जस्टिस शेखर यादव का विवादित बयान : सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाई कोर्ट से मांगा ब्यौरा

मामले के सोशल मीडिया पर तूल पकड़ने के बाद सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में इलाहबाद हाई कोर्ट से ब्यौरा माँगा है. सुप्रीम कोर्ट की इस कार्रवाई को न्यायपालिका की गरिमा बनाये रखने के लिए जरुरी कदम माना जा रहा है.;

Update: 2024-12-10 17:16 GMT

Justice Shekhar Yadav Controversial Speech : सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाई कोर्ट के जज जस्टिस शेखर यादव के एक विवादित बयान पर स्वतः संज्ञान लिया है। यह बयान उन्होंने विश्व हिंदू परिषद (VHP) के एक कार्यक्रम में दिया था, जिसमें उन्होंने कहा था कि "देश बहुसंख्यकों के हिसाब से चलेगा" और 'कठमुल्ले' देश के लिए घातक हैं। सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले को गंभीरता से लेते हुए इलाहाबाद हाई कोर्ट से उनकी स्पीच का विस्तृत विवरण मांगा है।


सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी
सुप्रीम कोर्ट ने इस बयान को न्यायिक आचार संहिता का संभावित उल्लंघन मानते हुए कहा कि सार्वजनिक मंचों पर न्यायपालिका के सदस्यों को इस प्रकार के बयान देने से बचना चाहिए। कोर्ट ने कहा कि इस प्रकार के बयान न केवल असंवैधानिक हैं, बल्कि न्यायपालिका की स्वतंत्रता और निष्पक्षता पर भी सवाल खड़े करते हैं।

जस्टिस यादव का बयान

जस्टिस शेखर यादव ने अपने बयान में कहा था: "देश बहुसंख्यकों के हिसाब से चलेगा।"
"'कठमुल्ला' शब्द गलत हो सकता है, लेकिन यह कहना ज़रूरी है क्योंकि ये लोग देश के लिए बुरे हैं। ये जनता को भड़काने वाले और देश की प्रगति को रोकने वाले लोग हैं। उनसे सावधान रहने की जरूरत है।"

मामले की पृष्ठभूमि
यह बयान विश्व हिंदू परिषद के एक कार्यक्रम में दिया गया था, जिसमें जस्टिस यादव ने धर्म, समाज और देश की प्रगति से जुड़े विषयों पर चर्चा की। उनके इस बयान को लेकर समाज के विभिन्न वर्गों में तीखी प्रतिक्रिया देखने को मिली है।

सुप्रीम कोर्ट की अगली कार्रवाई
सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाई कोर्ट से पूछा है कि क्या जस्टिस यादव का यह बयान उनके न्यायिक दायित्वों के अनुरूप था। अदालत ने इस पर विस्तृत रिपोर्ट और बयान के संदर्भ में आवश्यक दस्तावेज़ तलब किए हैं।

न्याय पालिका की गरिमा बनी रहे
जस्टिस यादव के बयान को लेकर कानूनी और राजनीतिक हलकों में बहस तेज हो गई है। जहां कुछ संगठनों ने इसे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता बताया है, वहीं अन्य ने इसे न्यायपालिका की निष्पक्षता और धर्मनिरपेक्षता पर हमला करार दिया है। सुप्रीम कोर्ट का यह कदम न्यायपालिका की गरिमा बनाए रखने और विवादित बयानों के प्रभाव को रोकने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम माना जा रहा है। मामले की अगली सुनवाई जल्द होने की संभावना है।


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