केंद्र की नई इलेक्ट्रिक वाहन नीति में आयात फीस छूट, लेकिन कई सवाल बरकरार

अब सरकार ने विदेशों से EV पार्ट्स मंगवाने पर 15% रियायती आयात शुल्क तय किया है, जो पहले 70% था। लेकिन यह छूट केवल 8,000 वाहनों तक सीमित है।;

Update: 2025-06-04 03:49 GMT

केंद्र सरकार ने सोमवार को नई इलेक्ट्रिक वाहन (EV) नीति के दिशा-निर्देश जारी किए। यह नीति मार्च 15 2025 को खाका रूप में घोषित की गई थी। सरकार ने इस नीति के ज़रिए देश में ईवी विनिर्माण को बढ़ावा देने की योजना बनाई है। लेकिन इसमें कई ऐसे बिंदु हैं, जो चिंता और सवालों को जन्म दे रहे हैं।

पहले से मिल रही थीं सब्सिडी और रियायतें

इससे पहले EV सेक्टर को 2019 से FAME योजना (Faster Adoption and Manufacturing of Electric and Hybrid Vehicles) के अंतर्गत सब्सिडी मिल रही थी। 4-व्हीलर EV: ₹10,000 प्रति kWh बैटरी क्षमता तक सब्सिडी, 2-व्हीलर EV: ₹15,000 प्रति kWh, अधिकतम सब्सिडी: वाहन मूल्य का 40%, आयकर अधिनियम की धारा 80EEB के तहत ₹1.5 लाख तक टैक्स में छूट और विभिन्न राज्य सरकारें रोड टैक्स, टोल और रजिस्ट्रेशन फीस में भी छूट देती थीं।

नई नीति में क्या बदला?

अब सरकार ने विदेशों से EV पार्ट्स मंगवाने पर 15% रियायती आयात शुल्क तय किया है, जो पहले 70% था। लेकिन यह छूट केवल 8,000 वाहनों तक सीमित है। नोट: नीति में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है कि यह फायदा ग्राहकों को मिलेगा या नहीं। ऐसा लगता है कि यह छूट मुख्यतः निर्माताओं के लिए है, न कि आम जनता के लिए।

न्यूनतम निवेश की शर्त

नीति के अनुसार, केवल वही कंपनियां इस छूट का लाभ ले सकेंगी जो ₹4,150 करोड़ का निवेश करें (3 वर्षों में), सालाना वैश्विक राजस्व ₹10,000 करोड़ हो, वैश्विक स्थिर परिसंपत्तियां ₹3,000 करोड़ हों। इससे साफ है कि मध्यम और छोटे उद्योगों को बाहर का रास्ता दिखा दिया गया है।

स्थानीय उत्पादकों को प्राथमिकता नहीं

20% तक पुर्जों को आयात करने की अनुमति दी गई है, बिना यह बताए कि इसे भविष्य में कैसे घटाया जाएगा। इससे स्थानीय आपूर्तिकर्ताओं को नुकसान होगा।

नई नीति की कमजोरियां

भारत में अभी भी चार्जिंग स्टेशनों की भारी कमी है। आम EV की रेंज: 100–300 किमी है। हाई-एंड EV (जैसे Tesla, Audi): 400 किमी है। धीमे चार्जर: 8 घंटे, चार्जिंग ₹40 है। फास्ट चार्जर: 1 घंटे, खर्च ₹100 है। लंबी दूरी की यात्रा के लिए यह बड़ी समस्या है।

EV की कीमतें ज्यादा

EV की शुरुआती कीमतें पारंपरिक वाहनों से कहीं अधिक हैं। इससे मध्यम वर्ग के लिए इसे खरीदना मुश्किल होता है।

पर्यावरणीय चिंताएं बरकरार

भारत की बिजली अभी भी कोयले पर आधारित है, जिससे EV का "हरित" प्रभाव सीमित हो जाता है। लिथियम और कोबाल्ट की खुदाई से जुड़े मानवाधिकार और पर्यावरणीय मुद्दे भी गंभीर हैं।

आयात पर निर्भरता और चीन की भूमिका

EV में इस्तेमाल होने वाले कई पुर्जे भारत में नहीं बनते और मुख्य रूप से चीन से मंगवाए जाते हैं। चीन ने हाल ही में रेयर-अर्थ मैग्नेट के निर्यात पर रोक की धमकी दी है। यदि ऐसा हुआ तो भारत की EV इंडस्ट्री को बड़ा झटका लग सकता है।

सब्सिडी का बोझ

अगर भारत में हर साल 10 लाख EV बिकते हैं तो सरकार को ₹20,000 करोड़ की सब्सिडी देनी पड़ेगी। यह सरकार के वित्तीय भार को बढ़ाएगा और गरीब तबके के लिए अन्य योजनाओं पर असर डाल सकता है। कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि यह नीति विदेशी कंपनियों को फायदा पहुंचाएगी, जैसे PLI योजना के तहत iPhone निर्माण में हुआ। कंपनियों ने केवल पुर्जे जोड़कर iPhone भारत में "बनाया" और मुनाफा विदेश चला गया।

पारंपरिक उद्योगों पर असर

पारंपरिक फ्यूल-आधारित वाहन निर्माता और उनके सहायक उद्योग बुरी तरह प्रभावित हो सकते हैं। ARV Auto Components के मालिक मुरलीधरन ने बताया कि EV के कारण हमें बैटरी कूलिंग सिस्टम में शिफ्ट होना पड़ा है। ₹3 करोड़ की नई मशीनरी की जरूरत है। लेकिन सरकार से कोई मदद नहीं मिल रही। मजदूर नेता कुमारस्वामी ने कहा कि केंद्र को राज्य सरकारों से परामर्श कर छोटे उद्योगों और श्रमिकों के लिए पुनर्वास योजना बनानी चाहिए।

भारत में EV की हिस्सेदारी

4-व्हीलर: 2.39%

2-व्हीलर: 6.6%

बसों: 7%

कुछ रिपोर्टों के अनुसार, EV को लेकर शुरुआती उत्साह अब धीमा पड़ गया है। कंपनियां खरीदारों को आकर्षित करने के लिए भारी छूट दे रही हैं। नई नीति के साथ ही Mercedes, Kia और Hyundai भारत में निवेश को तैयार हैं। लेकिन Elon Musk की Tesla अभी भी भारत के EV बाजार को लेकर अनिश्चित है। क्योंकि टेस्ला जैसे हाई-एंड मॉडल की कीमत आम EV से दोगुनी होती है।

EV क्रांति

नई EV नीति से जुड़े कई सवालों के जवाब मिलने बाकी हैं. जैसे कि क्या यह नीति घरेलू कंपनियों को बराबर मौका देगी? क्या चार्जिंग नेटवर्क की समस्या दूर होगी? क्या यह नीति विदेशी कंपनियों को अधिक मुनाफा नहीं देगी? जब तक इन सवालों के जवाब नहीं मिलते, तब तक यह कहना मुश्किल है कि यह नीति भारत को हरित भविष्य की ओर ले जा पाएगी या नहीं।

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