सुप्रीम कोर्ट से हाई कोर्ट तक, किन जजों पर चल चुका है महाभियोग?
देश के न्यायिक इतिहास में अब तक कुल पांच जजों के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव लाया गया है। सरकार जस्टिस यशवंत वर्मा पर महाभियोग प्रस्ताव ला सकती है।;
केंद्र सरकार सुप्रीम कोर्ट के न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव लाने की तैयारी कर रही है। मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक यह प्रस्ताव राज्यसभा के आगामी मानसून सत्र में पेश किया जा सकता है। अगर जस्टिस वर्मा स्वयं इस्तीफा नहीं देते, तो संसद में उनके विरुद्ध प्रस्ताव लाना सरकार के लिए स्पष्ट और अगला कदम होगा।
पूर्व CJI की सिफारिश के बाद बढ़ा दबाव
यह कदम पूर्व मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना की सिफारिश के बाद सामने आया है। पूर्व CJI खन्ना ने एक आंतरिक जांच समिति की रिपोर्ट राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री को सौंप दी है, जिसमें जस्टिस वर्मा को हटाने की अनुशंसा की गई है।
महाभियोग प्रस्ताव को राज्यसभा में लाने के लिए कम से कम 50 सांसदों के हस्ताक्षर अनिवार्य हैं। ऐसे में सरकार विपक्ष का भी समर्थन चाहेगी ताकि संवैधानिक प्रक्रिया को उचित ढंग से आगे बढ़ाया जा सके।
अब तक कोई जज नहीं हटाया गया
स्वतंत्र भारत के इतिहास में अब तक सुप्रीम कोर्ट या हाई कोर्ट के किसी भी जज को महाभियोग प्रक्रिया के जरिये हटाया नहीं जा सका है। अब तक पांच बार ऐसी कार्यवाहियां शुरू की गईं, लेकिन सभी अधूरी रह गईं। इनमें चार प्रस्ताव राज्यसभा में पेश किए गए थे।
अब तक के प्रमुख महाभियोग प्रस्ताव
न्यायमूर्ति वी. रामास्वामी (सुप्रीम कोर्ट, 1993):
लोकसभा में बहस के बाद प्रस्ताव को पर्याप्त समर्थन नहीं मिला, अंततः खारिज कर दिया गया।
(कपिल सिब्बल ने उनकी ओर से बचाव किया था।)
न्यायमूर्ति सौमित्र सेन (कलकत्ता हाई कोर्ट, 2011):
राज्यसभा से प्रस्ताव पारित हुआ, लेकिन लोकसभा में मतदान से पहले उन्होंने इस्तीफा दे दिया।
न्यायमूर्ति एस.के. गांगले (मध्य प्रदेश हाई कोर्ट, 2015):
जांच समिति ने उन्हें दोषी नहीं पाया, परिणामस्वरूप प्रस्ताव गिर गया।
न्यायमूर्ति सी.वी. नागार्जुन रेड्डी (आंध्र-तेलंगाना हाई कोर्ट, 2017):
कुछ सांसदों ने अपने हस्ताक्षर वापस ले लिए, जिससे प्रस्ताव आगे नहीं बढ़ सका।
मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा (सुप्रीम कोर्ट, 2018):
राज्यसभा में लाया गया प्रस्ताव तत्कालीन सभापति वेंकैया नायडू ने अस्वीकार कर दिया।
संविधान के तहत प्रक्रिया
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 124(4) और 124(5) के तहत, सुप्रीम कोर्ट या हाई कोर्ट के किसी जज को तभी हटाया जा सकता है जब संसद के दोनों सदनों द्वारा पारित विशेष बहुमत से प्रस्ताव राष्ट्रपति तक पहुंचे।
इस ‘विशेष बहुमत’ का अर्थ है:
सदन के कुल सदस्यों का बहुमत, और
उपस्थित और मतदान करने वाले सदस्यों का दो-तिहाई बहुमत।
आगे क्या?
अब निगाहें इस पर टिकी हैं कि क्या जस्टिस यशवंत वर्मा स्वयं पद छोड़ेंगे या फिर संसद में इतिहास रचने की दिशा में एक नया अध्याय शुरू होगा। अगर महाभियोग प्रक्रिया आगे बढ़ती है, तो यह भारत की न्यायपालिका और कार्यपालिका के बीच संतुलन को लेकर एक निर्णायक मोड़ साबित हो सकता है।