बिना डीज़ल-बिजली, अब पटरियों पर दौड़ेगी हाइड्रोजन से रेल
भारत में पहली हाइड्रोजन ट्रेन का सफल परीक्षण ICF चेन्नई में हुआ। यह तकनीक न बिजली पर निर्भर होगी, न डीजल पर। रेलवे की हरित क्रांति की शुरुआत।;
भारत अब रेलवे क्षेत्र में नई क्रांति की ओर बढ़ रहा है। जल्द ही देश में ऐसी ट्रेनें दौड़ती नजर आएंगी जो न बिजली पर चलेंगी, न ही डीजल या किसी जीवाश्म ईंधन पर। चेन्नई स्थित इंटीग्रल कोच फैक्ट्री (ICF) में हाइड्रोजन से चलने वाले ट्रेन डिब्बों का सफल परीक्षण हो चुका है, जिसकी पुष्टि खुद रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव ने की है।
क्या होती है हाइड्रोजन ट्रेन?
हाइड्रोजन ट्रेनें वो ट्रेनें होती हैं जो डीजल या बिजली की बजाय हाइड्रोजन गैस को ईंधन के रूप में इस्तेमाल करती हैं। इनमें हाइड्रोजन फ्यूल सेल्स लगे होते हैं जो ऑक्सीजन के साथ प्रतिक्रिया कर ऊर्जा (गर्मी) उत्पन्न करते हैं और बायप्रोडक्ट के रूप में सिर्फ पानी (H₂O) निकलता है। इस कारण इन्हें शुद्ध और पर्यावरण-अनुकूल ईंधन प्रणाली माना जाता है।
क्यों जरूरी हैं हाइड्रोजन ट्रेनें?
आज भी भारत की कई ट्रेनें बिजली पर चलती हैं, लेकिन वह बिजली मुख्य रूप से कोयले जैसे जीवाश्म ईंधन से बनी होती है। वहीं डीजल इंजन भी पर्यावरण के लिए बेहद घातक होते हैं, क्योंकि ये बड़ी मात्रा में कार्बन डाइऑक्साइड छोड़ते हैं। हाइड्रोजन ट्रेनें इन दोनों विकल्पों की तुलना में ज्यादा स्वच्छ, ऊर्जा कुशल और कार्बन उत्सर्जन रहित विकल्प हैं।
'हाइड्रोजन फॉर हेरिटेज' पहल के तहत भारत की तैयारी
रेल मंत्रालय ने 'हाइड्रोजन फॉर हेरिटेज' नाम से एक महत्वाकांक्षी परियोजना शुरू की है। इसके तहत पहले चरण में 35 हाइड्रोजन ट्रेनों को ट्रैक पर उतारने की योजना है। एक ट्रेन पर लगभग 80 करोड़ रुपये और आवश्यक बुनियादी ढांचे पर 70 करोड़ रुपये तक का खर्च आ सकता है।
पायलट प्रोजेक्ट के तौर पर हरियाणा के जींद-सोनीपत रूट पर हाइड्रोजन फ्यूल से चलने वाली DEMU ट्रेनों का परीक्षण किया गया है, जो काफी हद तक सफल रहा है। इसके साथ ही कालका-शिमला रूट पर भी इस तकनीक को परखा जाएगा।
क्या हैं तकनीकी चुनौतियां?
अधिकारियों के अनुसार, अभी मुख्य चुनौती हाइड्रोजन फ्यूल सेल की क्षमता बढ़ाना है ताकि एक बार फ्यूल भरने पर ज्यादा ऊर्जा और दूरी तय की जा सके। साथ ही गति और माइलेज को भी बेहतर बनाने पर काम जारी है।
हाइड्रोजन ट्रेन चलाने वाले प्रमुख देश
भारत अगर इस तकनीक को सफलतापूर्वक लागू करता है, तो वह उन गिने-चुने देशों में शामिल हो जाएगा जिन्होंने रेलवे में हाइड्रोजन तकनीक को अपनाया है:
जर्मनी: 2016 में शुरू, 1175 किमी तक बिना दोबारा फ्यूल के चली ट्रेन
ब्रिटेन: पुरानी ट्रेनों में हाइड्रोजन टैंक जोड़कर बनाई गई ‘HydroFLEX’ ट्रेन
स्विट्जरलैंड: 2024 में ट्रेन ने 2803 किमी की दूरी तय कर बनाया वर्ल्ड रिकॉर्ड
चीन: यात्रियों की जरूरतों के अनुसार पानी को स्टोर और प्यूरिफाई करने वाली ट्रेन
फ्रांस: 2025 तक 15 हाइड्रोजन ट्रेनों के व्यावसायिक संचालन की योजना
भारत की राह स्वच्छ ऊर्जा की ओर
हाइड्रोजन ट्रेनें सिर्फ एक तकनीकी उन्नति नहीं, बल्कि भारत के रेलवे को हरित भविष्य की ओर ले जाने वाला कदम है। जहां एक ओर इससे पर्यावरण को भारी लाभ मिलेगा, वहीं देश को ऊर्जा के मामले में आत्मनिर्भर बनाने में भी यह एक मील का पत्थर साबित हो सकती है। यदि सबकुछ योजना के अनुसार रहा, तो 2026 तक भारतीय रेल नेटवर्क में शून्य कार्बन उत्सर्जन वाली ट्रेनें आमद दर्ज करा सकती हैं और शायद जींद से सोनीपत तक की हाइड्रोजन ट्रेन इस परिवर्तन की पहली झलक होगी।