धनखड़ का इस्तीफा या सियासी रहस्य? अगला उपराष्ट्रपति कौन?

क्या जस्टिस वर्मा मामले में उनके कथित अतिक्रमण ने मोदी सरकार को नाराज़ कर दिया? या फिर कुल मिलाकर यह एक बहुत ही मामूली मुद्दा है? बहुत से लोग 'चिकित्सकीय सलाह' के तर्क को नहीं मान रहे हैं।;

Update: 2025-07-22 04:12 GMT

Jagdeep Dhankhar Resignation: भारत के संवैधानिक पदों के इतिहास में शायद सबसे विवादास्पद व्यक्तित्व माने जा रहे उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने सोमवार देर शाम अचानक इस्तीफा दे दिया। इस्तीफे की वजह उन्होंने चिकित्सकीय सलाह बताई, लेकिन राजनीतिक गलियारों में इसे महज़ बीमारी का मामला मानने वाले कम ही हैं। इस्तीफा न केवल उनकी कार्यशैली पर एक टिप्पणी है, बल्कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार के तहत फैले अविश्वास और संदेह के माहौल की भी एक झलक है।धनखड़ ने अनुच्छेद 67 (क) के तहत राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को इस्तीफा भेजा। बताया जा रहा है कि यह इस्तीफा रात 9 बजे के करीब सौंपा गया।

वरिष्ठ न्यायाधीश के खिलाफ कार्रवाई से पहले का बड़ा फैसला

इस्तीफे से चंद घंटे पहले ही, धनखड़ ने राज्यसभा में एक महत्वपूर्ण घोषणा की थी। उन्होंने बताया कि उन्हें 68 विपक्षी सांसदों द्वारा हस्ताक्षरित एक नोटिस प्राप्त हुआ है, जिसमें इलाहाबाद हाईकोर्ट के न्यायाधीश यशवंत वर्मा को पद से हटाने की मांग की गई है, और उन्होंने इसे स्वीकार कर लिया है। यह फैसला खुद सरकार के लिए भी हैरान करने वाला था।दरअसल, केंद्र सरकार भी उसी दिन लोकसभा में न्यायमूर्ति वर्मा के खिलाफ कार्रवाई का प्रस्ताव लाने जा रही थी, और इसके लिए विपक्ष के नेता राहुल गांधी समेत 150 से अधिक सांसदों का समर्थन भी लिया गया था। लेकिन धनखड़ द्वारा विपक्ष की पहल को पहले स्वीकार कर लेना एक शॉक मूव  यानी चौंकाने वाला फैसला था।

धनखड़ की तत्परता और सरकार की चुप्पी

विपक्ष के नोटिस पर धनखड़ की तत्परता उन पर पहले से लंबित मामलों की तुलना में बिल्कुल उलट थी। उदाहरण के लिए, न्यायमूर्ति शेखर यादव के खिलाफ विपक्ष का नोटिस सात महीनों से लंबित पड़ा है, जिसे धनखड़ ने अभी तक स्वीकार नहीं किया। जब उन्होंने अचानक न्यायमूर्ति वर्मा का मामला स्वीकार किया और कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल से पूछा कि क्या लोकसभा में भी ऐसा कोई प्रस्ताव लाया गया है, तो खुद मंत्री भी अचकचा गए।राज्यसभा में धनखड़ ने कहा कि सचिवालय आवश्यक प्रक्रियाएं शुरू करेगा और अब न्यायमूर्ति वर्मा के खिलाफ संसद के दोनों सदनों में मिलकर कार्रवाई की जाएगी।

क्या इस्तीफे के पीछे है राजनीतिक खींचतान?

धनखड़ का इस्तीफा ऐसे समय पर आया जब उनका आगे का कार्यक्रम पूरी तरह तय था। सोमवार दोपहर 3:53 बजे उपराष्ट्रपति सचिवालय ने बयान जारी कर बताया था कि 23 जुलाई को वे जयपुर में रियल एस्टेट डेवलपर्स की संस्था क्रेडाई के नवनिर्वाचित सदस्यों से मिलने जा रहे हैं। दिसंबर 2024 में उन्हें दिल की समस्या के चलते AIIMS में भर्ती कराया गया था, लेकिन उसी महीने काम पर लौट आए थे और तब से लगातार सक्रिय थे। ऐसे में अचानक स्वास्थ्य का हवाला देकर इस्तीफा देना लोगों को हज़म नहीं हो रहा।

सरकार की चुप्पी और विपक्ष की सक्रियता

धनखड़ के इस्तीफे के बाद सरकार की तरफ से प्रधानमंत्री मोदी या किसी भी मंत्री ने कोई टिप्पणी नहीं की। न उन्हें रोकने की अपील की गई, न ही उनके स्वास्थ्य की कामना। इसके उलट, वही विपक्ष जिसने सात महीने पहले उनके खिलाफ हटाने का प्रस्ताव दिया था, अब उन्हें इस्तीफा न देने की अपील कर रहा है।कांग्रेस सांसद जयराम रमेश ने सोशल मीडिया पर लिखा, धनखड़ का इस्तीफा चौंकाने वाला है। शाम 5 बजे तक मैं खुद उनके साथ था, और 7:30 बजे उनसे फोन पर बात भी हुई थी। साफ है कि मामला सिर्फ स्वास्थ्य का नहीं है। सीपीआई(एम) सांसद जॉन ब्रिटास ने भी हैरानी जताई और कहा, "यह सिर्फ स्वास्थ्य का मामला नहीं हो सकता।

एक टीएमसी सांसद ने कहा, क्या वह सरकार के हर काम को सही ठहराते-ठहराते थक गए या सरकार को लगा कि अब किसी और को ये काम सौंपा जाए? जो भी हो, मामला संदेहास्पद है।

नया उपराष्ट्रपति कौन?

अब सबकी निगाहें नए उपराष्ट्रपति के नाम पर टिकी हैं। कई नाम चर्चा में हैं। मोदी कैबिनेट के एक वरिष्ठ मंत्री, जो अटल-आडवाणी युग के अंतिम चेहरा माने जाते हैं, एक राज्य के पूर्व नौकरशाह से गवर्नर बने नेता, विपक्षी मुख्यमंत्री से टकराव में फंसे एक लेफ्टिनेंट गवर्नर, यहां तक कि एक नाराज़ कांग्रेस सांसद भी।हालांकि मोदी सरकार हमेशा सरप्राइज एलिमेंट के लिए जानी जाती है। ऐसे में हो सकता है अगला उपराष्ट्रपति कोई पूरी तरह अचर्चित चेहरा हो।

संवैधानिक प्रक्रिया क्या कहती है?

अनुच्छेद 67 (क) के तहत उपराष्ट्रपति केवल राष्ट्रपति को पत्र देकर इस्तीफा दे सकता है। इसके बाद अनुच्छेद 68 (1) और (2) के तहत, नए उपराष्ट्रपति का चुनाव "संभव हो उतनी जल्दी" किया जाना होता है और नया उपराष्ट्रपति पाँच साल का पूरा कार्यकाल पूरा करता है।धनखड़ का कार्यकाल अगस्त 2027 तक था, लेकिन वह दो साल पहले ही इस्तीफा देकर निकल गए। क्या वाकई स्वास्थ्य वजह है या फिर किसी राजनीतिक टकराव का शिकार?

एक तूफान की शुरुआत?

भाजपा के एक वरिष्ठ नेता के मुताबिक धनखड़ का इस्तीफा पूरी कहानी नहीं है, ये बस भूमिका भर है। असली कथा अभी बाकी है। धनखड़, जो बीते तीन वर्षों में मोदी सरकार के सबसे मुखर समर्थक माने जाते थे, अब अचानक विपक्ष के समर्थन में चले गए? या उन्होंने जो लक्ष्मण रेखा लांघी, वह सरकार को स्वीकार नहीं थी? इन तमाम सवालों के जवाब फिलहाल अंधेरे में हैं लेकिन इतना तय है कि राजनीति में इस्तीफे कभी सिर्फ कागज़ी नहीं होते। उनके पीछे इतिहास और भविष्य की पटकथा लिखी जाती है।

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