NEP Row: चुनावी रणनीति या फिर DMK की मातृभाषा को बनाए रखने की कवायद, देखें VIDEO

NEP 2020: द फेडरल के एडिटर -इन-चीफ एस श्रीनिवासन का कहना है कि तमिलनाडु का विरोध अन्य भाषाओं को अस्वीकार करने के बारे में नहीं है बल्कि यह छात्रों को अपनी मातृभाषा में सीखने का अधिकार बनाए रखने के बारे में है.;

Update: 2025-02-22 03:31 GMT

Talking Sense with Srini: तमिलनाडु में केंद्र सरकार की राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) 2020 के तहत प्रस्तावित की गई तीन-भाषा नीति के खिलाफ विरोध ने राजनीतिक परिदृश्य को हिलाकर रख दिया है. यह मुद्दा तब और बढ़ गया जब केंद्रीय मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने चेतावनी दी कि अगर तमिलनाडु ने पूरी तरह से राष्ट्रीय शिक्षा नीति को लागू नहीं किया तो राज्य को समग्र शिक्षा योजना के तहत फंड खोने पड़ेंगे. इसके बाद मुख्यमंत्री एमके स्टालिन के नेतृत्व वाली DMK सरकार और भाजपा-नीत केंद्र के बीच एक बड़ा टकराव पैदा हो गया.

Talking Sense with Srini में द फेडरल के एडिटर -इन-चीफ एस श्रीनिवासन और वरिष्ठ पत्रकार रंगराज ने इस विवाद के मूल में जाकर चर्चा की. तमिलनाडु के विरोध का मुख्य कारण राज्य की पुरानी दो-भाषा नीति है, जिसमें तमिल और अंग्रेजी को प्राथमिकता दी जाती है. यह नीति राज्य के इतिहास में गहरे से निहित है और शिक्षा प्रणाली में तीसरी भाषा खासकर हिंदी के थोपे जाने का विरोध करती है.


Full View

मातृभाषा को बढ़ावा

श्रीनिवासन ने कहा कि तमिलनाडु का विरोध अन्य भाषाओं को अस्वीकार करने के बारे में नहीं है बल्कि यह छात्रों को अपनी मातृभाषा में शिक्षा प्राप्त करने का अधिकार बनाए रखने के बारे में है. राज्य लगातार तमिल की शिक्षा की महत्ता पर जोर देता रहा है. जबकि अंग्रेजी को एक ऐसी भाषा के रूप में मान्यता दी है. जो अन्य राज्यों और संघीय सरकार के साथ संवाद स्थापित करने में मदद करती है.

DMK के लिए बड़ी साजिश

रंगराज ने इस बहस के राजनीतिक पहलुओं पर विस्तार से चर्चा की. DMK के लिए भाषा केवल संवाद का एक माध्यम नहीं है बल्कि यह सांस्कृतिक स्वायत्तता का प्रतीक है. डर यह है कि तीन-भाषा नीति तमिलनाडु में अप्रत्यक्ष रूप से हिंदी को लागू कर सकती है, भले ही यह सुनिश्चित किया गया हो कि छात्रों को हिंदी सीखने का विकल्प दिया जाएगा. DMK इसे "उत्तरी प्रभुत्व" की एक बड़ी साजिश के रूप में देखती है. विशेष रूप से हिंदी भाषी राज्यों से. तमिलनाडु के लिए भाषा का मुद्दा दशकों से एक राजनीतिक रणभूमि रहा है और तीन-भाषा नीति को हिंदी के प्रभाव को बढ़ाने का एक उपकरण माना जाता है.

हालांकि, केंद्र का तर्क है कि यह नीति भारतीय भाषाओं को बढ़ावा देने के लिए है और भाषा शिक्षा को राष्ट्रीय एकता के उपकरण के रूप में देखा जाना चाहिए, न कि राजनीतिक विभाजन के रूप में. प्रधान का स्टालिन को भेजा गया पत्र, जिसमें राज्य को नीति के बारे में "संकुचित" दृष्टिकोण अपनाने का आरोप लगाया गया, ने तनाव को और बढ़ा दिया है.

बड़े राजनीतिक प्रभाव

इस विवाद के राजनीतिक प्रभाव स्पष्ट हैं. क्योंकि यह व्यापक क्षेत्रीय और राष्ट्रीय कथाओं में शामिल हो गया है. जैसा कि रंगराज ने कहा कि DMK इस मुद्दे का उपयोग तमिल संस्कृति के रक्षक के रूप में अपनी स्थिति को मजबूत करने के लिए कर रही है. जबकि भाजपा ने अपने प्रयासों के बावजूद दक्षिणी राज्य में कोई महत्वपूर्ण सफलता हासिल नहीं की है. इसके साथ ही वित्तीय दबाव भी खेल में है. तमिलनाडु को समग्र शिक्षा योजना के तहत महत्वपूर्ण 2,158 करोड़ रुपये के फंड खोने का खतरा है. अगर यह NEP की भाषा नीति का पालन नहीं करता है. हालांकि, जैसा कि श्रीनिवासन ने बताया कि संविधान में तीन-भाषा नीति का कोई प्रावधान नहीं है, जिससे इस कदम की संवैधानिक वैधता पर सवाल उठता है.

राज्य और केंद्रीय सरकारों के दृढ़ रुख के साथ और चुनाव नजदीक आने के साथ तमिलनाडु का तीन-भाषा नीति के खिलाफ प्रतिरोध राज्य के राजनीतिक परिदृश्य में एक निर्णायक मुद्दा बनने वाला है. जैसे-जैसे यह संघर्ष जारी रहेगा, एक बात साफ है कि भाषा केवल संवाद का मुद्दा नहीं है- यह तमिलनाडु में पहचान, स्वायत्तता और राजनीतिक शक्ति का एक मजबूत प्रतीक है.

Tags:    

Similar News