उड़ानें ठप, सिस्टम ढह गया, इंडिगो ने खोली बाजार की असल तस्वीर
इंडिगो के फ्लाइट संकट ने भारतीय बाजार में बढ़ते एकाधिकार, कमजोर नियमन और एविएशन सेक्टर की असंतुलित संरचना को उजागर कर दिया है। यह अर्थव्यवस्था के लिए चेतावनी है।
IndiGo Crisis: भारत में इंडिगो की लगातार बढ़ती फ्लाइट कैंसिलेशन या उड़ान रद्दीकरण और बड़े पैमाने पर हुई अव्यवस्था ने एक बार फिर भारतीय उद्योगों में बढ़ती “एकाधिकार प्रवृत्ति” पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। द फेडरल के कार्यक्रम Talking Sense With Srini में एडिटर-इन-चीफ एस श्रीनिवासन ने इस पूरे संकट को केवल एविएशन सेक्टर की समस्या न बताकर, भारतीय अर्थव्यवस्था की गहरी संरचनात्मक असंतुलन का संकेत बताया।
उपभोक्ताओं पर सीधे असर का पहला बड़ा उदाहरण
श्रीनिवासन ने कहा कि बाजार में बढ़ती केंद्रित शक्ति (Market Concentration) को लेकर वर्षों से चेतावनियाँ दी जाती रही हैं, लेकिन यह पहली बार है जब उपभोक्ताओं ने इसका असर इतने सीधे तरीके से झेला है।
देशभर के हवाई अड्डों पर हजारों लोग घंटों तक फँसे रहे—यह इस बात का सबसे स्पष्ट उदाहरण है कि जब किसी कंपनी को बेतहाशा बढ़ने दिया जाता है, तो वह पूरे सिस्टम को जोखिम में डाल सकती है।
‘दंतहीन’ रेगुलेटर की समस्या
एक समय भारत में MRTP Act के जरिए बाज़ार हिस्सेदारी को 25% की सीमा में रखा जाता था, लेकिन 1991 के आर्थिक सुधारों के बाद यह ढांचा हटाकर Competition Commission of India (CCI) को जिम्मेदारी दी गई। श्रीनिवासन का कहना है कि “अमेरिका की Federal Trade Commission की तुलना में भारत का CCI ज़्यादातर मामलों में प्रतिक्रिया देने वाला और बेहद कमजोर साबित हुआ है।”
एविएशन सेक्टर: एकाधिकार का सबसे स्पष्ट उदाहरण
2014 में इंडिगो की मार्केट शेयर 32% थी, जो 2024 में बढ़कर 65% तक पहुँच गई—यह लगभग एयर इंडिया के साथ एक डुओपॉली जैसी स्थिति है।इस तरह की संरचना में जब एक कंपनी डगमगाती है, तो पूरा सेक्टर हिल जाता है। भारत के एविएशन सेक्टर का Herfindahl-Hirschman Index (HHI) लगभग 4900 है, जबकि अमेरिका में यह औसतन 1600 है। 4900 का स्तर अल्ट्रा-कॉन्सन्ट्रेटेड मार्केट को दर्शाता है।
श्रीनिवासन के अनुसार “बाजार में विकल्प खत्म हो जाते हैं, और उपभोक्ताओं के पास कोई चारा नहीं बचता।”
इंडिगो की सफलता और आज का संकट
इंडिगो की वृद्धि उसकी कुशल संचालन प्रणाली, ऑन-टाइम प्रदर्शन, तेज़ टर्नअराउंड और युवा विमान बेड़े की वजह से हुई थी।लेकिन अब यही सफलता नियामकीय चुनौती बन गई है।हालिया संकट तब पैदा हुआ जब इंडिगो नए Flight Duty Time Limitations (FDTL) यानी पायलटों के कार्य समय से जुड़े नियमों का पालन नहीं कर पाई।नियम लागू करने के बजाय DGCA ने समयसीमा बढ़ा दी।
श्रीनिवासन ने इसे यूँ बयान किया “जैसे कोई पुलिस वाला उल्लंघन करने वाले को और समय दे दे।”
स्टार्टअप इकोसिस्टम पर भी खतरा
एयरलाइन ही नहीं, कई सेक्टरों में 2-3 कंपनियों का बढ़ता दबदबा भारत के स्टार्टअप माहौल के लिए खतरनाक संकेत है।जब बाज़ार कुछ बड़ी कंपनियों के कब्जे में हो जाए, तो छोटे खिलाड़ी स्केल करने और टिक पाए का संघर्ष करते रह जाते हैं। श्रीनिवासन के मुताबिक रेगुलेटर को बाज़ार में संतुलन बनाए रखना चाहिए। बड़ी कंपनियों को बिना कारण रियायतें नहीं दी जानी चाहिए। नए खिलाड़ियों के लिए समान अवसर सुनिश्चित किए जाने चाहिए
भारत का लक्ष्य: ‘नेशनल चैंपियंस’ लेकिन बिना एकाधिकार के
भारत वैश्विक स्तर पर बड़े चैंपियन कंपनियाँ बनाना चाहता है, लेकिन इसके साथ यह भी सुनिश्चित करना जरूरी है कि वे अस्पृश्य (untouchable) न बन जाएं।इंडिगो प्रकरण सिर्फ एक कंपनी की गलती नहीं, बल्कि भारत की पूरी नियामकीय संरचना के लिए चेतावनी है। श्रीनिवासन ने कहा कि “इंडिगो की यह घटना एक अलग-थलग घटना नहीं, बल्कि भारत के रेगुलेटरी फ्रेमवर्क के लिए जागने का समय है।”