संसद सत्र में सरकार की 'सर्जिकल स्ट्राइक', विपक्ष ढूंढता रह गया एजेंडा

संसद सत्र के पहले दिन ही सरकार ने विपक्ष की रणनीति को चौंकाया। ऑपरेशन सिंदूर पर चर्चा की सहमति से विपक्ष की आक्रामकता कमजोर पड़ी।;

Update: 2025-07-22 01:28 GMT

21 जुलाई की सुबह जब संसद का मानसून सत्र शुरू हुआ, तो विपक्ष ने भारी विरोध के साथ शुरुआत की। लेकिन जैसे-जैसे कार्यवाही आगे बढ़ी, सरकार की चौंकाने वाली रणनीति ने विपक्ष को असहज और कुछ हद तक स्तब्ध कर दिया। पिछले दो दिनों से INDIA गठबंधन ने अंदरूनी मतभेद भुलाकर एक संयुक्त रणनीति बनाई थी कि कैसे सत्र शुरू होते ही सरकार को ऑपरेशन सिंदूर, पहलगाम आतंकी हमले और बिहार की मतदाता सूची में हो रहे विशेष संशोधन (SIR) जैसे मुद्दों पर घेरा जाए।

विपक्ष की तैयारी और शुरुआत

19 जुलाई को विपक्ष ने साझा प्रेस वार्ता में यह तय किया कि संसद के पहले ही दिन इन मुद्दों पर चर्चा की मांग उठेगी। 20 जुलाई को सर्वदलीय बैठक में भी उन्होंने वही दोहराया। 21 जुलाई को सुबह जब संसद शुरू होने वाली थी, तो लोकसभा और राज्यसभा दोनों में विपक्षी सांसदों ने कार्य स्थगन नोटिस दाखिल किए ताकि ऑपरेशन सिंदूर और बिहार SIR पर चर्चा कराई जा सके।लेकिन हर बार की तरह इस बार भी लोकसभा अध्यक्ष ओम बिड़ला और राज्यसभा सभापति जगदीप धनखड़ ने विपक्ष के नोटिस फौरन खारिज कर दिए, जिससे सदन में हंगामा शुरू हो गया।

लोकसभा में टकराव और स्थगन

राहुल गांधी, जो अब लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष हैं, उन्हें फिर से बोलने का मौका नहीं दिया गया। रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने सदन को आश्वासन जरूर दिया कि सरकार ऑपरेशन सिंदूर सहित सभी मुद्दों पर चर्चा को तैयार है। फिर भी, विपक्षी सांसद वेल में उतर आए और बार-बार कार्यवाही स्थगित होती रही — दोपहर 12 बजे, फिर 2 बजे और अंततः 4 बजे दिनभर के लिए।

राज्यसभा में सरकार की चाल

वास्तविक चौंकाने वाली बात राज्यसभा में हुई। जहां विपक्ष को लगा कि उनका नोटिस एक बार फिर खारिज हो जाएगा, वहां बीजेपी सांसद समीक भट्टाचार्य के नियम 167 के तहत दिए गए नोटिस को सभापति धनखड़ ने स्वीकार कर लिया। यह नोटिस "ऑपरेशन सिंदूर: सैन्य कौशल और कूटनीतिक सफलता की मिसाल" पर चर्चा के लिए था।

धनखड़ ने इसे “नो-डे-येट-नेम्ड मोशन” के रूप में सूचीबद्ध कर दिया, यानी इसकी तारीख बाद में तय होगी, लेकिन चर्चा की सहमति मिल गई थी। इससे स्पष्ट हो गया कि विपक्ष द्वारा नियम 267 के तहत चर्चा की जो मांग की गई थी, उसे स्वीकार नहीं किया जाएगा।

विपक्ष असमंजस में

राज्यसभा में मल्लिकार्जुन खड़गे की अपेक्षाकृत कमजोर आपत्ति और जेपी नड्डा का यह दोहराना कि सरकार "हर पहलू" पर चर्चा को तैयार है, ये संकेत था कि सोमवार को सरकार ने विपक्ष को रणनीतिक रूप से पछाड़ दिया।राज्यसभा में Bills of Lading Bill, 2025 पास भी हो गया, जबकि लोकसभा में पूरे दिन हंगामे से काम नहीं हो सका। लेकिन चूंकि सरकार ने खुद ही ऑपरेशन सिंदूर पर चर्चा की बात मान ली थी, विपक्ष के पास उस मुद्दे पर विरोध करने के ज्यादा कारण नहीं बचे।

कांग्रेस सांसद का सवाल: क्या मोदी हर मुद्दे पर जवाब देंगे?

कांग्रेस सांसद रेणुका चौधरी ने The Federal से कहा हम देखेंगे सरकार क्या कहती है। उन्हें सदन में आकर जवाब देना होगा। हमारे सवाल सिर्फ ऑपरेशन सिंदूर तक सीमित नहीं हैं — बिहार SIR, विदेश नीति की असफलताएं, महिलाओं पर अत्याचार — क्या प्रधानमंत्री इन सब पर चर्चा का साहस दिखाएंगे?"

ऑपरेशन सिंदूर पर सरकार का ‘जोश’ क्यों?

कुछ विपक्षी नेताओं को शक है कि सरकार जानबूझकर ऑपरेशन सिंदूर पर चर्चा को बढ़ावा दे रही है ताकि वह इसका राजनीतिक लाभ उठा सके। खास बात यह रही कि सामान्यत: सरकार विवादित मुद्दों पर नियम 176 के तहत चर्चा पसंद करती है, जिसमें सिर्फ ढाई घंटे का समय होता है, लेकिन इस बार नियम 167 चुना गया — जिसमें वोटिंग के साथ बहस होती है और समय भी ज़्यादा मिल सकता है।

लोकसभा के पूर्व महासचिव पी.डी.टी. आचार्य ने कहा नियम 167 विपक्ष के लिए बेहतर था क्योंकि यह वोट के साथ बहस की मांग करता है। समय सीमा भी लचीली होती है, और विपक्ष चाहें तो उसमें संशोधन की मांग भी कर सकता है।उन्होंने यह भी कहा कि विपक्ष ने नियम 267 के उपयोग को गलत समझा है, जो कि राज्यसभा में केवल दुर्लभ स्थितियों में ही लागू होता है।

पीएम मोदी ने तोड़ी परंपरा, दिए संकेत

हर सत्र की शुरुआत में पीएम संसद आने से पहले संक्षिप्त बयान देते हैं, लेकिन इस बार नरेंद्र मोदी ने बयान की जगह भाषण दिया। उन्होंने मानसून सत्र को "विजय उत्सव" करार देते हुए कहा ऑपरेशन सिंदूर की सफलता, सेना की ताकत और 140 करोड़ भारतीयों की प्रेरणा इस सत्र में झलकेगी। राजनीतिक मतभेद हो सकते हैं, पर राष्ट्रीय हित में एकता जरूरी है। इस भाषण से स्पष्ट हो गया कि सरकार ऑपरेशन सिंदूर को राष्ट्रीय गौरव और चुनावी हथियार के तौर पर पूरी तरह भुनाने के मूड में है। खासकर जब बिहार में चुनाव करीब हैं, और राज्य का ज़िक्र मोदी ने अपने भाषण में भी किया।

अगला मोर्चा: बहस की भाषा

अब विपक्ष की निगाहें इस पर टिकी हैं कि सदन में ऑपरेशन सिंदूर पर बहस की भाषा और फ्रेमिंग कैसी होगी। यदि सरकार ने इसे "सेना के सम्मान" बनाम "विपक्ष की आलोचना" का मुद्दा बना दिया, तो विपक्ष के लिए बोलना मुश्किल हो सकता है।अब गेंद विपक्ष के पाले में है क्या वे सरकार की राष्ट्रवादी कथा के बीच तथ्यों और संवैधानिक सवालों को उठा पाएंगे? क्या वे सधी हुई भाषा में सरकार की रणनीति में सेंध लगा पाएंगे, बिना राष्ट्र-विरोधी ठहराए जाने के डर के?

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