सर्व धर्म स्थल विवाद में SC सख़्त, अफ़सर को बताया सेना के लिए मिसफिट
बेंच ने कहा कि ऑफिसर 'इंडियन आर्मी के लिए मिसफिट' है और उसने अपने 'धार्मिक ईगो' को डिसिप्लिन, एकता और साथी सैनिकों के सम्मान पर हावी होने दिया।
Supreme Court Of India : सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को भारतीय सेना के एक ईसाई अधिकारी की याचिका को सख्त शब्दों में खारिज कर दिया। अफसर पर आरोप था कि वह अपने रेजिमेंट के सर्व धर्म स्थल जहाँ सभी धर्मों के सैनिक पूजा करते हैं के गर्भगृह में जाने से बार-बार इंकार करता रहा। कोर्ट ने कहा कि ऐसा व्यवहार न केवल ‘धार्मिक अहंकार’ दिखाता है बल्कि सेना के अनुशासन और सामूहिक आस्था का सीधा अपमान है।
धार्मिक अहंकार में डूबा, सेना के लिए मिसफिट
चीफ़ जस्टिस डी. वाई. सूर्यकांत और जस्टिस जॉयमाल्या बागची की पीठ ने अधिकारी को झगड़ालू, अहंकारी और इंडियन आर्मी के लिए मिसफिट बताया। पीठ ने कहा कि एक सैनिक या अधिकारी अपनी निजी धार्मिक व्याख्या को सेना की एकता और अनुशासन से ऊपर नहीं रख सकता। अदालत ने ये भी कहा कि यह घोर अनुशासनहीनता है। ऐसे व्यक्ति को तो तुरंत हटाया जाना चाहिए था।
2017 में भर्ती हुआ और 2021 में बर्खास्त
अधिकारी सैमुअल कमलेसन 2017 में 3rd कैवेलरी रेजिमेंट में लेफ्टिनेंट के तौर पर भर्ती हुए थे। रेजिमेंट के तीन स्क्वाड्रन सिख, जाट और राजपूत में वह ‘बी स्क्वाड्रन’ के ट्रूप लीडर थे, जहाँ ज़्यादातर सैनिक सिख थे।
2021 में उन्हें इसलिए सेवा से हटाया गया क्योंकि वे कई बार आदेश मिलने के बावजूद सर्व धर्म स्थल के गर्भगृह में प्रवेश नहीं कर रहे थे। कमांडिंग ऑफिसर ने उन्हें आदेश दिया था और एक पादरी ने भी बताया था कि इससे उनके धर्म का उल्लंघन नहीं होता, फिर भी उन्होंने माना नहीं।
दिल्ली हाई कोर्ट ने भी कहा था कानूनी आदेश से ऊपर धर्म नहीं
मई 2024 में दिल्ली हाई कोर्ट ने सेना के फैसले को सही ठहराते हुए कहा था कि अधिकारी ने अपने धर्म को वरिष्ठ के कानूनी आदेश से ऊपर रखा, जो अनुशासनहीनता है।
अब सुप्रीम कोर्ट ने भी यही बात दोहराई।
जस्टिस बागची ने कहा कि जब आपका पास्टर ही सलाह दे दे, फिर भी आप अपनी निजी समझ को सबसे ऊपर रखें यह सेना के लिए स्वीकार्य नहीं।
सिख, जाट और राजपूत सैनिकों का अपमान
अधिकारी के वकील गोपाल शंकरनारायणन ने दलील दी कि उनके मुवक्किल की एकेश्वरवादी आस्था (monotheism) उन्हें ऐसे स्थल के गर्भगृह में जाने की अनुमति नहीं देती जहाँ गुरुद्वारा और मंदिर दोनों हों। इस पर पीठ ने इस तर्क को पूरी तरह ख़ारिज करते हुए कहा कि आपके अधीन सिख, जाट और राजपूत सैनिक हैं। वे गुरुद्वारे में हैं और आप गर्भगृह में जाने से इंकार करते रहे यह उनके विश्वास का भी अपमान है।
पीठ ने यह भी कहा कि अधिकारी का रवैया अपमानजनक और असहनीय था।
संविधान का हवाला भी नहीं चला
अधिकारी की ओर से यह भी तर्क दिया गया कि संविधान व्यक्ति को अपने धर्म का पालन करने और दूसरे धर्म की रस्मों में शामिल न होने का अधिकार देता है।
वकील ने बताया कि अधिकारी होली-दीवाली जैसे मौकों पर शामिल होते रहे, सिर्फ गर्भगृह में प्रवेश को लेकर आपत्ति थी।
लेकिन कोर्ट ने कहा कि यह आपके धर्म का मूल तत्व नहीं था। आपके पादरी ने भी यही कहा। आप अपनी निजी धार्मिक समझ को सेना के अनुशासन से ऊपर नहीं रख सकते।
याचिका खारिज - ‘बिल्कुल मिसफिट’
पीठ ने अंत में कहा कि हो सकता है वे कई मामलों में अच्छे अधिकारी हों, पर भारतीय सेना के लिए वे एकदम मिसफिट हैं, पूरी तरह मिसफिट।
इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली हाई कोर्ट के 30 मई के आदेश में दखल देने से इनकार किया और याचिका को पूरी तरह खारिज कर दिया।