कृषि तकनीक: जीन टेक्नोलॉजी से तैयार धान से पराली जलाने का झंझट खत्म
कृषि वैज्ञानिकों का मानना है कि जीन टेक्नोलॉजी से तैयार धान से पराली जलाने की समस्या से निजात मिलेगी। लागत घटेगी और कम समय में अधिक पैदावार होगी।;
भारतीय कृषि वैज्ञानिकों की आधुनिक टेक्नोलॉजी पर आधारित धान की ऐसी उम्दा प्रजाति का आविष्कार है जिससे कई चुनौतियों का समाधान एक साथ हो जाएगा। कम लागत, अधिक पैदावार और अल्पावधि में तैयार होने वाली जीनोम टेक्नोल़ॉजी वाली धान की इन प्रजातियों से चौतरफा लाभ ही लाभ है। लेकिन इससे कहीं अधिक बड़ा लाभ पर्यावरण संरक्षण को होने वाला है।
पराली जलाने से मुक्ति मिलेगी
कम सिंचाई की जरूरत से जहां जल संरक्षण होगा तो वहीं पराली जलाने से पैदा होने वाले वायु प्रदूषण जैसी विभीषिका से निजात मिल सकती है। धान की नई किस्में किसानों की आय बढ़ाने, लागत घटाने, पानी की बचत और ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन कम करने में मददगार होंगी।
कृषि मंत्रालय का अनुमान है कि इन किस्मों की खेती से देश के लगभग 5 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में 45 लाख टन धान के अतिरिक्त उत्पादन, ग्रीन हाउस गैसों में 20 फीसदी की कमी और 20 दिन पहले तैयार होने के कारण 750 करोड़ घन मीटर सिंचाई जल की बचत हो सकती है।
किसान कोई जानबूझकर अपने खेतों में फसलों पराली नहीं जलाते हैं। उनकी मजबूरी है, जिसे समझना जरूरी है। धान की मशीनों से होने वाली कटाई (हार्वेस्टिंग) के बाद खेतों में खड़ी पराली को निकालने की जल्दी होती है।
दरअसल, वर्तमान में धान की जो प्रजातियां भारत में बोई जाती हैं, उनके पककर तैयार होने की अवधि अधिक होती है। इससे रबी सीजन की तैयारी करने और गेहूं की बोआई के लिए के समय कम मिल पाता है। लिहाजा किसान जल्दी में रहते हैं। इसी वजह से उन्हें खेतों से पराली हटाने का समय नहीं मिल पाता है, लिहाजा पराली खेत में ही जलाने का चलन सा हो गया है, जिससे खेत खाली करने में सहूलियत होती है देश के समूचे उत्तर भारत में धान की पराली को खेतों में जलाने से वायु प्रदूषण का गंभीर खतरा बना रहता है। कृषि वैज्ञानिकों के धान के इस नयी प्रजाति के आविष्कार ने इस समस्या का समाधान कर दिया है।
जीनोम में समाधान
जीनोम संशोधित धान की इस प्रजाति वाली फसल को तैयार होने में 20 से 25 दिन कम लगेंगे। इससे पराली हटाने अथवा उसे खेत में ही सड़ाकर बायो फर्टिलाजर में तब्दील का करने पूरा समय मिल जाएगा। इससे जहां पराली जलाने से होने से वाले नुकसान से बचा जा सकता है वहीं पराली की बायो खाद से मिट्टी की उत्पादकता को बढ़ाने में मदद मिल जाएगी।
उत्तरी राज्यों में पंजाब, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और बिहार तक की हवा में धुंआ घुला रहता है, जिससे लोगों को सांस लेने में तकलीफ होती है।
विश्व का पहला जीनोम-संशोधित धान की प्रजातियों का आविष्कार
कृषि अनुसंधान के क्षेत्र में महत्वपूर्ण उपलब्धि हासिल करते हुए भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) ने धान की दो जीनोम-संपादित किस्में विकसित की हैं। आईसीएआर के संस्थानों द्वारा विकसित इन किस्मों में डीआरआर धान 100 (कमला) और पूसा डीएसटी राइस 1 शामिल हैं। इनमें कमला अधिक उपज और कम समय में तैयार होने वाली किस्म है, जबकि पूसा डीएसटी राइस 1 सूखे और अधिक लवणता का सामना करने में सक्षम हैं। भारत जीनोम-संशोधित धान की किस्में विकसित करने वाला दुनिया का पहला देश बन गया है। ऐसी दो प्रजातियों को जारी कर दिया गया है।
धान की ये किस्में 30 प्रतिशत अधिक उत्पादन देने में सक्षम हैं। इस प्रजाति की फसलें 20 दिन पहले तैयार हो जाती हैं। उत्पादन को बढ़ाने के साथ भारतीय कृषि को सतत विकास की ओर अग्रसर करने और किसानों को समृद्ध बनाने में मील का पत्थर सिद्ध होंगी।
देश की खाद्य और पोषण सुरक्षा सुनिश्चित करते हुए भारत विश्व का फूड बास्केट बनाने के उद्देश्य से काम करना होगा।
आईसीआर के महानिदेशक और कृषि अनुसंधान एवं शिक्षा विभाग के सचिव डॉ. एमएल जाट के मुताबिक, "दोनों जीन एडिटेड किस्मों के ऑल इंडिया कॉर्डिनेटेड ट्रायल हो चुके हैं। इन्हें जल्दी ही ब्रीडर सीड, फाउंडेशन सीड और सर्टिफाइड सीड में तब्दील करने में सफल होंगे।"
इन चरणों के पूरा होने के बाद उन्हें किसानों को उपलब्ध कराने की प्रक्रिया पूरी की जाएगी। इन किस्मों को विकसित कर भारत ने जीनोम एडिटेड किस्मों की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम बढ़ाया है।
पूसा डीएसटी राइस 1
भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, नई दिल्ली (IARI) ने धान की 'एमटीयू 1010' किस्म में जीनोम एडिटिंग कर 'पूसा डीएसटी राइस १' नाम से एक नई किस्म विकसित की है। यह सूखे का सामना करने और लवणीय व क्षारीय मिट्टी में भी बेहतर उपज देने में सक्षम है। यह सूखा प्रभावित व क्षारीय मिट्टी वाले इलाकों के लिए उपयुक्त है।
डीआरआर धान 100 (कमला)
आईसीएआर के हैदराबाद स्थित भारतीय चावल अनुसंधान संस्थान (IIRR) ने धान की 'सांबा महसूरी' किस्म में जीनोम एडिटिंग कर नई किस्म डीआरआर धान 100 (कमला) तैयार की है। इसमें साइट डायरेक्टेड न्यूक्लीज 1 (SDN1) प्रक्रिया का इस्तेमाल किया गया है जिससे बाली में दानों की संख्या में वृद्धि हुई और उपज लगभग 19 फीसदी बढ़ गई।
यह लगभग 20 दिन पहले (130 दिन) में पककर तैयार हो जाती है। अनुकूल परिस्थितियों में 9 टन प्रति हेक्टेयर तक उपज की क्षमता है। कम अवधि के कारण पानी और लागत की बचत होती है। यह किस्म चावल की गुणवत्ता में मूल किस्म यानी सांबा महसूरी जैसी है।
जीनोम-संपादित फसलों को लेकर छिड़ी लंबी बहस के बाद भारत सरकार ने SDN1 और SDN2 प्रक्रिया से जीन एडिटेड फसलों को सुरक्षित मानते हुए इन्हें बॉयोसेफ्टी गाइडलाइन से छूट दी थी। इस संबंध में 30 मार्च, 2022 को पर्यावरण एवं वन मंत्रालय ने अधिसूचना जारी कर दी थी। बॉयोसेफ्टी गाइडलाइन से छूट मिलने से ही जीनोम-संपादित नई किस्मों को विकसित करने का रास्ता खुला है। यह तकनीक देश की खाद्य सुरक्षा और पोषण सुरक्षा के लिहाज से महत्वपूर्ण मानी जा रही है। आईसीएआर द्वारा खाद्यान्न, तिलहन व दलहनों सहित कई फसलों में जीनोम एडिटिंग अनुसंधान आरंभ किए जा चुके हैं।
धान के वरिष्ठ कृषि वैज्ञानिक और आईएआरआई के पूर्व निदेशक डॉ. एके सिंह ने बताया कि नई किस्मों को जीनोम संपादन की (क्रिस्पर-कैस) तकनीक से विकसित किया गया है। इससे पौधों के मूल जीन में सूक्ष्म बदलाव किए जाते हैं लेकिन इसमें कोई बाहरी जीन नहीं जोड़ा जाता है। जीनोम एडिटिंग की दो विधियों एसडीएन1 और एसडीएन2 से विकसित सामान्य फसलों को भारत सरकार के जैव सुरक्षा नियमों से मुक्त रखा गया है।