महिला रोजगार में वृद्धि, लेकिन 89 मिलियन शहरी महिलाएं श्रमबल से बाहर: रिपोर्ट में खुलासा

रिपोर्ट में कहा गया है कि तमिलनाडु एक सकारात्मक उदाहरण है, जहां शहरी और ग्रामीण दोनों क्षेत्रों में महिला श्रम शक्ति सबसे अधिक है.;

Update: 2025-03-08 03:29 GMT

पिछले छह वर्षों में शहरी भारत में महिलाओं की रोजगार दर में 10% का इज़ाफा हुआ है. यह कार्यबल में लिंग समानता की दिशा में एक सकारात्मक संकेत है. इसके बावजूद ग्रेट लेक्स इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट, चेन्नई द्वारा अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के अवसर पर जारी की गई एक व्हाइट पेपर एक गंभीर चिंता को उजागर करती है. रिपोर्ट के अनुसार, 89 मिलियन से अधिक शहरी महिलाएं अभी भी श्रम बल से बाहर हैं. जो यह दर्शाता है कि महिलाओं की पूर्ण भागीदारी में कई प्रमुख चुनौतियां अब भी मौजूद हैं.

मौजूद समस्या

महिलाओं की कार्यबल में भागीदारी में वृद्धि के बावजूद ग्रेट लेक्स के डीन डॉ. सुरेश रामानाथन ने इस बात पर जोर दिया कि नौकरी सृजन की गति को पुरुषों और महिलाओं दोनों की जरूरतों के अनुरूप बढ़ाना जरूरी है. उन्होंने कहा कि अगर हम गुणवत्ता वाले रोजगार सृजन की गति को बनाए नहीं रख पाते तो हमें कार्यस्थल में विविधता के खिलाफ समाजिक प्रतिरोध का सामना करना पड़ सकता है. विशेष रूप से, पुरुषों की बेरोजगारी में वृद्धि और यह सांस्कृतिक सोच कि पुरुष ही मुख्य कमाने वाले होते हैं, कार्यबल में महिलाओं की बढ़ती संख्या को लेकर प्रतिरोध उत्पन्न कर सकती है.

लिंग समानता का सपना अभी अधूरा

ग्रेट लेक्स की अर्थशास्त्र की प्रोफेसर डॉ. विद्या महाम्बरे ने बताया कि महिलाओं की कार्यबल में भागीदारी बढ़ रही है. लेकिन इसका असर आय, करियर वृद्धि और घरेलू जिम्मेदारियों जैसे महत्वपूर्ण क्षेत्रों में लिंग समानता की ओर नहीं हुआ है. उन्होंने कहा कि वास्तविक बदलाव लाने के लिए, हमें रोजगार के अवसरों को बढ़ावा देने के साथ-साथ बाल देखभाल नीतियों, लचीले कामकाजी घंटों और सामाजिक मानदंडों में सुधार करना होगा.

महिलाओं के कौशल का सही उपयोग

रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि महिलाओं के कौशल का सही तरीके से उपयोग नहीं हो रहा है. विशेषकर उच्च शिक्षा प्राप्त महिलाओं के मामले में. शिक्षा में महत्वपूर्ण सुधार होने के बावजूद 19 मिलियन से अधिक स्नातक शहरी महिलाएं व्यक्तिगत और सामाजिक कारणों से श्रम बल से बाहर हैं. देखभाल कार्य, कठोर कार्य व्यवस्था और यात्रा की समस्याएं इन महिलाओं को अपने कौशल का पूरा उपयोग करने से रोक रही हैं, जिसके परिणामस्वरूप मानव संसाधन का अपव्यय हो रहा है.

भागीदारी से उत्पन्न हो सकता है विरोध?

रिपोर्ट में "विविधता के खिलाफ प्रतिरोध" के बढ़ते खतरे पर भी चर्चा की गई है. इस खतरे का कारण यह है कि जैसे-जैसे महिलाओं की कार्यबल में भागीदारी बढ़ेगी, विशेष रूप से दोहरी आय वाले परिवारों में समाज में प्रतिरोध उत्पन्न हो सकता है. डॉ. रामानाथन के अनुसार, दोहरी आय वाले परिवारों में 62% मामलों में पुरुष अपनी पत्नियों से अधिक कमाते हैं, भले ही दोनों के पास समान शैक्षिक योग्यताएं हों. इसके अलावा महिलाएं अभी भी घरेलू जिम्मेदारियों का बड़ा हिस्सा उठाती हैं—41% परिवारों में महिलाएं अधिकांश घरेलू कार्य करती हैं. जबकि केवल 2% पतियों के पास यह जिम्मेदारी होती है.

शहरी कामकाजी माताओं की समस्या

शहरी कामकाजी माताओं को भी विशेष चुनौतियों का सामना करना पड़ता है. रिपोर्ट में यह उल्लेख किया गया है कि हालांकि रिमोट वर्क ने कुछ लचीलापन प्रदान किया है. लेकिन यह बिना वेतन के घरेलू श्रम के बोझ को हल्का नहीं कर पाया है. कामकाजी माताओं का एक बड़ा हिस्सा लगभग 86%, प्रतिदिन तीन घंटे तक बच्चों की देखभाल में व्यतीत करती हैं. लेकिन केवल 44% महिलाएं ही महसूस करती हैं कि उन्हें घर में पर्याप्त मदद मिल रही है. यह दर्शाता है कि कार्यस्थल में सुधार की आवश्यकता है. जैसे लचीले कामकाजी घंटे और बाल देखभाल की सहायता, ताकि कामकाजी माता-पिता को बेहतर तरीके से समर्थन मिल सके.

Data For India की संस्थापक रुक्मिणी एस ने भी इस पर प्रकाश डाला कि कामकाजी महिलाओं में से लगभग 40% महिलाएं पारिवारिक व्यवसायों में बिना वेतन के सहायिका के रूप में काम करती हैं. उनका कहना है कि यह 'काम' की परिभाषा पर पुनः विचार करने की आवश्यकता को मजबूत करता है और यह दिखाता है कि यह महिलाओं की स्वायत्तता और आर्थिक योगदान को कैसे दर्शाता है.

तमिलनाडु: सफलता की मिसाल

तमिलनाडु एक सकारात्मक उदाहरण प्रस्तुत करता है, जहां शहरी और ग्रामीण दोनों क्षेत्रों में महिलाओं की श्रमबल में भागीदारी की दर सबसे अधिक है. डॉ. अंगयार पवनासम, तमिलनाडु महिला रोजगार एवं सुरक्षा परियोजना (TNWESafe) के परियोजना प्रबंधक, बताते हैं कि राज्य सरकार की योजनाएं जैसे पुधुमाई पेन कार्यक्रम ने महिला शिक्षा और रोजगार क्षमता को बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है. इस राज्य से भारत के निर्माण क्षेत्र में काम करने वाली 40% महिलाएं हैं.

आवश्यक नीति सुधार

हालांकि, कुछ क्षेत्रीय सफलताएं हैं. रिपोर्ट में कहा गया है कि शिक्षा, रोजगार और घरेलू जिम्मेदारियों में मौजूद असमानताओं को दूर करने के लिए व्यापक नीति सुधारों की आवश्यकता है. कार्यबल में लिंग समानता को बढ़ावा देने के लिए नौकरी सृजन में तेजी लानी होगी, समावेशी कार्यस्थल बनाना होगा और सामाजिक मानदंडों को चुनौती देना होगा. यही भारत की महिला कार्यबल की पूरी क्षमता का उपयोग करने का तरीका होगा.

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