मैरिटल रेप को लेकर क्या चाहती है केंद्र सरकार, जानिये सुप्रीम कोर्ट में क्या दिया जवाब
केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दायर कर कहा है कि पत्नी की मर्जी मायने रखती है लेकिन सामाजिक दृष्टिकोण से मैरिटल रेप को अपराध की श्रेणी में लाना अनुचित है. पत्नी के साथ हुई जोर जबरदस्ती को लेकर पति के खिलाफ कानून में कई प्रावधान है.
By : Abhishek Rawat
Update: 2024-10-03 18:18 GMT
Marital Rape : मैरिटल रेप को लेकर देश में लम्बी बहस चल चुकी है. इसके पक्ष विपक्ष के अपने अपने तर्क हैं. इस बीच केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दायर कर ये कहा है कि मैरिटल रेप अपराध के दायरे से बाहर है. केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को ये बताया है कि कानून में पत्नी के साथ ज्यादती या दुर्व्यवहार को लेकर धाराएं हैं, जिनका पालन पत्नी की मर्जी के खिलाफ जाकर बनाए सम्बन्ध के मामले में भी किया जा सकता है.
ज्ञात रहे कि बीएनएस ( भारतीय न्याय संहिता ) में मैरिटल रेप को अपराध की श्रेणी में नहीं रखा गया है. हालाँकि IPC की धारा 375 में भी इसे अपराध के दायरे से बाहर रखा गया था.
सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिका पर दायर किया हलफनामा
दरसरल बीएनएस में मैरिटल रेप को अपराध की श्रेणी में न रखे जाने पर अलग अलग याचिकाएं दायर की गयीं कि मैरिटल रेप को अपराध के दायरे में लाना चाहिए. इन याचिकाओं के जवाब में ही केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में हलानाम दायर किया है. मौजूदा कानून की बात करें तो पत्नी की इच्छा के बगैर जबरन संबंध बनाने पर भी पत्नी अपने पति के खिलाफ बलात्कार का मुकदमा दर्ज नहीं करा सकती. अपने हलफनामे में भी सरकार ने नए क़ानून में पति को दी गयी इस छूट को जायज़ ठहराया है.
पत्नी के पास क़ानूनी हक मौजूद हैं
अपने हलफनामे में सरकार ने इस बात पर भी जोर दिया है कि मैरिटल रेप को लेकर बेशक कानून में कोई जगह न दी गयी हो लेकिन इसका मतलब ये नहीं कि पत्नी के क़ानूनी हक़ खत्म हो गए हैं. इसके अलावा ऐसा भी नहीं है कि वैवाहिक संबंधों में पत्नी की इच्छा का कोई महत्व नहीं है. अगर किसी रिश्ते में ऐसा होता है कि पति अपनी पत्नी की इच्छा के विरुद्ध जबरन उससे संबंध बनाता है तो ऐसी स्थिति में पति को सज़ा देने कानून में पहले से ही कई प्रावधान उपलब्ध हैं, जैसे घरेलू हिंसा क़ानून, महिलाओं की गरिमा भंग करने से जुड़े विभिन्न कानून आदि, जिनके तहत आरोपी पति के खिलाफ मुकदमा कायम किया जा सकता है,
बगैर विवाह के जबरन सम्बन्ध बनाने से तुलना करना ठीक नहीं
सरकार ने हलफनामे में ये भी कहा है कि एक शादीशुदा जोड़े के बीच इक्छा के विरुद्ध सम्बन्ध बनाये जाने की तुलना उस स्थिति से नहीं की जा सकती जहाँ बिना वैवाहिक संबंधों के कोई पुरुष जबरन किसी महिला के साथ सम्बंध बनाता है. दोनों ही परिस्थितियों में सज़ा एक नहीं हो सकती.
सुप्रीम कोर्ट न दे दखल
सरकार ने अपने हलफनामे में ये भी कहा है कि इस विषय पर सुप्रीम कोर्ट का दखल देना उचित नहीं है, क्योंकि ये मसला सिर्फ क़ानूनी नहीं बल्कि सामाजिक भी है. वैवाहिक सम्बन्धों अगर अपराध के दायरे में लाना भी है तो ये काम देश की संसद का है, सुप्रीम कोर्ट का नहीं. इस मामले पर विभिन्न स्टेकहोल्डर्स और राज्यो से परामर्श के बाद ही ऐसा कोई निर्णय लिया जा सकता है. कोर्ट को इसमे दखल नहीं देना चाहिए.