भागवत की मंदिर-मस्जिद विवाद पर चिंता, अब पांचजन्य का समर्थन

Mohan Bhagwat: पत्रिका के संपादकीय में कहा गया है कि मंदिर हिंदू आस्था का केंद्र हैं. लेकिन राजनीतिक लाभ के लिए उनका इस्तेमाल पूरी तरह से अस्वीकार्य है.;

Update: 2025-01-01 17:43 GMT

Temple-mosque Disputes: राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) प्रमुख मोहन भागवत (Mohan Bhagwat) ने पिछले दिनों देश भर में मंदिर-मस्जिद विवादों के फिर से उठने पर चिंता जताई थी. उनके इस बयान के कुछ दिनों बाद ऑर्गनाइजर और पांचजन्य जैसी पत्रिकाओं से लेकर विभिन्न प्रतिक्रियाएं सामने आ रही हैं. आरएसएस (RSS) से संबद्ध हिंदी पत्रिका पांचजन्य ने अपने संपादकीय में भागवत के रुख का समर्थन किया है और इन मामलों में संतुलित और समझदारीपूर्ण नजरिया अपनाने की वकालत की है.

संपादकीय में अनावश्यक बहसों और भ्रामक आख्यानों के प्रति आगाह किया गया है. विशेष रूप से सोशल मीडिया द्वारा प्रचारित किए जाने वाले आख्यानों के प्रति, तथा सभ्यतागत न्याय को बढ़ावा देने तथा समुदायों के बीच शांति और सद्भाव को बढ़ावा देने के लिए धार्मिक स्थलों के ऐतिहासिक संदर्भ को समझने की आवश्यकता पर बल दिया गया है.

धर्म का प्रयोग अस्वीकार्य

भागवत (Mohan Bhagwat) के नजरिये से मेल खाते हुए संपादकीय में पांचजन्य ने कहा कि यह बढ़ती प्रवृत्ति "चिंताजनक" है. संपादकीय में कहा गया है कि मंदिर हिंदू आस्था का केंद्र हैं. लेकिन राजनीतिक लाभ के लिए उनका उपयोग पूरी तरह से अस्वीकार्य है. मंदिर-मस्जिद मुद्दों पर अनावश्यक बहस में शामिल होना या भ्रामक प्रचार करना एक चिंताजनक प्रवृत्ति बन गई है. संपादकीय में उन धार्मिक स्थलों के ऐतिहासिक संदर्भ को समझने के महत्व पर भी प्रकाश डाला गया है. जिन पर या तो हमला किया गया या उन्हें ध्वस्त कर दिया गया. इसमें तर्क दिया गया कि सभ्यतागत न्याय को बढ़ावा देने और शांति और सद्भाव को बढ़ावा देने के लिए ऐसी समझ आवश्यक है.

भागवत ने क्या कहा?

भागवत (Mohan Bhagwat) ने पिछले सप्ताह देश में मंदिर-मस्जिद विवादों के फिर से उठने पर चिंता व्यक्त की थी और कहा था कि अयोध्या में राम मंदिर के निर्माण के बाद कुछ लोग यह मानने लगे हैं कि वे ऐसे मुद्दों को उठाकर "हिंदुओं के नेता" बन सकते हैं. आरएसएस प्रमुख (Mohan Bhagwat) ने कहा कि हम लंबे समय से सद्भावना के साथ रह रहे हैं. अगर हम दुनिया को यह सद्भावना प्रदान करना चाहते हैं तो हमें इसका एक मॉडल बनाने की जरूरत है. राम मंदिर के निर्माण के बाद, कुछ लोग सोचते हैं कि वे नई जगहों पर इसी तरह के मुद्दे उठाकर हिंदुओं के नेता बन सकते हैं. यह स्वीकार्य नहीं है.

ऑर्गनाइजर का रुख

ऑर्गनाइजर ने हाल ही में कहा था कि सोमनाथ से लेकर संभल और उससे आगे तक, यह ऐतिहासिक सच्चाई जानने और "सभ्यतागत न्याय" की मांग की लड़ाई है. इसके संपादकीय में कहा गया है कि श्री हरिहर मंदिर, जिसे अब उत्तर प्रदेश के "ऐतिहासिक शहर" में जामा मस्जिद के रूप में बनाया गया है, का सर्वेक्षण करने की याचिका से शुरू हुआ विवाद, व्यक्तियों और समुदायों को दिए गए विभिन्न संवैधानिक अधिकारों के बारे में एक नई बहस को जन्म दे रहा है.

प्रफुल्ल केतकर द्वारा लिखे गए संपादकीय में कहा गया है कि छद्म धर्मनिरपेक्षतावादी चश्मे से बहस को हिंदू-मुस्लिम प्रश्न तक सीमित करने के बजाय, हमें सच्चे इतिहास पर आधारित सभ्यतागत न्याय की खोज पर एक विवेकपूर्ण और समावेशी बहस की आवश्यकता है, जिसमें समाज के सभी वर्ग शामिल हों.

हिंदू संगठन नाखुश

भागवत (Mohan Bhagwat) के बयान से हिंदू संगठन भी नाराज हैं और कुछ नेताओं ने दावा किया है कि आरएसएस (RSS) के सरसंघचालक उनकी बात नहीं करते. भागवत की टिप्पणी से नाराज कई हिंदू धार्मिक नेताओं ने पिछले सप्ताह प्रयागराज में तीन दिवसीय बैठक की, जिसमें मामले पर चर्चा की गई तथा भविष्य की रणनीति पर निर्णय लिया गया. धार्मिक नेताओं का मानना है कि आरएसएस लोगों और संगठनों को मंदिर और मस्जिद परिसरों से संबंधित विवादों से संबंधित मुद्दों को उठाने से नहीं रोक सकता.

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