498A मामलों में तुरंत गिरफ्तारी नहीं, पहले चलेगा सुलह का रास्ता

498A मामलों में गिरफ्तारी से पहले अब 60 दिन की शांति अवधि रहेगी यानी कि तत्काल गिरफ्तारी नहीं होगी। सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के दिशा-निर्देशों को पूरे देश में लागू किया।;

Update: 2025-07-24 07:31 GMT

सुप्रीम कोर्ट ने घरेलू हिंसा और दहेज उत्पीड़न से जुड़े मामलों में एक ऐतिहासिक निर्णय सुनाया है। कोर्ट ने कहा है कि भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 498A के तहत दर्ज मामलों में पुलिस दो महीने तक आरोपियों को गिरफ्तार नहीं करेगी। इस अवधि को अदालत ने शांति अवधि कहा है।

मामला और सुप्रीम कोर्ट का आदेश

यह आदेश सुप्रीम कोर्ट ने एक महिला IPS अधिकारी और उसके पति के बीच चल रहे विवाद की सुनवाई के दौरान दिया। कोर्ट ने इस महिला अधिकारी को निर्देश दिया कि वह अपने पति और ससुराल पक्ष के खिलाफ झूठे आरोप लगाने के लिए अखबारों में माफीनामा प्रकाशित करे।मुख्य न्यायाधीश जस्टिस बी.आर. गवई और जस्टिस ऑगस्टाइन जॉर्ज मसीह की पीठ ने यह आदेश सुनाया। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि IPC की धारा 498A के दुरुपयोग से बचने के लिए बनाए गए इलाहाबाद हाई कोर्ट के वर्ष 2022 के दिशा-निर्देशों को अब पूरे भारत में लागू किया जाएगा।

498A मामलों में अब यह प्रक्रिया अपनाई जाएगी

FIR या शिकायत दर्ज होने के बाद सीधे गिरफ्तारी नहीं होगी।

पहले 60 दिन की शांति अवधि दी जाएगी, जिसमें पुलिस कोई दंडात्मक कार्रवाई नहीं करेगी।

मामले को संबंधित जिले की ‘परिवार कल्याण समिति’ (Family Welfare Committee) के पास भेजा जाएगा।

केवल उन्हीं मामलों को FWC को भेजा जाएगा जिनमें धारा 498A के साथ कोई गैर-गंभीर धाराएं जुड़ी हों, और अधिकतम सजा 10 वर्ष से कम हो। इस अवधि में सुलह, समझौता या तथ्यात्मक मूल्यांकन की प्रक्रिया चलाई जाएगी।

इलाहाबाद हाई कोर्ट के दिशा-निर्देशों की वैधता बहाल

सुप्रीम कोर्ट का यह आदेश इलाहाबाद हाई कोर्ट के 13 जून 2022 को दिए गए फैसले को देशभर में प्रभावी बनाता है। हाई कोर्ट ने क्रिमिनल रिवीजन नंबर 1126/2022 में ऐसे दिशा-निर्देश जारी किए थे ताकि IPC 498A के संभावित दुरुपयोग को रोका जा सके।हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने 2018 में ‘सोशल एक्शन फॉर ह्यूमन राइट्स बनाम भारत संघ’ केस में FWC की भूमिका को निरस्त कर दिया था, जिसके चलते ये समितियां निष्क्रिय हो गई थीं। अब शीर्ष अदालत ने इन्हें दोबारा सक्रिय करते हुए इन्हें औपचारिक मान्यता दे दी है।

दहेज कानून का दुरुपयोग और न्यायिक संतुलन

498A एक गैर-जमानती और संज्ञेय अपराध है जिसे महिलाओं की सुरक्षा के लिए बनाया गया था। लेकिन वर्षों से इसे लेकर अदालतों में यह चिंता उठती रही है कि इस प्रावधान का कई बार झूठे मामलों में दुरुपयोग हुआ है। सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला, एक ओर महिलाओं की सुरक्षा को सुनिश्चित करता है, वहीं दूसरी ओर झूठे आरोपों से पुरुषों और उनके परिवार को राहत भी देने की कोशिश करता है।

सुप्रीम कोर्ट का यह निर्णय घरेलू हिंसा के मामलों में कानूनी प्रक्रिया को अधिक संतुलित और न्यायसंगत बनाने की दिशा में एक बड़ा कदम है। अब आरोप लगते ही गिरफ्तारी नहीं होगी, बल्कि समझौते और सत्यापन की प्रक्रिया को प्राथमिकता दी जाएगी। इससे ना केवल पुलिस पर से तत्काल गिरफ्तारी का दबाव हटेगा, बल्कि कानून के दुरुपयोग की गुंजाइश भी कम होगी।

भारतीय दंड संहिता की धारा 498 A को 983 में भारतीय संसद ने पारित किया था। इसका मकसद विवाहित महिलाओं को उनके ससुराल पक्ष द्वारा किए गए शारीरिक और मानसिक उत्पीड़न, विशेष रूप से दहेज के नाम पर, से सुरक्षा देना था। यह एक ग़ैर-जमानती और संज्ञेय अपराध है, जिसके अंतर्गत पति और उसके रिश्तेदारों को सीधे गिरफ्तार किया जा सकता था।लेकिन हाल के वर्षों में, इस प्रावधान के दुरुपयोग की शिकायतें बढ़ती गईं। सुप्रीम कोर्ट और विभिन्न उच्च न्यायालयों में यह मामला लगातार बहस का विषय बना रहा।

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