विपक्ष का अविश्वास प्रस्ताव, पास हो पायेगा या नहीं, क्या कहता है संविधान ?
संविधान विशेषज्ञ एसके शर्मा का कहना है कि विपक्ष को ये अधिकार है कि वो चारिमन के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव ला सकता है लेकिन वो जो आरोप लगा रहा है उनकी समीक्षा भी जरुरी है कि वो कितने गंभीर हैं?
By : Abhishek Rawat
Update: 2024-12-10 11:45 GMT
No Confidence Motion : राज्यसभा के सभापति जगदीप धनखड़ के खिलाफ विपक्षी दलों द्वारा पेश किया गया अविश्वास प्रस्ताव न केवल राजनीतिक रूप से बल्कि संवैधानिक दृष्टिकोण से भी महत्वपूर्ण है। यह प्रस्ताव एक ऐसे समय में लाया गया है जब देश में संसदीय प्रक्रियाओं की निष्पक्षता और लोकतांत्रिक मूल्यों पर गंभीर सवाल उठाए जा रहे हैं।
संविधान विशेषज्ञों की राय:
संविधान एक्सपर्ट एसके शर्मा का कहना है कि "राज्यसभा के सभापति के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाने का निर्णय दुर्लभ है और यह तभी होता है जब विपक्ष को ऐसा लगता है कि सदन का संचालन निष्पक्ष तरीके से नहीं किया जा रहा है। यह लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं में एक मजबूत संदेश देने का तरीका है। हालांकि, इसे पारित करने के लिए बहुमत आवश्यक है, जो विपक्ष के पास नहीं है।" उनका कहना है कि नो कॉन्फिडेंस मोशन लाना आसान हो सकता है लेकिन उस पर कार्रवाई हो पाना मुश्किल है, इसके पीछे की असल वजह है आरोपों में दम है या नहीं? अगर आरोप सिर्फ हवा में लगाये गए हैं तो मान के चलिए कि ये सिर्फ समय बर्बाद करने के लिए ही किया गया है या फिर किसी मुद्दे से ध्यान भटकाने के लिए.
पहले समझते हैं कि नो कॉन्फिडेंस मोशन की प्रक्रिया क्या होती है
नो कॉन्फिडेंस मोशन की बात करें तो विपक्ष के पास ये अधिकार है कि वो नो कॉन्फिडेंस मोशन ला सकता है. लेकिन ऐसा भी नहीं है कि गैर जरुरी कारणों से भी नो कॉन्फिडेंस मोशन ले आया जाए. अगर ऐसा किया जाता है तो इसे तुरंत ही खारिज कर दिया जाता है.
जब भी कोई नो कॉन्फिडेंस मोशन लाया जाता है तो वो पहले जाँच के लिए सचिवालय में जाता है.
जाँच में ये देखा जाता है कि जो आरोप लगाये हैं उनकी गंभीरता क्या है?
ये भी देखा जाता है कि अविश्वास प्रस्ताव किस समय पर लाया गया है?
इसके बाद सचिवालय की तरफ से कमेंट्स मांगे जाते है कि सभापति के किस कथन पर विपक्ष को ऐसा लगा कि उसे अविश्वास प्रस्ताव लाना पड़ा.
इसके बाद उन आरोपों का अवलोकन किया जाता है कि वो नियमानुसार किस श्रेणी में आते हैं? कहीं ऐसा तो नहीं कि सिर्फ हवा में आरोप लगाये गए हों? अगर ऐसा है तो प्रस्ताव को तुरंत ही ख़ारिज कर दिया जाता है.
अगर ऐसा नहीं है तो फिर एक समिति में आरोपों से सम्बंधित चार्जशीट को पेश किया जाता है. समिति नियमों के अनुसार आरोपों की जाँच करती है और उनसे ससंबंधित तथ्यों को मांगती है.
ये भी देखा जाता है कि चार्ज ऐडमिसिबल हैं भी या नहीं.
संविधान विशेषज्ञ मानते हैं कि सभापति या स्पीकर जैसे पदाधिकारियों के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव संसद की कार्यवाही का एक वैध हिस्सा है। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 94 और 96 के तहत लोकसभा के अध्यक्ष और उपाध्यक्ष को हटाने का प्रावधान है, जबकि राज्यसभा के सभापति के मामले में यह प्रक्रिया राज्यसभा के नियमों द्वारा संचालित होती है।
प्रस्ताव की संभावनाएं
प्रस्ताव के सफल होने की संभावना कम है। विपक्ष के पास राज्यसभा में साधारण बहुमत (50%+1) के लिए आवश्यक संख्या बल नहीं है। प्रस्ताव को पहले राज्यसभा में और फिर लोकसभा में पारित करना होगा, लेकिन दोनों जगह विपक्ष के पास पर्याप्त समर्थन नहीं है।
संसदीय प्रक्रिया और प्रस्ताव की संवैधानिक स्थिति
1. अविश्वास प्रस्ताव का महत्व:
राज्यसभा के सभापति, जो उपराष्ट्रपति भी होते हैं, की भूमिका सदन में तटस्थता बनाए रखने की होती है। अगर विपक्ष उन पर पक्षपात का आरोप लगाता है, तो यह संसदीय प्रणाली में शक्ति संतुलन के लिए एक गंभीर मुद्दा है।
2. संसदीय नियमावली:
राज्यसभा की कार्यवाही के नियमों के अनुसार, सभापति को हटाने का प्रस्ताव सदन में तभी पारित हो सकता है जब इसे सदन में उपस्थित सदस्यों का साधारण बहुमत प्राप्त हो। इसके बाद प्रस्ताव लोकसभा में भी पारित होना चाहिए।
3. वर्तमान परिस्थिति:
विपक्ष के पास न तो राज्यसभा और न ही लोकसभा में पर्याप्त बहुमत है। इस प्रकार, यह प्रस्ताव अधिकतर प्रतीकात्मक है।
लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं पर प्रभाव
संविधान विशेषज्ञ यह भी मानते हैं कि इस प्रकार के कदम संसदीय कार्यवाही को बाधित करने के साथ-साथ लोकतांत्रिक संवाद को बढ़ावा देने का अवसर भी प्रदान करते हैं।
संविधान और सभापति की भूमिका
संविधान विशेषज्ञों की दृष्टि में यह प्रस्ताव संसदीय प्रणाली में विश्वास बनाए रखने और लोकतांत्रिक मूल्यों की रक्षा के लिए एक आवश्यक कदम है। हालांकि, इसकी सफलता की संभावनाएं कम हैं, लेकिन यह भारतीय राजनीति में एक महत्वपूर्ण चर्चा का विषय बन गया है।
यह कदम केवल सत्ता पक्ष को चुनौती देने के लिए नहीं है, बल्कि यह संसद की निष्पक्षता और उसकी लोकतांत्रिक कार्यप्रणाली की रक्षा के लिए एक सशक्त संदेश है।