसफर कर दिया गया और उन्हें कोई न्यायिक कार्य नहीं सौंपा गया। हालांकि, जज का कहना है कि वह निर्दोष हैं और उन्होंने इस्तीफा नहीं दिया है। फाइल फोटो

भारत के न्यायिक इतिहास में एक अभूतपूर्व घटनाक्रम सामने आया है, जिसमें इलाहाबाद हाईकोर्ट के कार्यरत न्यायाधीश जस्टिस यशवंत वर्मा को पद से हटाने की सिफारिश की गई है। 14 मार्च 2025 को दिल्ली के 30 तुगलक क्रेसेंट स्थित सरकारी आवास में आग लगने की घटना के बाद यह मामला उजागर हुआ। घटना के समय जस्टिस वर्मा आवास में नहीं थे। अग्निशमन दल और पुलिस की संयुक्त कार्रवाई में वहां जली हुई और आधी जली नकदी पाई गई। इसके बाद सुप्रीम कोर्ट के CJI संजीव खन्ना ने तीन सदस्यीय जांच पैनल का गठन किया।

पैनल की जांच में चौंकाने वाले तथ्य

तीन जजों की समिति पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश शील नागु, हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश जीएस संधवालीया और कर्नाटक हाईकोर्ट की जज अनु शिवरामन ने 10 दिनों तक 55 गवाहों से पूछताछ की। इनमें जस्टिस वर्मा की बेटी दीया वर्मा भी शामिल थीं। वीडियो, तस्वीरें और प्रत्यक्षदर्शियों की गवाही से यह पुष्टि हुई कि स्टोररूम में बड़ी मात्रा में 500 रुपए के नोटों का ढेर मौजूद था।

एक गवाह ने रिपोर्ट में कहा कि इतनी नकदी देखकर स्तब्ध रह गया ये मेरे जीवन का पहला अनुभव था। कम से कम 10 गवाहों ने अधजली नकदी देखने की बात कही।

 न्यायाधीश की सफाई पर सवाल

जस्टिस वर्मा की ओर से यह दावा किया गया कि उन्हें इस पैसे की जानकारी नहीं थी। लेकिन समिति ने इसे “अविश्वसनीय” करार दिया। रिपोर्ट में पूछा गया कि यदि यह किसी साजिश का हिस्सा था, तो उन्होंने इसकी सूचना उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश या भारत के मुख्य न्यायाधीश को क्यों नहीं दी?इसके साथ ही रिपोर्ट में कहा गया कि स्टोररूम की विशेष पहुंच केवल जस्टिस वर्मा और उनके परिवार के पास थी। जांचकर्ताओं ने यह भी पाया कि 15 मार्च की तड़के स्टोररूम से नकदी को हटाया गया।

सबूत मिटाने की कोशिश?

पैनल ने जस्टिस वर्मा की बेटी दीया वर्मा और उनके निजी सचिव राजेंद्र सिंह कार्की पर सबूत मिटाने या घटनास्थल की सफाई में भूमिका निभाने का आरोप लगाया है। हालांकि जस्टिस वर्मा ने आरोपों को खारिज करते हुए इसे छवि खराब करने की साजिश बताया है और इस जांच को मूलभूत रूप से अन्यायपूर्ण करार दिया है।

जांच प्रक्रिया हुई रिकॉर्ड

तीनों न्यायाधीशों ने प्रत्येक गवाही की वीडियो रिकॉर्डिंग कराई ताकि भविष्य में उनकी प्रामाणिकता को चुनौती न दी जा सके।

 क्या आगे होगा?

इस प्रकरण के बाद जस्टिस वर्मा को इलाहाबाद हाईकोर्ट में स्थानांतरित कर दिया गया और उन्हें कोई न्यायिक कार्य नहीं सौंपा गया है। उन्होंने अब तक न इस्तीफा दिया है, न स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति ली है।यह मामला अब न्यायपालिका की निष्पक्षता और पारदर्शिता की कड़ी परीक्षा के रूप में देखा जा रहा है। विशेषज्ञों का मानना है कि यह पूरी न्यायिक व्यवस्था के लिए लिटमस टेस्ट जैसा है, जो उसके आंतरिक शुद्धिकरण की दिशा तय कर सकता है।

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