ऑपरेशन सिंदूर का नायक अब खुद संकट में, NavIC की चाल लड़खड़ाई
ऑपरेशन सिंदूर में अहम भूमिका निभाने वाला NavIC सिस्टम संकट में है। 11 में से केवल 4 सैटेलाइट सक्रिय हैं और ISRO की देरी से GPS स्वतंत्रता को झटका लग सकता है।;
NavIC News: मई के पहले सप्ताह में पाकिस्तान के खिलाफ हुए ऑपरेशन सिंदूर की बड़ी सफलता के पीछे एक गुमनाम नायक था। भारत का स्वदेशी सैटेलाइट नेविगेशन सिस्टम NavIC (Navigation with Indian Constellation)। यह सिस्टम अत्यंत सटीक (10–20 सेंटीमीटर) स्थिति जानकारी प्रदान कर मिसाइल गाइडेंस और ड्रोन नेविगेशन में अहम भूमिका निभा रहा था।
1999 के कारगिल युद्ध के विपरीत, जब अमेरिका ने भारत को अपना GPS इस्तेमाल करने से रोक दिया था, इस बार भारत ने किसी विदेशी नेविगेशन सिस्टम पर निर्भर हुए बिना कार्रवाई को अंजाम दिया। लेकिन अब खतरे में है यह स्वदेशी प्रणाली है।हालांकि, अब यह सामरिक रूप से महत्वपूर्ण प्रणाली गंभीर संकट से गुजर रही है। NavIC के 11 में से सिर्फ 4 सैटेलाइट दोनों फ्रीक्वेंसी बैंड्स (L5 और S-बैंड) पर डेटा प्रसारित कर पा रहे हैं, जबकि बाकी 7 उपग्रहों में केवल L5 बैंड काम कर रहा है।
एक वरिष्ठ सरकारी अधिकारी ने बताया कि 11 उपग्रह कक्षा में हैं, जिनमें से कुछ काम नहीं कर रहे। 4 उपग्रह पोजिशन, नेविगेशन और टाइमिंग (PNT) सेवाएं दे रहे हैं, 4 केवल सिंगल-वे मैसेज ब्रॉडकास्ट में लगे हैं, 1 डी-कमिशन हो चुका है और 2 उपग्रह लक्ष्यित कक्षा तक पहुंच ही नहीं पाए।
चालू उपग्रह सीमित समय के लिए
चार चालू सैटेलाइट में से एक (RNSS-1B) की जीवन अवधि पूरी हो चुकी है और वह कभी भी काम करना बंद कर सकता है। वहीं दूसरा (IRNSS-1F) भी अंतिम चरण में है और आंशिक रूप से फेल हो चुका है।भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) द्वारा विकसित और संचालित NavIC को सुचारू रूप से चलाने के लिए कम से कम 5-7 पूरी तरह क्रियाशील उपग्रहों की जरूरत होती है।
लॉन्च की जाने वाली योजनाओं में विलंब
ISRO इस संकट को दूर करने के लिए तीन नए उपग्रहों (NVS-03, NVS-04 और NVS-05) को लॉन्च करने की योजना बना रहा है। NVS-03 को 2025 के अंत तक, जबकि बाकी दो को 6-6 महीने के अंतर से भेजने की योजना है।लेकिन विशेषज्ञ इस टाइमलाइन को लेकर संशय में हैं, क्योंकि ISRO का हालिया रिकॉर्ड संतोषजनक नहीं रहा है। NVS-01 मई 2023 में लॉन्च हुआ, जबकि NVS-02 जनवरी 2025 में, जो अपनी सही कक्षा तक नहीं पहुंच पाया। इसी साल एक और नेविगेशन सैटेलाइट लॉन्च भी विफल रहा।
सैन्य और नागरिक उपयोग पर असर
NavIC को केवल सैन्य नहीं, बल्कि नागरिक क्षेत्रों में भी उपयोग में लाने की कोशिशें की जा रही हैं। 2022 में राष्ट्रीय भू-स्थानिक नीति (National Geospatial Policy) इसी उद्देश्य से लाई गई थी, लेकिन GPS पर नागरिक निर्भरता अभी भी बनी हुई है।सेना के रिटायर्ड लेफ्टिनेंट कर्नल वी.एस. वेलन, जो रक्षा मंत्रालय के अंतर्गत इंटीग्रेटेड स्पेस सेल से जुड़े रहे, बताते हैं कि यदि तुरंत नए सैटेलाइट नहीं जोड़े गए, तो भारत की GPS से स्वतंत्रता की महत्वाकांक्षा को झटका लग सकता है। उनकी कंपनी Elena Geo Systems, भारत के नेविगेशन हार्डवेयर और सॉफ्टवेयर निर्माण में लगी है। वेलन ने यह भी बताया कि NavIC की पांचों सेवाओं (पोजिशनिंग, टाइमिंग, मैसेजिंग, रिस्ट्रिक्टेड और नेविगेशन) में से सिर्फ पोजिशनिंग ही फिलहाल इस्तेमाल में है।
रेलवे में भी विफल रहा NavIC प्रयोग
सरकार ने भारतीय रेल की 12,000 ट्रेनों में NavIC आधारित रीयल-टाइम ट्रैकिंग लगाने की योजना बनाई थी। हालांकि रेलवे का दावा है कि 8,700 ट्रेनों में सिस्टम लगा है, लेकिन सूत्रों के अनुसार एक भी ट्रेन में NavIC का वास्तविक उपयोग नहीं हो रहा।NavIC जैसे सामरिक रूप से अहम सिस्टम की उपेक्षा न केवल रक्षा क्षेत्र में जोखिम बढ़ा सकती है, बल्कि तकनीकी आत्मनिर्भरता के सपने को भी धक्का दे सकती है।
विशेषज्ञों और पूर्व रक्षा अधिकारियों ने मांग की है कि नेविगेशन सैटेलाइटों की असफलताओं की जांच कर जवाबदेही तय की जाए, और निर्धारित समय में नए सैटेलाइट्स लॉन्च किए जाएं, ताकि भारत न केवल युद्ध में बल्कि शांति के समय में भी अपने रास्ते खुद तय कर सके।