सार्वजनिक जवाबदेही का मजाक: कांग्रेस ने आरटीआई का जवाब न देने पर सेबी की आलोचना की
कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश ने कहा कि सेबी अध्यक्ष के हितों के टकराव के जो कई मामले अब तक सामने आए हैं, वे अपने आप में चौंकाने वाले हैं.
By : Abhishek Rawat
Update: 2024-09-21 03:30 GMT
Congress Vs SEBI : कांग्रेस ने एक बार फिर से सेबी को निशाना बनाया है. इस बार मामला सेबी द्वारा उस आरटीआई का जवाब न देने को लेकर है, जिसमें इस बात की जानकारी मांगी गयी थी कि सेबी की चेयरपर्सन माधबी बुच ने किन किन मामलों की जांच से हितों के टकराव के कारण खुद को अलग कर लिया था. आरटीआई की जानकारी न देने को लेकर कांग्रेस ने इसकी आलोचना की है.
SEBI ने शुक्रवार को आरटीआई के जवाब में कहा कि जिन मामलों में बुच ने संभावित हितों के टकराव के कारण खुद को इससे अलग कर लिया था, वे "तत्काल" उपलब्ध नहीं हैं और उन्हें एकत्रित करने से उसके संसाधनों का "अनुपातहीन रूप से दुरुपयोग" होगा.
आरटीआई एक्टिविस्ट कमोडोर लोकेश बत्रा (सेवानिवृत्त) को दिए गए जवाब में सेबी ने बुच द्वारा सरकार और सेबी बोर्ड को उनके और उनके परिवार के सदस्यों द्वारा धारित वित्तीय परिसंपत्तियों और इक्विटी पर की गई घोषणाओं की प्रतियां उपलब्ध कराने से भी इनकार कर दिया, क्योंकि ये "व्यक्तिगत जानकारी" हैं और इनके खुलासे से व्यक्तिगत सुरक्षा "खतरे में" पड़ सकती है.
कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश ने कहा आरटीआई का जवाब न देना पारदर्शिता का मजाक
इस घटनाक्रम पर प्रतिक्रिया देते हुए कांग्रेस महासचिव और संचार प्रभारी जयराम रमेश ने कहा, "सेबी अध्यक्ष के हितों के टकराव के जो कई मामले अब तक सामने आए हैं, वे अपने आप में चौंकाने वाले हैं. अब इस मामले में और भी संदेह पैदा करने वाला कदम उठाते हुए सेबी ने आरटीआई कार्यकर्ता को उन मामलों के बारे में जानकारी देने से साफ इनकार कर दिया है, जिनमें हितों के टकराव की संभावना है." उन्होंने कल देर रात एक्स पर एक पोस्ट में कहा, "जहां तक सेबी का सवाल है, यह सार्वजनिक जवाबदेही और पारदर्शिता का मजाक उड़ाता है."
सेबी ने उन तिथियों का भी खुलासा करने से इनकार कर दिया है, जिस दिन ये खुलासे किए गए थे. सेबी के केंद्रीय लोक सूचना अधिकारी (सीपीआईओ) ने उन घोषणाओं की प्रति देने से इनकार करने के लिए "व्यक्तिगत जानकारी" और "सुरक्षा" के आधार का इस्तेमाल किया.
आरटीआई के जवाब में सेबी ने क्या कहा
आरटीआई के जवाब में सेबी द्वारा कहा गया है, "चूंकि मांगी गई सूचना आपसे संबंधित नहीं है और यह व्यक्तिगत सूचना से संबंधित है, जिसके सार्वजानिक करने से किसी की निजता भंग हो सकती है या इसका किसी के हित से कोई संबंध नहीं है और इससे व्यक्ति की निजता में अनावश्यक हस्तक्षेप हो सकता है और व्यक्ति के जीवन या शारीरिक सुरक्षा को भी खतरा हो सकता है. इसलिए, इसे आरटीआई अधिनियम, 2005 की धारा 8(1)(जी) और 8(1)(जे) के तहत छूट दी गई है."
इसमें कहा गया है, "इसके अलावा, उन मामलों की जानकारी आसानी से उपलब्ध नहीं है, जिनमें माधबी पुरी बुच ने अपने कार्यकाल के दौरान संभावित हितों के टकराव के कारण खुद को अलग कर लिया था और उन्हें एकत्रित करने से आरटीआई अधिनियम की धारा 7(9) के अनुसार सार्वजनिक प्राधिकरण के संसाधनों का अनुपातहीन रूप से दुरुपयोग होगा."
धारा 8(1)(जी) सार्वजनिक प्राधिकरण को ऐसी जानकारी को रोकने की अनुमति देती है, जिसके खुलासे से किसी व्यक्ति के जीवन और शारीरिक सुरक्षा को खतरा हो सकता है, जबकि धारा 8(1)(जे) ऐसी जानकारी को रोकने की अनुमति देती है जो व्यक्तिगत जानकारी से संबंधित है और जिसके खुलासे का किसी सार्वजनिक गतिविधि या हित से कोई संबंध नहीं है. 11 अगस्त को सेबी की ओर से जारी एक प्रेस विज्ञप्ति में दावा किया गया था कि चेयरपर्सन ने संभावित हितों के टकराव से जुड़े मामलों से खुद को अलग कर लिया है.
इसमें कहा गया था, "यह नोट किया गया है कि प्रतिभूतियों की होल्डिंग और उनके हस्तांतरण के संदर्भ में आवश्यक प्रासंगिक खुलासे समय-समय पर अध्यक्ष द्वारा किए गए हैं."
हिंडनबर्ग रिसर्च ने जताया था शक
अमेरिका स्थित शॉर्ट सेलर हिंडनबर्ग रिसर्च ने पहले आरोप लगाया था कि उसे संदेह है कि सेबी अडानी समूह के खिलाफ कार्रवाई करने में इसलिए अनिच्छुक है क्योंकि बुच की अडानी समूह से जुड़े ऑफशोर फंडों में हिस्सेदारी है. कांग्रेस ने बुच और उनके पति धवल बुच के खिलाफ हितों के टकराव के कई आरोप लगाए हैं. बुच और उनके पति ने इन आरोपों को "दुर्भावनापूर्ण" बताकर खारिज कर दिया है. पीटीआई
(शीर्षक को छोड़कर, इस कहानी को फेडरल स्टाफ द्वारा संपादित नहीं किया गया है और एक सिंडिकेटेड फीड से स्वतः प्रकाशित किया गया है।)