खनिज संपन्न राज्यों के साथ रॉयल्टी-टैक्स विवाद सुलझाने की कोशिश, सुप्रीम कोर्ट में बोला केंद्र
royalty and tax dues dispute: सुप्रीम कोर्ट के 2024 के फैसले ने 1989 के फैसले को खारिज कर दिया, जिसमें कहा गया था कि केवल केंद्र के पास खनिजों और खनिज युक्त भूमि पर रॉयल्टी लगाने का अधिकार है.;

mineral-rich states: केंद्र सरकार और कई खनिज-सम्पन्न राज्यों के बीच खनिज अधिकारों और खनिज-संपन्न भूमि पर रॉयल्टी और टैक्स बकाए को लेकर विवाद का समाधान खोजने की कोशिश जारी है. यह जानकारी केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट को 20 मार्च को दी. सुप्रीम कोर्ट ने झारखंड जैसे खनिज-सम्पन्न राज्यों की याचिका पर सुनवाई 24 अप्रैल तक स्थगित कर दी, जिसमें ये राज्य केंद्र और खनन कंपनियों से हजारों करोड़ रुपये के रॉयल्टी और टैक्स बकाए की वसूली की मांग कर रहे हैं. सुप्रीम कोर्ट की तीन न्यायाधीशों की विशेष पीठ ने यह स्पष्ट किया कि वह यह तय करेंगे कि राज्यों की याचिकाओं पर किस क्रम में सुनवाई की जाएगी.
बता दें कि इस स्पेशल पीठ में जस्टिस अभय एस ओका, एमएम सुंदरेश और उज्जल भूयान शामिल हैं. केंद्र सरकार की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि इस विवाद का समाधान ढूंढने के प्रयास किए जा रहे हैं और याचिकाएं मई के पहले सप्ताह में सूचीबद्ध की जा सकती हैं. वहीं, झारखंड की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता राकेश द्विवेदी ने अदालत से आग्रह किया कि समझौता किसी भी चरण में किया जा सकता है और सुनवाई में कोई और देरी नहीं होनी चाहिए.
यह विवाद 25 जुलाई 2023 के सुप्रीम कोर्ट के फैसले से जुड़ा है, जिसमें तत्कालीन चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड की अध्यक्षता वाली 9 न्यायाधीशों की पीठ ने 8:1 के बहुमत से यह निर्णय दिया था कि खनिज अधिकारों पर टैक्स लगाने का विधायी अधिकार राज्यों के पास है, न कि संसद के पास. इस फैसले ने 1989 के उस निर्णय को पलट दिया था, जिसमें केवल केंद्र को खनिज और खनिज-संपन्न भूमि पर रॉयल्टी लगाने का अधिकार दिया गया था
इसके बाद 14 अगस्त 2023 को सुप्रीम कोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि यह निर्णय भविष्य में लागू नहीं होगा और खनिज-सम्पन्न राज्यों को केंद्र और खनन कंपनियों से 1 अप्रैल 2005 से लेकर 12 वर्षों तक के रॉयल्टी और टैक्स बकाए की वसूली की अनुमति दी. इस मामले को हल करने के लिए जस्टिस ओका की अध्यक्षता में एक विशेष पीठ का गठन किया गया था. द्विवेदी ने अदालत से अपील की थी कि खनिज-सम्पन्न राज्यों की याचिकाओं पर सुनवाई जल्द से जल्द की जाए, जो बकाए की वसूली और उसे प्राप्त करने में कानूनी अड़चनों से संबंधित हैं.
झारखंड में खनिज और खनिज-संपन्न भूमि पर कर लगाने से संबंधित कानूनी अड़चनों का भी उन्होंने उल्लेख किया था. द्विवेदी ने कहा कि झारखंड का वह कानून, जिसके तहत खनिज और खनिज-संपन्न भूमि पर रॉयल्टी का कलेक्शन किया जाता था, पहले खारिज किया जा चुका था. लेकिन अब इसे फिर से लागू किया जाना चाहिए. उन्होंने कोर्ट से कहा कि जब तक खनिज क्षेत्र विकास प्राधिकरण अधिनियम को वैध घोषित नहीं किया जाता, हम खनिज और खनिज-संपन्न भूमि पर कर नहीं वसूल सकते. कृपया इसे उपयुक्त पीठ के समक्ष शीघ्र सूचीबद्ध करें.
यह बयान 1993 के पटना हाई कोर्ट के फैसले से संबंधित था, जिसमें रांची पीठ ने खनिज क्षेत्र विकास प्राधिकरण अधिनियम 1992 की धारा 89 को रद्द कर दिया था. धारा 89 राज्य सरकारों को खनिज-संपन्न भूमि पर टैक्स लगाने का अधिकार देती थी, साथ ही वाणिज्यिक और औद्योगिक प्रयोजनों के लिए उपयोग की जाने वाली भूमि पर भी कर लगाने का अधिकार प्रदान करती थी. कुछ विपक्षी-शासित खनिज-सम्पन्न राज्यों ने 1989 के फैसले के बाद खनिज कंपनियों से रॉयल्टी और टैक्स की वसूली के लिए केंद्र के खिलाफ याचिकाएं दायर की थीं.