बीमारियां बढ़ीं, दवाएं घटीं, ग्रामीण स्वास्थ्य सिस्टम की बुरी हालत

ICMR-WHO सर्वे के मुताबिक ग्रामीण भारत के अस्पतालों में मधुमेह व बीपी की दवाएं नदारद हैं। यही नहीं डॉक्टर-सर्जनों की भारी कमी से मरीजों की मुश्किल बढ़ गई है।;

Update: 2025-06-04 06:32 GMT

देश तभी स्वस्थ होगा जब लोग स्वस्थ होंगे। लेकिन चिंता की बात यह है कि डायबीटिज और ब्लड प्रेशर के मरीजों की संख्या में इजाफा हो रहा है, और उससे भी अधिक चिंता की बात यह है कि ग्रामीण इलाकों में मधुमेह (डायबिटीज़) और उच्च रक्तचाप (बीपी) जैसी आम बीमारियों की दवाओं की भारी कमी देखी जा रही है। यह चौंकाने वाला खुलासा भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (ICMR) और विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) द्वारा सात राज्यों के 19 जिलों में किए गए संयुक्त सर्वेक्षण में सामने आया है।

 सर्वे की खास बातें

सबसे ज्यादा प्रभावित सब-सेंटर हैं। 35.2% सब-सेंटरों में मेटफॉर्मिन (मधुमेह की प्रमुख दवा) अनुपलब्ध पाई गई। 44.8% में एम्लोडिपाइन (बीपी की दवा) नहीं थी। सीएचसी में डॉक्टरों और सर्जनों की भारी कमी है। सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों (CHC) में डॉक्टर व सर्जनों की गंभीर कमी दर्ज हुई।यह स्थिति 2020-21 की ग्रामीण स्वास्थ्य रिपोर्ट से मेल खाती है, जिसमें 82% डॉक्टर और 83% सर्जनों की कमी बताई गई थी। वहीं पीएचसी, जिला अस्पताल और मेडिकल कॉलेज कुछ बेहतर हालत में हैं। 

प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र (PHC), जिला अस्पताल और सरकारी मेडिकल कॉलेज में इलाज की स्थिति अपेक्षाकृत बेहतर रही।हालांकि उपकरण उपलब्ध थे, लेकिन कई जगहों पर दवाओं की उपलब्धता सीमित रही।  हेल्थ एंड वेलनेस सेंटरों की स्थिति की अगर बात करें तो  64% पीएचसी को हेल्थ एंड वेलनेस सेंटर (HWC) में बदला जा चुका है।लेकिन सिर्फ 52.3% सब-सेंटर ही HWC बन सके हैं। इससे दोनों स्तरों की स्वास्थ्य सेवाओं में स्पष्ट असमानता देखी गई। जिला अस्पतालों में जांच सुविधाएं भी पर्याप्त नहीं पाई गईं। बड़ी बात यह है कि मरीजों को खुद फॉलोअप करना पड़ता है। सर्वे में 75% से अधिक सरकारी व निजी संस्थानों ने बताया कि वे डायबिटीज़ और बीपी के मरीजों की निगरानी करते हैं।लेकिन अधिकतर मरीज खुद ही फॉलोअप करते हैं।कुछ सब-सेंटरों पर स्वास्थ्यकर्मी घर-घर जाकर निगरानी कर रहे हैं।

दवाओं की उपलब्धता का स्तर (प्रतिशत में) की बात करें तो जिला अस्पताल में 80–82 फीसद, सार्वजनिक पीएचसी में 66 फीसद निजी पीएचसी 39 फीसद, सीएचसी में 55 फीसद सब-सेंटर 50 फीसद से भी कम है। 

सर्वे में हरियाणा के फरीदाबाद, भिवानी कर्नाटक के बेंगलुरु अर्बन, तुमकुर, मैसूर,मेघालय के ईस्ट खासी हिल्स, वेस्ट गारो हिल्स, ओडिशा के मयूरभंज, पुरी, नयागढ़, गंजाम,राजस्थान के जोधपुर, अजमेर, अलवर, मध्यप्रदेश के सीहोर, विदिशा, अनुपपुर छत्तीसगढ़ के दुर्ग, कांकेर को शामिल किया गया था। 

जानकारों का कहना है कि देश के विकसित राज्यों की तस्वीर थोड़ी ठीक है। लेकिन ग्रामीण स्तर पर उनका भी हाल कम विकसित राज्यों की तरह है। ग्रामीण इलाकों में मधुमेह और ब्लड प्रेशर की दवाओं की कमी पर स्वास्थ्य महकमा असंवेदनशील दिखाई दे रहा है। इसके लिए राज्य सरकारों को कड़ाई से काम करना होगा। अहम बात यह है कि ग्रामीण इलाके में अब युवा भी बड़ी संख्या में इसके चपेट में आ रहे हैं, ऐसे में जानकारी की कमी, दवा की कमी घातक साबित हो सकती है। अब ऐसे में अगर स्वास्थ्य महकमा हरकत में नहीं आएगा तो आप सिर्फ भयावह तस्वीर की कल्पना कर सिहर जाएंगे। 

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