SC-ST के कोटे में कोटे पर सुप्रीम कोर्ट की मुहर, A से Z तक पूरी जानकारी

एससी-एसटी कोटे में राज्य सरकार उपवर्गीकरण कर सकती हैं। इस विषय पर सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने बहुमत से फैसला सुना दिया है।

By :  Lalit Rai
Update: 2024-08-01 06:02 GMT

SC-ST Quota News: आरक्षण का विषय भारत में बेहद संवेदनशील मसला है. राजनीतिक दल इस विषय पर संभल संभल कर बोलते हैं। इन सबके बीच सुप्रीम कोर्ट की सात सदस्यों की बेंच ने 6-1 की बहुमत से एससी-एसटी कोटे में कोटे पर फैसला सुना दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि राज्य सरकारें न्यायसंगत तरीके से एससी- एसटी कोटे का उपवर्गीकरण कर सकती है. हालांकि वो सीमा 15 फीसद और 7.5 फीसद से अधिक नहीं हो सकती। अदालत ने अपने फैसले में कहा कि कोटे में कोटा असमानता के खिलाफ नहीं है। सुप्रीम कोर्ट ने 2004 के अपने ही फैसले को पलट दिया। 2004 में पांच जजों की बेंच ने ईवी चिन्नैया के मामले में निर्णय देते हुए कहा था कि एससी-एसटी कोटे का उपवर्गीकरण नहीं किया जा सकता है। 2004 के फैसले में कहा गया था कि राज्य सरकारें अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति में सब कैटिगरी का निर्णय नहीं कर सकती हैं।

क्या है पूरा मामला

1975 में पंजाब सरकार ने आरक्षित सीटों को दो कैटिगरी में बांटा और अनुसूचित जाति के लिए आरक्षण की नीति सामने रखी। एक व्यवस्था वाल्मीकि-दूसरी मजहबी सिखों के लिए और दूसरी बाकी अनुसूचित जाति के लिए। 30 साल तक ये नियम लाग भी रहा। लेकिन 2006 में कोटा में उपवर्गीकरण का विषय पंजाब हरियाणा हाइकोर्ट के सामने रखा गया। इस बीच 2004 में आंध्र प्रदेश बनाम ई वी चिन्नैया मामले में 2004 में सुप्रीम कोर्ट ने फैसला दिया जिसमें कोटे में उपवर्गीकरण को समानता के खिलाफ बताते हुए सबकैटिगरी को असंवैधानिक बताया और उसकी वजह से पंजाब सरकार को झटका लगा। 2006 में ही वाल्मीकि और मजहबी सिखों को कोटा देने के लिए पंजाब सरकार ने कानून बनाया जिसे 2010 में चुनौती दी गई। हाईकोर्ट ने भी सुप्रीम कोर्ट के फैसले के आलोक में रद्द कर दिया और मामला सुप्रीम कोर्ट की दहलीज पर पहुंचा। 

पंजाब सरकार की दलील थी कि इंद्रा साहनी बनाम सुप्रीम कोर्ट के 1992 के फैसले के मुताबिक निर्णय लिया गया था. दरअसल उस फैसले में ओबीसी में वर्गीकरण की इजाजत दी गई थी। पंजाब सरकार का तर्क यह था कि ओबीसी की तरह इसमें भी अनुमति मिले। 2020 में पांच जजों की बेंच इस नतीजे पर पहुंची कि इस पर विचार के लिए बड़ी बेंच को मामला सुपुर्द किया जाए।चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया ने सात जजों की बेंच गठित की। जनवरी 2024 में तीन जिरह हुई थी और फैसला सुरक्षित रख लिया गया था। 

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