पीएम मोदी की स्वतंत्रता दिवस स्पीच: विपक्ष पर निशाना, RSS को साधने की पहल

पीएम मोदी का यह स्वतंत्रता दिवस भाषण "विकसित भारत" और आत्मनिर्भरता के विजन से अधिक आत्मरक्षा की रणनीति प्रतीत हुआ। यह भाषण राजनीतिक से प्रेरित था, बजाय निर्णायक नेतृत्व प्रदर्शन के।;

Update: 2025-08-15 17:18 GMT

पिछले 11 वर्षों से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के स्वतंत्रता दिवस भाषण बड़े राजनीतिक, आर्थिक और सामाजिक फैसलों का मंच बने रहे हैं। इस बार अपने 12वें लगातार भाषण में प्रधानमंत्री मोदी ने केवल भविष्य की योजनाओं की बात नहीं की, बल्कि यह भाषण खुद को राजनीतिक तौर पर सुरक्षित रखने की कोशिश भी नजर आया। वह भी तब, जबकि यह 103 मिनट लंबा अब तक का सबसे लंबा भाषण था।

राजनीतिक विरोध की चुनौती

मोदी ने व्यापक मुद्दों पर बात की — आत्मनिर्भर रक्षा, जीएसटी सुधार, जनसांख्यिक मिशन, RSS की प्रशंसा — लेकिन इन घोषणाओं के बीच एक स्पष्ट सुर गैर-मुक्तिदाता, बल्कि सत्तावाद से बचने की लालसा था। यह वह मोदी नहीं रहे जो कभी अपने विरोधियों को रणनीति से परास्त करने का दावा करते थे; अब ऐसा प्रतीत हुआ जैसे नाकाबंदी के लिए उनकी प्रतिक्रिया उन्हें आदेशित कर रही हो। यह भाषण आत्म-रक्षा पर आधारित था।

क्या बचाव, क्या बयान?

वास्तव में भाषण में चार प्रमुख विषयों पर जोर था। रक्षा में स्वदेशी आत्मनिर्भरता और "सुदर्शन चक्र मिशन", "नेक्स्ट‑जेनरेशन" आर्थिक सुधार, विशेषकर जीएसटी क्षेत्र में, जनसांख्यिक मिशन का प्रस्ताव और RSS की असाधारण सराहना। विश्लेषकों के अनुसार, ये विषय सिर्फ विकास नहीं बल्कि विरोधी हमलों से सुरक्षा कवच का काम कर रहे थे।

पहला स्वतंत्रता दिवस भाषण ऑपरेशन सिंदूर के बाद

यह भाषण ऑपरेशन सिंदूर की सफलता के बाद पहला भाषण था, जिसमें भारत ने पाकिस्तान पर निर्णायक कार्रवाई करते हुए आत्मनिर्भरता दिखाई। फिर भी, ट्रंप द्वारा उस मामले में शांति वार्ता का श्रेय लेने के बाद, मोदी राजनीतिक रूप से इसका पूरा फायदा नहीं उठा पाए — संसद में इस पर बहस करने के फैसले के बावजूद विपक्षी प्रतिक्रिया से दबाव महसूस हुआ।

सुदर्शन चक्र मिशन

‘सुदर्शन चक्र मिशन’ रक्षा में आत्मनिर्भरता का एक प्रमुख संकेत था, लेकिन पोतों में वह राजनीतिक नुकीलापन अपेक्षित तीव्रता नहीं था। यह घोषणा एक रणनीतिक आवरण मात्र साबित हुई — असल उसे राजनीतिक लाभ में नहीं बदला गया।

आर्थिक सुधार

मोदी ने जीएसटी सुधार द्वारा दिवाली तक राहत देने का वादा किया, लेकिन विपक्ष — विशेष रूप से राहुल गांधी — इसे उनकी आर्थिक नीतियों की विफलता स्वीकारने जैसा मान रहा है। विपक्ष का कहना है कि यह घोषणाएं लंबे समय से की गई आलोचनाओं का ही पुनः दोहन हैं।

जनसांख्यिकी मिशन और अलगाववादी भाषा

सबसे विवादास्पद पहल रही जनसांख्यिक मिशन, जिसमें उन्होंने "घुसपैठियों" के खिलाफ कड़े रुख का संकेत दिया। यह स्पष्ट राजनीतिक कटाक्ष है — विशेषकर बिहार में चल रही विशेष मतदाता संशोधन प्रक्रिया (RMS) को देखते हुए।

RSS को असीम सम्मान

शायद भाषण का सबसे बड़ा संकेत उनकी ओर से RSS को दी गई असाधारण प्रशंसा थी — संघ की 100वीं वर्षगांठ पर यह ताजगी भरा समर्थन था। यह न सिर्फ राजनीतिक तुगलकी था बल्कि संघ पर बेहतर नियंत्रण या फिर उनसे सामंजस्य स्थापित करने की दस्तक भी थी।

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