भारत के सामने है 'विशेष चीन समस्या', जानें ऐसा क्यों बोले विदेश मंत्री एस जयशंकर

विदेश मंत्री एस जयशंकर ने कहा कि भारत के सामने एक 'विशेष चीन समस्या' है और एलएसी पर चार साल से चल रहा सैन्य गतिरोध और द्विपक्षीय संबंधों की स्थिति चीनी निवेश जांच की मांग करती है.

Update: 2024-08-31 17:03 GMT

India-China Relations: विदेश मंत्री एस जयशंकर ने शनिवार को कहा कि भारत के सामने एक 'विशेष चीन समस्या' है और वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर चार साल से चल रहा सैन्य गतिरोध और द्विपक्षीय संबंधों की स्थिति चीनी निवेश की जांच जैसे एहतियाती उपायों की मांग करती है. पिछले लंबे समय से भारत-चीन संबंधों के सामान्यीकरण को सीमा पर शांति और स्थिरता से अलग नहीं करने की बात कहने वाले जयशंकर ने नई दिल्ली में एक सम्मेलन में विदेश नीति के मुद्दों पर बोलते हुए यह टिप्पणी की.

बता दें कि अप्रैल-मई 2020 में एलएसी पर गतिरोध शुरू होने के बाद से दोनों एशियाई देशों के बीच संबंध छह दशक के निचले स्तर पर हैं. जयशंकर ने कहा कि भारत चीन से जुड़ी समस्याओं पर बहस करने वाला एकमात्र देश नहीं है. क्योंकि चीन यूरोपीय देशों और अमेरिका में प्रमुख आर्थिक और राष्ट्रीय सुरक्षा चर्चाओं में से एक है. भारत के सामने एक चीन समस्या है, एक विशेष चीन समस्या, जो दुनिया की सामान्य चीन समस्या से अलग है.

उन्होंने कहा कि चीन के साथ व्यापार, निवेश और विभिन्न प्रकार के आदान-प्रदान से निपटने के दौरान बुनियादी बातें पटरी से उतरने लगती हैं. अगर कोई यह विचार करने की उपेक्षा करता है कि यह एक बहुत ही अनूठा देश है, जिसका काम करने का तरीका बहुत अलग है. भारत में पिछले चार वर्षों से “सीमा पर बहुत कठिन स्थिति” है और समझदारी भरा कदम सावधानी बरतना है.

जयशंकर ने कहा कि यह सामान्य ज्ञान है कि चीन से निवेश की जांच की जाएगी. मुझे लगता है कि भारत और चीन के बीच सीमा और संबंधों की स्थिति इसकी मांग करती है. यहां तक ​​कि जिन देशों की सीमा चीन से नहीं लगती है. जैसे कि अमेरिका और यूरोपीय देश, वे भी चीनी निवेश की जांच कर रहे हैं.अब सरकार का यह रुख कभी नहीं रहा है कि हमें चीन से निवेश नहीं लेना चाहिए या चीन के साथ व्यापार नहीं करना चाहिए. मुद्दा यह नहीं है कि आपके पास चीन से निवेश है या नहीं. इसका जवाब हां या नहीं नहीं है. यह जांच का उचित स्तर क्या होना चाहिए, आपको इसे कैसे संभालना चाहिए.

जयशंकर ने तर्क दिया कि राष्ट्रीय सुरक्षा की अवधारणा का भी विस्तार किया गया है. अगर हम चीन की दवाइयों पर पूरी तरह से निर्भर हैं तो क्या इसका राष्ट्रीय सुरक्षा पर कोई असर नहीं होगा? अगर आपका टेलीकॉम चीनी तकनीक पर आधारित है तो क्या आप इससे अप्रभावित रह सकते हैं?"

जयशंकर ने कहा कि यह एक जटिल कारक है और कुछ देशों के साथ अर्थव्यवस्था और सुरक्षा के बीच का अंतर "बहुत पतली रेखा" है. भारत सहित कई देश चीन के साथ व्यापार घाटे की शिकायत कर रहे हैं. क्योंकि उन्होंने दशकों पहले "जानबूझकर चीनी उत्पादन की प्रकृति और उन लाभों को अनदेखा करना चुना, जो उन्हें एक ऐसी प्रणाली में मिले थे, जहां उन्हें समान अवसर मिले थे.

बता दें कि मई में, जयशंकर ने तर्क दिया था कि भारतीय फर्मों को "राष्ट्रीय सुरक्षा फ़िल्टर" के माध्यम से चीन के साथ व्यापारिक सौदों का आकलन करना चाहिए और एलएसी पर गतिरोध के बीच घरेलू निर्माताओं से अधिक सोर्सिंग करनी चाहिए. भारतीय उद्योग परिसंघ (CII) के वार्षिक व्यापार शिखर सम्मेलन में बोलते हुए, उन्होंने तर्क दिया था कि व्यावसायिक प्रस्तावों में राष्ट्रीय सुरक्षा संवेदनशीलता का मूल्यांकन किया जाना चाहिए.

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