धर्म से ऊपर देश का कानून, बाल विवाह कानून सब पर लागू : केरल हाई कोर्ट

एक मुस्लिम बच्ची की शादी को लेकर दर्ज हुए बाल विवाह कानून की FIR को रद्द करने के लिए बच्ची के पिता की तरफ से हाई कोर्ट में दाखिल की गयी थी याचिका. अदालत ने कहा कि बाल विवाह बच्चों को उनके बुनियादी मानवाधिकारों से वंचित करता है.

Update: 2024-07-28 14:24 GMT

Child Marriage Act: सुप्रीम कोर्ट द्वारा पिछले दिनों मुस्लिम महिलाओं को तलाक के बाद गुजारा भत्ता की हकदार होने का आदेश सुनाया था. अब  केरल हाई कोर्ट ने फैसला दिया है कि बाल विवाह निषेध अधिनियम, 2006 इस देश के प्रत्येक नागरिक पर लागू होता है, चाहे उसका धर्म कुछ भी हो, क्योंकि प्रत्येक भारतीय पहले नागरिक है और उसके बाद वो किसी धर्म का सदस्य है.

न्यायमूर्ति पीवी कुन्हिकृष्णन ने पलक्कड़ में 2012 में बाल विवाह के खिलाफ दर्ज मामले को रद्द करने की याचिका पर हाल ही में दिए आदेश में कहा कि ''चाहे कोई व्यक्ति किसी भी धर्म का हो, चाहे वो हिंदू, मुस्लिम, ईसाई, पारसी आदि हो, ये अधिनियम सभी पर लागू होता है.''
तत्कालीन नाबालिग लड़की के पिता सहित याचिकाकर्ताओं ने अदालत के समक्ष तर्क दिया कि मुस्लिम होने के नाते उसे यौवन प्राप्त करने के बाद, अर्थात 15 वर्ष की आयु में विवाह करने का धार्मिक अधिकार प्राप्त है.

'मूलभूत अधिकारों से वंचित'
अदालत ने 15 जुलाई के अपने आदेश में कहा, "किसी व्यक्ति को पहले भारत का नागरिक होना चाहिए, उसके बाद ही उसका धर्म आता है. धर्म दूसरे स्थान पर है और नागरिकता पहले आनी चाहिए. इसलिए, मेरा मानना है कि चाहे कोई व्यक्ति किसी भी धर्म का हो, चाहे वो हिंदू, मुस्लिम, ईसाई, पारसी आदि हो, अधिनियम 2006 सभी पर लागू होता है.
अदालत ने कहा कि बाल विवाह बच्चों को उनके बुनियादी मानवाधिकारों से वंचित करता है, जिसमें शिक्षा, स्वास्थ्य और शोषण से सुरक्षा का अधिकार शामिल है तथा कम उम्र में विवाह और गर्भधारण से शिशु मृत्यु दर, मातृ मृत्यु दर और यौन संचारित संक्रमण जैसी स्वास्थ्य समस्याएं हो सकती हैं.

"बाल विवाह अक्सर लड़कियों को स्कूल छोड़ने पर मजबूर करता है, जिससे उनकी शिक्षा और भविष्य के अवसर सीमित हो जाते हैं. बाल वधुएँ घरेलू हिंसा और दुर्व्यवहार के प्रति अधिक संवेदनशील होती हैं. बाल विवाह गरीबी को बनाए रख सकता है और व्यक्तियों और समुदायों के लिए आर्थिक अवसरों को सीमित कर सकता है."

अदालत ने अपने 37 पन्नों के आदेश में कहा, "बाल विवाह से बच्चों को भावनात्मक और मनोवैज्ञानिक आघात हो सकता है, जिसमें अवसाद और चिंता भी शामिल है. बाल विवाह से सामाजिक अलगाव और परिवार और समुदाय से अलगाव हो सकता है. इसके अलावा, बाल विवाह अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार कानून और सम्मेलनों का भी उल्लंघन है."

बच्चों को पढ़ने दें: हाईकोर्ट
एक एकीकृत बाल विकास योजना अधिकारी (आईसीडीएस अधिकारी) ने 30 दिसंबर 2012 को हुए एक बाल विवाह के बारे में वडक्केनचेरी पुलिस में शिकायत दर्ज कराई थी.
अदालत ने कहा कि ये सुनकर दुख हुआ कि दशकों पहले बाल विवाह निषेध अधिनियम के लागू होने के बाद भी केरल में बाल विवाह के आरोप हैं.
न्यायाधीश ने कहा, "सबसे दुखद बात ये है कि याचिकाकर्ता कथित बाल विवाह को ये कहते हुए उचित ठहराने की कोशिश कर रहे हैं कि मोहम्मडन कानून के अनुसार, एक मुस्लिम लड़की को यौवन प्राप्त करने के बाद उम्र की परवाह किए बिना शादी करने का धार्मिक अधिकार है, भले ही बाल विवाह निषेध अधिनियम भारत के बाहर और बाहर सभी नागरिकों पर लागू होता है."
हाई कोर्ट ने समाज से आग्रह किया कि वे बच्चों को उनकी इच्छानुसार पढ़ने, यात्रा करने और जीवन का आनंद लेने दें तथा जब वे वयस्क हो जाएं तो उन्हें अपने विवाह के बारे में निर्णय लेने दें.
अदालत ने कहा, "आधुनिक समाज में शादी के लिए कोई बाध्यता नहीं हो सकती. अधिकांश लड़कियां पढ़ाई में रुचि रखती हैं. उन्हें पढ़ाई करने दें और अपने जीवन का आनंद लेने दें, बेशक अपने माता-पिता के आशीर्वाद के साथ। जब वे वयस्क हो जाएं और तय करें कि उनके जीवन में एक साथी की आवश्यकता है, तो उचित चरण में ऐसा होने दें ताकि समाज से बाल विवाह को खत्म किया जा सके."

मीडिया की भूमिका

इसमें ये भी सुझाव दिया गया कि प्रिंट और विसुअल मीडिया जागरूकता बढ़ाने और बाल विवाह पर रोक लगाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं.
आदेश में कहा गया है, "प्रिंट और विजुअल मीडिया का ये कर्तव्य है कि वे बाल विवाह की बुराइयों को उजागर करने वाले लेख प्रकाशित करें, बचे लोगों और पीड़ितों की कहानियां साझा करें, बाल विवाह के नुकसान और परिणामों के बारे में जागरूकता पैदा करें, लड़कियों की शिक्षा और सशक्तिकरण को बढ़ावा दें और अपराधियों और उनके कृत्यों को उजागर करें."

अदालत ने ये भी कहा कि बाल विवाह के खिलाफ शिकायत मुस्लिम समुदाय के ही एक व्यक्ति ने दर्ज कराई थी.
इसमें कहा गया है, "इससे ये पता चलेगा कि इस देश का प्रत्येक नागरिक, चाहे वो किसी भी धर्म का हो, बाल विवाह की बुराई के बारे में जागरूक है."
हालांकि, अदालत ने याचिकाकर्ताओं से कहा कि वे अपनी इस दलील के संबंध में उचित अदालत में जाएं कि संबंधित स्कूल रजिस्टर में बच्चे की जन्मतिथि गलत दर्ज की गई है.

(एजेंसी इनपुट्स के साथ)


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