शशि थरूर की कलम और कांग्रेस का दर्द, नेतृत्व पर सवाल खड़े
शशि थरूर की आपातकाल आलोचना और मोदी की तारीफ पर कांग्रेस में सवाल उठे। पार्टी नेताओं ने उनके रुख पर नाराज़गी जताई, केरल में महत्वाकांक्षा भी चर्चा में।;
कांग्रेस नेता शशि थरूर की आपातकाल को लेकर की गई आलोचना के बाद एक बार फिर पार्टी के भीतर से उनकी मंशा और राजनीतिक दिशा को लेकर सवाल उठने लगे हैं। कांग्रेस के ही वरिष्ठ नेताओं ने उन पर भाजपा की भाषा बोलने का आरोप लगाया है, वहीं कुछ नेताओं ने उन्हें पार्टी चुनने की सलाह दी है।
शशि थरूर ने मलयालम अख़बार दीपिका में लिखे एक लेख में 1975 में इंदिरा गांधी द्वारा लगाए गए आपातकाल को भारतीय लोकतंत्र का काला अध्याय बताया था। उन्होंने विशेष रूप से उस दौर में गरीबों और ग्रामीण इलाकों में जबरन नसबंदी अभियानों का ज़िक्र किया, जिन्हें संजय गांधी द्वारा संचालित बताया गया। थरूर ने इसे अनुशासन के नाम पर की गई क्रूरता करार दिया था। थरूर ने लिखा कि कैसे देश ने 1977 में इंदिरा गांधी को भारी बहुमत से हराकर उस अतिरेक का जवाब दिया। कांग्रेस नेता राहुल गांधी पहले ही सार्वजनिक रूप से आपातकाल को एक गलती बता चुके हैं।
पार्टी के भीतर से उठे सवाल
थरूर की टिप्पणी के बाद कांग्रेस सांसद मणिकम टैगोर ने इशारों में उन पर हमला बोलते हुए X (पूर्व ट्विटर) पर लिखा,जब कोई सहयोगी बीजेपी की बातों को हूबहू दोहराने लगे, तो संदेह होता है — क्या पक्षी तोता बन गया है? मिमिक्री पक्षियों में ठीक है, राजनीति में नहीं।
केरल से कांग्रेस के वरिष्ठ नेता के. मुरलीधरन ने थरूर पर और अधिक खुलकर निशाना साधते हुए कहा कि उन्हें पहले यह तय करना चाहिए कि वह किस पार्टी में हैं। यह टिप्पणी थरूर द्वारा साझा किए गए एक प्राइवेट सर्वे के बाद आई, जिसमें उन्हें केरल में मुख्यमंत्री पद के लिए सबसे पसंदीदा चेहरा बताया गया था। थरूर केरल से चार बार सांसद रह चुके हैं और 2026 में राज्य विधानसभा चुनाव प्रस्तावित हैं।
बीजेपी का कांग्रेस पर पलटवार
भाजपा ने थरूर की टिप्पणी को कांग्रेस की आंतरिक सोच से जोड़ते हुए कहा कि पार्टी आज भी वही मानसिकता रखती है जिसने आपातकाल थोपा था।भाजपा प्रवक्ता सुधांशु त्रिवेदी ने चुनाव आयोग की बिहार में वोटर लिस्ट रिवीजन के खिलाफ राहुल गांधी के प्रदर्शन को भी इसका उदाहरण बताते हुए कहा कि कांग्रेस को लगता है कि संवैधानिक संस्थाएं केवल तब तक वैध हैं जब तक वे उन्हें चुनाव जितवाएं। त्रिवेदी ने यह भी कहा कि कांग्रेस को 50 साल बाद भी आपातकाल की सच्चाई समझ में आई, लेकिन पार्टी अब भी उस मानसिकता को समर्थन देती है।
मोदी की विदेश नीति और RSS पर रुख
यह पहला मौका नहीं जब थरूर कांग्रेस के भीतर निशाने पर आए हों। इससे पहले भी वह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की विदेश नीति की सराहना कर चुके हैं, जिससे कांग्रेस नेतृत्व असहज रहा है।इसके अलावा उन्होंने संघ (RSS) पर भी अपेक्षाकृत संयमित रुख अपनाया है, जबकि राहुल गांधी अक्सर संघ पर तीखे हमले करते हैं।
हाल ही में पाकिस्तान के साथ सीमा तनाव के बाद भारत की स्थिति को अंतरराष्ट्रीय मंचों पर स्पष्ट करने के लिए केंद्र सरकार ने 'ऑपरेशन सिंदूर' नामक कूटनीतिक अभियान शुरू किया था। इसमें थरूर को एक प्रतिनिधिमंडल का हिस्सा बनाया गया, जिस पर कांग्रेस ने यह कहते हुए आपत्ति जताई कि उनसे पूर्व अनुमति नहीं ली गई थी।
कांग्रेस अध्यक्ष पद की दौड़ और गांधी परिवार से दूरी
थरूर ने 2022 में कांग्रेस अध्यक्ष पद का चुनाव लड़ा था, लेकिन गांधी परिवार के समर्थन वाले उम्मीदवार मल्लिकार्जुन खड़गे से हार गए थे। इस चुनाव ने भी थरूर की पार्टी के भीतर स्थिति को लेकर अटकलें तेज कर दी थीं। शशि थरूर की स्वतंत्र और मुखर टिप्पणियों ने उन्हें एक तरफ भाजपा की सराहना और विदेश नीति में भूमिका दिलाई है, तो दूसरी तरफ कांग्रेस के भीतर संदेह और आलोचना का कारण भी बना दिया है। उनकी हालिया टिप्पणी ने न केवल आपातकाल की स्मृतियों को ताजा किया है, बल्कि कांग्रेस की एकता और वैचारिक स्पष्टता पर भी सवाल खड़े कर दिए हैं।