2027 की तैयारी या नतीजों का असर, आकाश आनंद फिर बने मायावती के उत्तराधिकारी
बीएसपी सुप्रीमो मायावती ने एक बार फिर आकाश आनंद को नेशनल कोऑर्डिनेटर और उत्तराधिकारी बना दिया है. इसके पीछे की वजह को समझने की कोशिश करेंगे.
Akash Anand News: सियासत में एक फैसला किसी को अर्श पर तो किसी को फर्श पर पटक देता है. अगर भारतीय राजनीति की बात करें तो यह सौ टका सच के करीब है. रविवार को एक बड़ी खबर आई कि आकाश आनंद को बीएसपी सुप्रीमो मायावती ने दोबारा नेशनल कोआर्डिनेटर के साथ साथ उत्तराधिकारी बना दिया है. इस फैसले को समझने से पहले हमें सिर्फ डेढ़ महीने पीछे चलना होगा. तीसरे चरण का चुनाव संपन्न हो चुका था. उससे पहले आकाश आनंद जमकर अपने विरोधियों पर निशाना साध रहे थे. उसी क्रम में उन्होंने एक टिप्पणी बीजेपी और यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ के खिलाफ की थी. आकाश ने यह टिप्पणी अप्रैल हुए पहले और दूसरे चरण के मतदान के की थी. जब आकाश आनंद को चुनाव के बीच में मायावती ने हटाया तो यह संकेत गया कि शायद उनके ऊपर किसी तरह का दबाव था. हालांकि हम बात करेंगे कि चुनावी नतीजों के बाद ऐसा क्या हुआ कि आकाश को पूरी जिम्मेदारी मिल चुकी है.इसे लेकर अब तरह के कयास भी लग रहे हैं.
बीएसपी का प्रदर्शन
- लोकसभा की सभी 80 सीटों पर बीएसपी ने लड़ा चुनाव
- एक भी सीट पर नहीं मिली जीत
- बीएसपी के वोट शेयर में 10 फीसद की कमी
- लोकसभा चुनाव में मिले महज 9 फीसद वोट
- जाटव-गैर जाटव वोटर्स दोनों छिटके
- समाजवादी पार्टी- कांग्रेस को दिया मत
क्या कहते हैं जानकार
गोरखपुर के सीनियर जर्नलिस्ट अजीत सिंह के मुताबिक आकाश को जिम्मेदारी सौंपने के पीछे सबसे बड़ी वजह यूपी में बीएसपी की पराजय है. पराजय के साथ साथ वोट शेयर में कमी है. आप याद करिए कि 2024 के चुनाव में मायावती को महज 9 फीसद मत मिले हैं. 10 फीसद मतों की गिरावट आई है. उस 10 फीसद मत के बारे में बताया जा रहा है कि करीब 6 से सात फीसद गैर जाटव मत समाजवादी पार्टी और तीन से चार फीसद मत कांग्रेस के खाते में गए हैं. इसमें भी बड़ी तस्वीर यह है कि कांग्रेस के खाते में गए वोट मायावती के कोर वोटर्स हैं. यानी कि मायावती के कोर वोट बैंक में कांग्रेस सेंध लगाने में कामयाब रही है. यहां बता दें कि मायावती का कोर वोटबैंक कभी कांग्रेस की पूंजी हुआ करती थी.
अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए वो कहते हैं कि इस पूरे चुनाव में बीएसपी के चुनावी प्रचार में वो धार नजर नहीं आया. मायावती के वोटर्स को लगने लगा कि जब उनकी नेता सुस्त पड़ चुकी हैं तो उनका क्या होगा. चुनाव प्रचार के दौरान जिस तरह से समाजवादी पार्टी और कांग्रेस ने संविधान और आरक्षण खतरे का नारा बुलंद किया उस तरह से प्रखर बोल मायावती के नहीं थे. ऐसे में मायावती के मतदाता चुपचाप समाजवादी पार्टी और कांग्रेस के पाले में चले गए.अब इस तरह की स्थिति तो बीएसपी के लिए कत्तई अच्छा नहीं माना जा सकता. जिस पार्टी ने यूपी को अपने संघर्षों से सींचा हो अगर उस दल के अस्तित्व पर संकट उठ खड़ा हो तो उसे ना सिर्फ कुछ फैसले लेने होंगे बल्कि भूल सुधार करना होगा. लिहाजा ऐसी सूरत में आकाश आनंद की दूसरी पारी को देख सकते हैं.