Parliament scuffle: बैकफुट पर कौन: राहुल गांधी या अमित शाह?

Rahul Gandhi: राजनीतिक उथल-पुथल के बीच राहुल गांधी को पुलिस जांच का सामना करना पड़ रहा है. जबकि अंबेडकर विवाद सत्तारूढ़ पार्टी को हिला रहा है. क्या कोई राजनीतिक बदलाव हुआ है?;

Update: 2024-12-21 01:48 GMT

Rahul Gandhi facing police investigation: संसद में हाथापाई के एक दिन बाद राहुल गांधी (Rahul Gandhi) को पुलिस जांच का सामना करना पड़ रहा है. इसका उनके राजनीतिक करियर पर असर पड़ सकता है. साथ ही, बीआर अंबेडकर (BR Ambedkar) के बारे में टिप्पणी को लेकर विवाद ने सत्तारूढ़ भाजपा (BJP) के भीतर भी दरार पैदा कर दी है. ऐसे में द फेडरल की 'कैपिटल बीट' ने कानूनी और राजनीतिक विश्लेषण के चर्चा के जरिए इन घटनाओं का पता लगाने की कोशिश की है.

दिल्ली पुलिस संसद परिसर में कथित हाथापाई के मामले में राहुल गांधी और दो अन्य सांसदों के बयान दर्ज कर सकती है. आरोपों में चोट पहुंचाना, जान को खतरे में डालना और व्यक्तिगत सुरक्षा शामिल है. इसको लेकर सीनियर एडवोकेट संजय हेगड़े ने कहते हैं कि आरोप गंभीर हैं. लेकिन अयोग्यता के लिए दो साल या उससे अधिक की सजा की सजा की आवश्यकता है और यह एक लंबा रास्ता है, जिसके लिए आरोप पत्र दाखिल करने और मुकदमा चलाने की आवश्यकता है.

उन्होंने "जल्दबाजी में निर्णय लेने" के खिलाफ चेतावनी दी. इस बात पर जोर देते हुए कि प्रक्रिया लंबी हो सकती है. उदाहरण के तौर पर नेशनल हेराल्ड मामले का हवाला देते हुए. जबकि सरकार द्वारा भूमिगत रणनीति का उपयोग करने की कोशिश करने की आशंका है. हेगड़े ने इस बात पर प्रकाश डाला कि अब तक इनका उपयोग राजनीतिक विरोधियों को सलाखों के पीछे डालने के लिए केंद्रीय स्तर पर नहीं किया गया है. हालांकि, राज्य स्तर की राजनीति एक अलग तस्वीर पेश करती है.

दुर्व्यवहार के आरोप और एससी/एसटी अधिनियम

एक महिला सांसद की शिकायत से स्थिति और जटिल हो गई है, जिसने राहुल गांधी (Rahul Gandhi) पर दुर्व्यवहार का आरोप लगाया है और राष्ट्रीय महिला आयोग ने मामले की जांच करने की मांग की है. सांसद की आदिवासी पहचान को देखते हुए उन्हें एससी/एसटी अधिनियम के तहत फंसाने की आशंका के बारे में अटकलें लगाई जा रही हैं. हेगड़े ने कहा कि हालांकि ऐसी शिकायत का इस्तेमाल किया जा सकता है. लेकिन अदालतों ने ऐतिहासिक रूप से ऐसी कार्यवाही को खारिज कर दिया है. अगर वे दुर्भावना या गुप्त उद्देश्यों से सक्रिय प्रतीत होते हैं. साथ ही, घटना का समय ऐसा है कि इस अधिनियम का उपयोग संसद में डॉ. अंबेडकर (BR Ambedkar) के संबंध में उभरे विवादों से ध्यान हटाने जैसा प्रतीत होगा.

अंबेडकर विवाद: भाजपा में दरार

राजनीतिक टिप्पणीकार गिरीश जोशी ने कहा कि अंबेडकर विवाद (BR Ambedkar) के बाद सरकार लोगों का ध्यान भटकाने की कोशिश कर रही है. उन्होंने कहा कि अमित शाह (Amit Shah) के विवादित क्लिप को लेकर भाजपा (BJP) के भीतर असंतोष है और पार्टी इस मामले को दबाने की कोशिश कर रही है. उन्होंने कहा कि विवाद अमित शाह की टिप्पणियों से उपजा है, जिन्हें डॉ अंबेडकर के प्रति अपमानजनक माना गया. जोशी ने कहा कि इन कार्रवाइयों ने भाजपा (BJP) के भीतर गहरे वैचारिक टकराव और अंदरूनी कलह को उजागर किया है और इससे योगी आदित्यनाथ, फडणवीस और गडकरी जैसे नेताओं में बेचैनी पैदा हुई है. जो कथित तौर पर आपत्ति जता रहे हैं. इस स्थिति से निपटने से पता चल सकता है कि पार्टी किस दिशा में जा रही है. विपक्ष ने घोषणा की है कि वे इस मुद्दे पर पूरे देश में आंदोलन करने जा रहे हैं और इससे सत्तारूढ़ पार्टी के लिए हालात और खराब होंगे.

राजनीतिक पैंतरेबाजी

जोशी ने कहा कि सरकार ने सवालों के जवाब देने से बचने के लिए जानबूझकर संसद की कार्यवाही को पटरी से उतार दिया. लेकिन अंबेडकर विवाद के बाद सरकार को अपनी रणनीति पर पुनर्विचार करने के लिए मजबूर होना पड़ा. जोशी ने बताया कि सीसीटीवी फुटेज मांगना गुजरात में इस्तेमाल की गई रणनीति की तरह ही मामले को लंबे समय तक चलने वाली प्रक्रिया के लिए सीआईडी को भेजने के लिए इस्तेमाल की गई. रणनीति के तहत मामले को कमजोर करने का एक और तरीका है. उन्होंने कहा कि घटना के सीसीटीवी फुटेज की मांग के बावजूद कोई त्वरित निर्णय नहीं होने वाला था और सरकार एक पर्दा बनाकर मामले को ठंडा करने की कोशिश कर रही थी और वे पहले से ही बैकफुट पर हैं. उन्होंने आगे कहा कि सत्तारूढ़ पार्टी प्रियंका गांधी से डरती है. क्योंकि इससे राजनीतिक गणित काफी हद तक बदल जाता है.

वैचारिक लड़ाई

हेगड़े ने ऐतिहासिक संदर्भ देते हुए कहा कि मौजूदा स्थिति संविधान पर थोपी जा रही एक प्रतिक्रांति है. उन्होंने डॉ. अंबेडकर (BR Ambedkar) के विचारों की क्रांतिकारी प्रकृति पर जोर दिया, जिन्होंने सभी नागरिकों को, चाहे उनका जन्म या स्थिति कुछ भी हो, उनके मौलिक अधिकार दिए. उन्होंने कहा कि संविधान में निहित विचारों को लेकर कुछ वर्गों में वैचारिक मतभेद और असहजता है. उन्होंने संविधान के आरंभ में कुछ वर्गों द्वारा किए गए विरोध के साथ समानताएं भी बताईं, जिन्हें लगा कि यह भारत के पारंपरिक मूल्यों का प्रतिनिधित्व नहीं करता है.

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