Ceasefire: कभी ठीक नहीं रही पाकिस्तान की नीयत, करगिल-संसद हमला बड़ा उदाहरण
वैसे तो पाकिस्तान-भारत में संघर्ष विराम का ऐलान शनिवार को हुआ। लेकिन पाकिस्तान की तरफ से फिर से उल्लंघन किया गया। लेकिन पड़ोसी मुल्क का इतिहास ऐसा ही रहा है।;
India Pakistan Ceasefire News: शनिवार करीब 6 बजे भारत के विदेश सचिव विक्रम मिसरी ने कहा कि भारत और पाकिस्तान के बीच सीजफायर हो चुका है। हालांकि लोगों के मन में पाकिस्तान की नेकनीयती को लेकर संदेह था। करीब तीन घंटे बाद यह खबर आई कि पाकिस्तान ने संघर्षविराम का उल्लंघन किया है। इसे विदेश सचिव ने भी स्पष्ट किया। लेकिन पाकिस्तान की बदनीयती का इतिहास पुराना रहा है।
इतिहास गवाह है कि पाकिस्तान अक्सर पहले आक्रामकता दिखाता है, फिर शांति की बात करता है, लेकिन आंतरिक और अंतरराष्ट्रीय दबाव कम होते ही फिर से उसी राह पर लौट आता है। इस दोहरे चरित्र के कई उदाहरण भारत के पास हैं।
कारगिल युद्ध (1999)
फरवरी 1999 में तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने ऐतिहासिक दिल्ली-लाहौर बस सेवा की शुरुआत करते हुए पाकिस्तान का दौरा किया और नवाज शरीफ के साथ साझा घोषणापत्र पर हस्ताक्षर किए।
लेकिन कुछ ही महीनों बाद पाकिस्तान की सेना ने कारगिल की पहाड़ियों में घुसपैठ कर दी। 3 मई को शुरू हुए युद्ध में भारतीय सेना ने 'ऑपरेशन विजय' चलाकर पाकिस्तानी घुसपैठियों को खदेड़ दिया और उन्हें भारी नुकसान पहुंचाया।
संसद हमला (2001)
जुलाई 2001 में राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ भारत आए और आगरा में शांति वार्ता हुई। बातचीत सकारात्मक थी, लेकिन छह महीने बाद पाकिस्तान प्रायोजित आतंकियों ने भारतीय संसद पर हमला कर दिया। इस हमले में 8 लोगों की जान गई। यह घटना दोनों देशों को युद्ध के मुहाने तक ले गई थी।
फिर वही पुरानी रणनीति?
‘ऑपरेशन सिंदूर’ के तहत भारत ने पाकिस्तान की सैन्य क्षमताओं को भारी नुकसान पहुंचाया है। इसके बाद पाकिस्तान की ओर से गोलीबारी और उकसावे की घटनाएं तेज हो गई हैं।भारत ने साफ कर दिया है कि इस बार कोई रियायत नहीं दी जाएगी। रक्षा मंत्रालय के अनुसार, पाकिस्तान की ओर से अगर कोई आतंकी हमला हुआ तो उसे "युद्ध की कार्रवाई" माना जाएगा और प्रतिक्रिया भी वैसी ही होगी।
भारत ने सीजफायर समझौते की पुष्टि जरूर की है, लेकिन सिंधु जल संधि पर रोक जैसी रणनीतिक चालों से यह स्पष्ट कर दिया है कि अब शांति की कोई भी पहल भारत की शर्तों पर ही होगी।
पाकिस्तान में सत्ता का भ्रम
भारत की नीति पाकिस्तान की आंतरिक स्थिति को भी ध्यान में रखकर तैयार की गई है। विश्लेषकों का मानना है कि पाकिस्तान की नीति में अस्थिरता की मुख्य वजह उसके शासन तंत्र की टूट-फूट है।प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ एक ओर सीजफायर की बात करते हैं, दूसरी ओर एलओसी पर उनकी सेना फायरिंग कर रही है। इससे स्पष्ट है कि नागरिक नेतृत्व और सैन्य नेतृत्व के बीच गहरा मतभेद है।
फिलिस्तीन जैसे आतंकी हमलों से पहले पाक सेना प्रमुख जनरल आसिम मुनीर के भड़काऊ भाषणों ने इस भ्रम को और गहरा कर दिया है कि पाकिस्तान की विदेश नीति का असली नियंत्रण किसके पास है। भारत-पाक संबंधों का इतिहास दिखाता है कि शांति प्रयासों के पीछे पाकिस्तान की मंशा अक्सर संदिग्ध रही है। भारत अब इस इतिहास से सबक लेकर कार्रवाई कर रहा है कूटनीति के साथ शक्ति का प्रदर्शन भी उतना ही महत्वपूर्ण है। मौजूदा रणनीति में स्पष्ट संदेश है: “अब कोई छूट नहीं”।