'क्या बिहार में भी चुनाव हाइजैक हो रहा है?' राहुल गांधी का बड़ा आरोप

सुप्रीम कोर्ट ने SIR प्रक्रिया चलने दी है, लेकिन इसे औपचारिक और संवैधानिक दिशा-निर्देशों के दायरे में सीमित भी किया है। 28 जुलाई तक कोर्ट तय करेगा कि क्या यह प्रक्रिया संविधान और लोकतंत्र दोनों के हित में है या चुनाव को प्रभावित करने वाला एक राजनीतिक हथियार बन रहा है।;

Update: 2025-07-12 02:33 GMT

सुप्रीम कोर्ट ने बिहार में चुनाव आयोग को स्पेशल इंटेंसिव रिविजन (SIR) यानी व्यापक मतदाता सूची संशोधन की प्रक्रिया शुरू करने की अनुमति दे दी है। इसके तुरंत बाद नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी ने आरोप लगाया कि बीजेपी महाराष्ट्र की तरह बिहार में भी चुनावों को "हाइजैक" करने की कोशिश कर रही है। श्वेता त्रिपाठी के साथ इंटरव्यू में द फेडरल के पॉलिटिकल एडिटर पुनीत निकोलस यादव ने बिहार के राजनीतिक भविष्य पर मंडराते सवालों और चुनौतियों पर विस्तार से चर्चा की।

सुप्रीम कोर्ट का आदेश

आयोग द्वारा पहले 11 दस्तावेजों को ही वोटर पात्रता के लिए मान्यता देने की योजना बनायी गई थी। इनमें NRC सर्टिफिकेट भी शामिल था, जबकि आधार, राशन कार्ड और मतदाता पहचान पत्र (Voter ID) जैसी सामान्य पहचान छूट गई थीं।

पेटिशनर्स— जिनमें ADR, महुआ मोइत्रा (TMC), मनोज झा (RJD), योगेंद्र यादव, PUCL और INDIA ब्लॉक की पार्टियां शामिल थीं — ने बताया कि इससे गरीबी-पेशार बिहार जैसे राज्य के करीब 20–35 लाख मतदाताओं को वोट देने से वंचित किया जा सकता है। सुप्रीम कोर्ट ने आयोग को आधार, राशन कार्ड और वोटर ID को भी मान्यता देने का निर्देश दिया। इसके अलावा ड्राफ्ट मतदाता सूची को 28 जुलाई तक प्रकाशित करने से रोक दिया गया है और इस दौरान प्रक्रिया रुकाने का अधिकार भी सुरक्षित रखा गया है।

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विपक्ष की जीत है या चुनाव आयोग की?

विपक्ष का दावा है कि तीन मुख्य दस्तावेजों को सम्मिलित करवाया गया और संशोधित सूची को रोकने का समय मिल गया। इसलिए यह आंशिक जीत है। वहीं, चुनाव आयोग और बीजेपी का दावा है कि SIR चलता रहेगा, उनकी पहल पर रोक नहीं लगी। आयोग कह रहा है कि वोटर ID को स्वीकार करना उनका मूल उद्देश्य ही था। सुप्रीम कोर्ट की भाषा फिलहाल "विचार करें" तक सीमित है, जिससे आयोग को कुछ विवेक बचता है। हालांकि अब उसे किसी दस्तावेज के मान्यता को अस्वीकार करने का उचित कारण देना जरूरी हो गया है।

चुनावी माहौल पर असर?

पहला पहलू यह है कि लोग इसमें लोकतांत्रिक ह्रास की आशंका देखते हैं। महाराष्ट्र और हरियाणा में लोगों में यह डर पहले से दिख चुका है कि उनका वोट बहे ट्रैक पर नहीं जाता। दूसरे पहलू में अगर बहुत से लोग मतदाता सूची से बाहर हो गए तो अकेले मतदान प्रतिशत घट सकता है, जो अक्सर विपक्ष को ज्यादा प्रभावित करता है — क्योंकि अक्सर कमज़ोर, ग्रामीण और विक्षिप्त इलाकों में मतदान कम होता है।

Bihar में SIR का ऐतिहासिक महत्व

यह पहली बार 2003 के बाद बिहार में SIR हो रहा है। Summary Revision (SR) जनवरी में होना था, लेकिन SIR में यह प्रक्रिया बहुत तेज और दूरगामी होती है। बिहार में 8 करोड़ मतदाता हैं, जिनमें से 4.9 करोड़ 2003 के SIR में सुरक्षा पा चुके हैं। लेकिन 3 करोड़ से ज्यादा नए मतदाता को नए दस्तावेज जमा करने होंगे।

भ्रष्ट हो सकते हैं डिजिटलीकरण के वादे?

बिहार जैसे आपदा-प्रवण राज्य में कोसी, सीमांचल इलाकों में बाढ़ और विस्थापन आम है— लोगों के पंजीयन प्रमाणों जैसे पासपोर्ट या मैट्रिक सर्टिफिकेट बने रहना मुश्किल होता है। ऐसे में वोटिंग के डेमोक्रेटिक अधिकारों को खोने का डर गहराता जा रहा है। यह किसी प्रशासनिक प्रक्रिया से कहीं ज़्यादा राजनीतिक मायने रखता है।

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