GST 2.0 सिर्फ नीतिगत भूलों की भरपाई, न कि कोई क्रांतिकारी सुधार

GST 2.0 को लेकर सरकार की ओर से इसे बड़ा सुधार बताया जा रहा है, लेकिन विशेषज्ञ इसे नीति की पुरानी खामियों की 'सुधार प्रक्रिया'** मान रहे हैं, न कि वास्तविक सुधार।;

Update: 2025-09-05 16:47 GMT
Click the Play button to listen to article

केंद्र सरकार ने हाल ही में GST 2.0 के तहत कृषि यंत्रों, उर्वरकों और दुग्ध उत्पादों पर टैक्स में कटौती को “किसान हितैषी” बताया है। लेकिन विशेषज्ञों का मानना है कि ये असल में सुधार नहीं, बल्कि पहले से की गई नीतिगत गलतियों की देरी से हुई सुधारात्मक पहल है। कृषि विशेषज्ञ और लेखक देविंदर शर्मा ने इन बदलावों पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि इन्हें सुधार कहना सही नहीं होगा। ये जरूरी सुधार तो पहले ही किए जाने चाहिए थे। सरकार जिस बदलाव को सुधार कह रही है, वह असल में एक लंबे समय से लंबित सुधारात्मक कदम है।

क्या GST किसानों पर बोझ बना रहा था?

GST लागू होने के बाद से ही किसानों पर आर्थिक दबाव बना रहा, क्योंकि वे अन्य सेक्टर्स की तरह Input Tax Credit (ITC) का लाभ नहीं उठा सकते। खेती में उपयोग होने वाली मशीनरी, जैविक कीटनाशक, पंप और अन्य उपकरणों पर लगाया गया टैक्स सीधे किसानों की जेब से जाता है। शर्मा बताते हैं कि अब टैक्स कटौती के बाद ट्रैक्टर पर ₹45,000 से ₹50,000 तक की राहत मिल रही है, जो निश्चित रूप से किसानों के लिए फायदेमंद है। लेकिन ये राहत बहुत पहले मिल जानी चाहिए थी।


Full View

क्या छोटे किसानों को भी मिलेगा लाभ

ट्रैक्टर, सिंचाई पंप और कृषि यंत्रों पर अब केवल 5% GST लगेगा, जिससे छोटे किसानों को भी राहत मिल सकती है। देविंदर शर्मा ने कहा कि यह धारणा गलत है कि छोटे किसान मशीनों का उपयोग नहीं करते। पंजाब में लगभग 5.5 लाख ट्रैक्टर हैं, जबकि जरूरत केवल 1 लाख की है। यह मशीनों के प्रति आकर्षण को दर्शाता है। मशीनों का अधिक प्रचार और सब्सिडी के कारण कई बार किसान बेवजह ऐसे यंत्र खरीदते हैं, जो साल भर में सिर्फ 2–3 हफ्तों के लिए उपयोग होते हैं, जैसे कि हैप्पी सीडर।

GST में ITC का लाभ नहीं मिलने से क्या किसान नुकसान में हैं?

शर्मा कहता हैं बिल्कुल, जब कोई उपभोक्ता मोबाइल खरीदता है तो टैक्स का बोझ आगे बढ़ता है। लेकिन किसान के मामले में, पूरा बोझ उसी के ऊपर रहता है। इससे न केवल लागत बढ़ती है, बल्कि आय पर भी असर पड़ता है। उनके अनुसार या तो कृषि को पूरी तरह GST से मुक्त किया जाए या फिर किसानों के लिए ITC का कोई विशेष तंत्र विकसित किया जाए।

दूध, पनीर, घी सस्ते होने से ग्रामीण मांग बढ़ेगी?

हालिया फैसले के तहत दूध और पनीर को टैक्स-मुक्त रखा गया है, जबकि घी, मक्खन और चीज़ पर GST घटाया गया है। देविंदर शर्मा कहते हैं कि जब इन वस्तुओं पर टैक्स लगाया गया था, तब किसी ने नहीं कहा कि मांग घटेगी। अब जब टैक्स घटाया गया है तो कहा जा रहा है कि मांग बढ़ेगी। यह केवल आर्थिक शब्दजाल है। असल में सवाल यह है कि बेसिक फूड आइटम्स पर टैक्स क्यों लगाया गया? यह पूरी तरह जनविरोधी फैसला था।

किन सुधारों की जरूरत है?

देविंदर शर्मा का मानना है कि सबसे बड़ा सुधार यह होगा कि पूरे कृषि क्षेत्र को GST से पूरी तरह छूट दी जाए। जब किसानों की औसत सालाना आय ₹20,000 से भी कम है तो उन पर टैक्स लगाना अन्याय है। देश में औसत कृषि परिवार की मासिक आय सिर्फ ₹10,000 है। ऐसे में 5% GST भी बहुत भारी पड़ता है। जब तक किसान और सरकारी कर्मचारी की आय में समानता नहीं लाई जाती, तब तक ये सभी सुधार केवल 'लिपस्टिक सुधार' ही कहलाएंगे — असली समाधान नहीं।

Tags:    

Similar News