वक्फ में सरकार नहीं कर सकती है हस्तक्षेप, लद्दाख के मुस्लिम नेताओं ने की कानून की निंदा
लद्दाख के मुस्लिम नेताओं ने वक्फ अधिनियम को ‘गुमराह करने वाला और संभावित रूप से हानिकारक’ बताया और कहा कि यह कानून अल्पसंख्यकों के अधिकारों का उल्लंघन करता है तथा वक्फ की मूल भावना को कमजोर करता है।;
केंद्र सरकार द्वारा लाया गया वक्फ (संशोधन) विधेयक, जो अब अधिनियम बन चुका है, देशभर में खासकर मुस्लिम धार्मिक और सामाजिक संगठनों के बीच व्यापक आलोचना और चिंता का विषय बन गया है। आलोचकों का कहना है कि यह अधिनियम मुस्लिम समुदाय की धार्मिक स्वायत्तता पर सीधा हमला है और वक्फ की उस बुनियाद को कमजोर करता है, जिसके तहत संपत्ति को धार्मिक और परोपकारी कार्यों के लिए समर्पित किया जाता है।
राज्य के दायरे से बाहर
जमीयत उल उलेमा इस्ना अशरिया कारगिल के अध्यक्ष शेख नाज़िर उल मेहदी ने कहा कि यह विधेयक वक्फ की उस नींव को चुनौती देता है जो इस्लामी न्यायशास्त्र में निहित है। उन्होंने कहा, “यह मुस्लिमों से संबंधित एक धार्मिक विषय है और इसमें अन्य धर्मों का हस्तक्षेप अन्यायपूर्ण है और हमारे संविधान के खिलाफ है।”
उन्होंने कहा कि “यह अल्पसंख्यकों के अधिकारों का खुला उल्लंघन है।” शेख नाज़िर ने स्पष्ट किया कि वक्फ एक प्रणाली है जिसके तहत मुसलमान अपनी निजी संपत्ति को धार्मिक या परोपकारी कार्यों जैसे कि स्कूल, मस्जिद या जरूरतमंदों की सहायता हेतु समर्पित करते हैं।
उन्होंने कहा, “वक्फ के नियमों का पालन मुसलमानों के लिए अनिवार्य है। अगर सरकार कोई संपत्ति वक्फ में देती है तो उसके सही उपयोग की निगरानी कर सकती है, लेकिन जब कोई व्यक्ति अपनी संपत्ति समर्पित करता है, तो सरकार को उसमें हस्तक्षेप का कोई अधिकार नहीं है।”
उन्होंने ज़ोर देकर कहा कि वक्फ का शाब्दिक अर्थ ही ‘रोक’ या ‘प्रतिबंध’ है, जिससे यह स्पष्ट होता है कि यह बाहरी नियंत्रण, विशेषकर राज्य के हस्तक्षेप से सुरक्षित है।
गुमराह करने वाला और हानिकारक निर्णय
इमाम खुमैनी मेमोरियल ट्रस्ट कारगिल के चेयरमैन शेख सादिक रजई ने हाल ही में हुए संशोधनों को गुमराह करने वाला और नुकसानदायक करार दिया। उन्होंने कहा, “सरकार जो कर रही है, वह पूरी तरह अनुचित है। हर धर्म को अपने धार्मिक मामलों का प्रबंधन करने की स्वतंत्रता है और हमारा संविधान उस अधिकार की रक्षा करता है।”
उन्होंने कहा कि “वक्फ के माध्यम से हम अपने धार्मिक कर्तव्यों और सामाजिक विकास के कार्यों को निभाते हैं। यह न तो कोई राजनीतिक संस्था है और न ही प्रशासनिक। यह इस्लामी नियमों से संचालित होता है, न कि सरकारी विवेक से।”
शेख रजई ने चेताया कि यदि सरकार बिना मुस्लिम धार्मिक जटिलताओं को समझे वक्फ प्रणाली को बदलने की कोशिश करती है, तो यह न सिर्फ मुस्लिम संस्थाओं को नुकसान पहुंचाएगी, बल्कि पूरे राष्ट्र के सामाजिक ताने-बाने को भी चोट पहुंचेगी।
उन्होंने कहा, “धार्मिक विषयों को उस धर्म के लोगों द्वारा ही संभाला जाना चाहिए, न कि बाहरी लोगों या राज्य द्वारा।” उन्होंने यह भी कहा कि लद्दाख के सभी धार्मिक संस्थान चाहे वे किसी भी धर्म के हों, इस कानून के खिलाफ एकजुट हैं।
मुस्लिम पहचान को अस्थिर करने की साजिश
अंजुमन मोइन-उल-इस्लाम, लेह के अध्यक्ष डॉ. अब्दुल कय्यूम ने कहा कि यह विधेयक “मुसलमानों की पहचान को अस्थिर करने की साजिश है।” उन्होंने कहा कि यह कदम एक विशिष्ट धर्म को निशाना बनाता है और मुस्लिम समुदाय की सामाजिक-आर्थिक संरचना को कमजोर कर सकता है।
उन्होंने यह भी कहा कि लद्दाख में भले ही फिलहाल वक्फ की संपत्तियां कम हों, लेकिन इस कानून का प्रभाव भविष्य में दिखेगा। “हमने विधेयक के पारित होने से पहले ही अपना विरोध दर्ज करवा दिया था,” उन्होंने कहा।
मुस्लिम संस्था नहीं रही वक्फ
लद्दाख के सांसद मोहम्मद हनीफा जान ने भी इस विधेयक को लेकर निराशा जताई। उन्होंने कहा कि संसद की संयुक्त समिति (JPC) में चर्चा के दौरान स्पष्ट हो गया था कि संख्या के आधार पर यह विधेयक पारित हो जाएगा।
उन्होंने कहा, “JPC में विपक्ष की बात नहीं सुनी गई और बहुमत की राय बिना चर्चा के थोप दी गई।” उन्होंने कहा कि सरकार का यह तर्क कि बिल से पारदर्शिता आएगी और भ्रष्टाचार रुकेगा, सिर्फ बहाना है।
“‘वक्फ बाय यूजर’ को समाप्त करना और गैर-मुस्लिमों को वक्फ बोर्ड में शामिल करना इसकी असली मंशा को उजागर करता है,” उन्होंने कहा।
सीमित प्रभाव, लेकिन व्यापक समर्थन
राजनीतिक कार्यकर्ता सज्जाद कारगिली ने कहा कि भले ही लद्दाख में इस विधेयक का प्रत्यक्ष प्रभाव सीमित हो, लेकिन महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश और बिहार जैसे बड़े राज्यों में इसका गहरा असर पड़ेगा।
उन्होंने कहा, “लद्दाख तो इस पूरी तस्वीर का एक छोटा हिस्सा है। जिन राज्यों में मुस्लिम आबादी अधिक है, वहां वास्तविक परिणाम दिखेंगे। हम उनके शांतिपूर्ण विरोध का पूरा समर्थन करते हैं।”
मुस्लिम समुदाय को निशाना बनाने की रणनीति
कारगिली ने संसद में वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल द्वारा उठाए गए बिंदु को भी याद किया और इसे तीन तलाक विधेयक से जोड़ा। उन्होंने कहा, “अगर सरकार को वास्तव में मुस्लिम कल्याण की चिंता है, तो हिंदू धार्मिक संस्थाओं पर भी वही सिद्धांत क्यों लागू नहीं किया जाता?”
उन्होंने पूछा कि यदि वक्फ बोर्ड में गैर-मुसलमानों को शामिल किया जा सकता है, तो मंदिर प्रबंधन में मुसलमानों या अन्य समुदायों को क्यों नहीं? “हर धार्मिक संस्था के लिए एक समान कानून क्यों नहीं लाया जाता?”
उन्होंने अंत में कहा, “आज मुसलमानों की बारी है, कल किसी और समुदाय की होगी। किसान आंदोलन, CAA, तीन तलाक और अनुच्छेद 370 को हमने देखा है। अगर ऐसे कदमों को रोका नहीं गया तो यह सभी के लिए नुकसानदेह होगा।”वक्फ में सरकार नहीं कर सकती है हस्तक्षेप, लद्दाख के मुस्लिम नेताओं ने की कानून की निंदावक्फ में सरकार नहीं कर सकती है हस्तक्षेप, लद्दाख के मुस्लिम नेताओं ने की कानून की निंदा