भारत का न्यूक्लियर पावर अभियान: निजी परमाणु ऑपरेटरों के लिए राहत, जनता के लिए जोखिम

सरकार का तर्क है कि 2010 के कानून में दायित्व अधिक होने के कारण कोई भी निजी परमाणु कंपनी भारत में निवेश के लिए आगे नहीं आई। हालांकि, यह दायित्व 1989 में यूनियन कार्बाइड द्वारा दिए गए मुआवजे से भी कम था।

Update: 2025-12-16 03:04 GMT
Click the Play button to listen to article

जैसा कि अनुमान था, सोमवार (15 दिसंबर) को लोकसभा में पेश किया गया सस्टेनेबल हार्नेसिंग एंड एडवांसमेंट ऑफ न्यूक्लियर एनर्जी फॉर ट्रांसफॉर्मिंग इंडिया (SHANTI) विधेयक 2025 न केवल भारत में निजी कंपनियों को परमाणु संयंत्र संचालित करने की अनुमति देता है, बल्कि किसी भी परमाणु दुर्घटना की स्थिति में बेहद कम दायित्व (लायबिलिटी) सीमा भी तय करता है।

आपदा पर दायित्व सिर्फ 410 मिलियन डॉलर

विधेयक की धारा 13 के अनुसार, किसी परमाणु दुर्घटना की स्थिति में अधिकतम दायित्व 300 मिलियन स्पेशल ड्रॉइंग राइट्स (SDR) रखा गया है। यह सीमा वर्ष 2010 के सिविल लाइबिलिटी फॉर न्यूक्लियर डैमेज एक्ट में तय की गई थी, यानी इसे 15 साल बाद भी संशोधित नहीं किया गया है और इसमें महंगाई तक को शामिल नहीं किया गया। अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) के अनुसार, दिसंबर 2025 में 1 SDR का मूल्य 1.36682 अमेरिकी डॉलर है। इस हिसाब से 300 मिलियन SDR लगभग 410 मिलियन डॉलर या करीब 3,690 करोड़ रुपये (90 रुपये प्रति डॉलर) के बराबर होता है। SDR का मूल्य अमेरिकी डॉलर, यूरो, येन, पाउंड स्टर्लिंग और चीनी रेनमिनबी जैसी प्रमुख मुद्राओं की टोकरी के आधार पर तय किया जाता है।

इस प्रावधान की गंभीरता का अंदाजा इस तथ्य से लगाया जा सकता है कि 1984 में भोपाल गैस त्रासदी के बाद, जिसमें 3,000 से अधिक लोगों की मौत हुई थी, यूनियन कार्बाइड ने 1989 में 470 मिलियन डॉलर का मुआवजा दिया था, जबकि केंद्र सरकार ने 3.3 अरब डॉलर की मांग की थी। 2010 का कानून भी तब अव्यावहारिक माना गया था और मौजूदा विधेयक में भी वही स्थिति बनी हुई है।

ऑपरेटर की अधिकतम जिम्मेदारी

विधेयक की दूसरी अनुसूची के अनुसार, किसी परमाणु दुर्घटना की स्थिति में ऑपरेटर की अधिकतम देनदारी 100 करोड़ रुपये से 3,000 करोड़ रुपये के बीच होगी, जो रिएक्टर की क्षमता पर निर्भर करेगी। 150 मेगावाट तक की तापीय क्षमता वाले रिएक्टर के लिए दायित्व 100 करोड़ रुपये होगा, जबकि 3,600 मेगावाट या उससे अधिक क्षमता वाले रिएक्टर के लिए यह 3,000 करोड़ रुपये तय किया गया है। तुलनात्मक रूप से, 2010 के कानून में 10 मेगावाट या उससे अधिक तापीय क्षमता वाले रिएक्टर के लिए ऑपरेटर की अधिकतम देनदारी 1,500 करोड़ रुपये तय थी। इस लिहाज से भी नया विधेयक पहले से कम दायित्व निर्धारित करता है।

निजी ऑपरेटरों को राहत

विधेयक की धारा 14 के तहत, यदि नुकसान की राशि दूसरी अनुसूची में तय ऑपरेटर की सीमा से अधिक होती है तो शेष राशि केंद्र सरकार वहन करेगी। इसके अलावा केंद्र सरकार “सार्वजनिक हित” का हवाला देकर अधिसूचना के माध्यम से निजी ऑपरेटर की पूरी जिम्मेदारी खुद ले सकती है और इसके लिए एक कोष स्थापित करेगी। अर्थात, यदि किसी परमाणु दुर्घटना से नुकसान बहुत अधिक होता है तो निजी कंपनी की बजाय भारतीय करदाताओं के पैसे से उसकी भरपाई की जाएगी। गंभीर बात यह है कि विधेयक में “सार्वजनिक हित” की कोई स्पष्ट परिभाषा नहीं दी गई है। यही स्थिति 2010 के कानून में भी थी, जब संसद में पारित होते समय इसी अस्पष्ट आधार पर एक प्रावधान जोड़ा गया था। संक्षेप में, यह विधेयक केंद्र सरकार को यह अधिकार देता है कि वह निजी परमाणु संयंत्र संचालकों की गलतियों का बोझ भारतीय नागरिकों पर डाल सके।

दायित्व घटाने के पीछे क्या तर्क?

सरकार का तर्क है कि 2010 के कानून में दायित्व अधिक होने के कारण कोई भी निजी परमाणु कंपनी भारत में निवेश के लिए आगे नहीं आई। हालांकि, यह दायित्व 1989 में यूनियन कार्बाइड द्वारा दिए गए मुआवजे से भी कम था, जबकि परमाणु दुर्घटना जीवन और पर्यावरण के लिए कहीं अधिक विनाशकारी हो सकती है।

निजी परमाणु ऑपरेटरों की जरूरत क्यों?

विधेयक के उद्देश्यों और कारणों में कहा गया है कि केंद्र सरकार 2047 तक 100 गीगावाट परमाणु ऊर्जा क्षमता हासिल करना चाहती है, ताकि ‘विकसित भारत’ के लक्ष्य को पूरा किया जा सके और स्वच्छ ऊर्जा जरूरतों को संबोधित किया जा सके। हालांकि, आलोचकों का कहना है कि भारत पहले ही 50% से अधिक हरित ऊर्जा क्षमता हासिल कर चुका है, लेकिन उससे वास्तविक बिजली उत्पादन केवल 24% है। इसका कारण अपर्याप्त ट्रांसमिशन, निकासी और भंडारण ढांचा है। ऐसे में नई क्षमता जोड़ने के बजाय मौजूदा हरित ऊर्जा के बेहतर उपयोग पर ध्यान देना अधिक व्यावहारिक होता।

एक अहम सवाल यह भी उठ रहा है कि इतना महत्वपूर्ण विधेयक बिना विशेषज्ञों, विपक्षी दलों और आम जनता से व्यापक परामर्श के क्यों पेश किया गया, जबकि संविधान के अनुसार असली संप्रभु जनता ही है। विशेषज्ञों का कहना है कि यह विधेयक केवल छोटे मॉड्यूलर रिएक्टरों (SMR) तक सीमित नहीं है, बल्कि बड़े क्षमता वाले परमाणु रिएक्टरों को भी निजी हाथों में सौंपने का रास्ता खोलता है, जिससे इसके प्रभाव और भी व्यापक हो जाते हैं।

Tags:    

Similar News