राज्यों को कैसे मिलता है विशेष दर्जा? जानें नियम
जेडीयू और टीडीपी पिछले लंबे समय से विशेष दर्जा अनुदान या विशेष पैकेज की मांग कर रहे हैं. ऐसे में आइए जानते हैं कि किसी राज्य को विशेष श्रेणी का दर्जा दिए जाने के क्या नियम हैं?
Special Category Status States: नीतीश कुमार के नेतृत्व वाली जनता दल यूनाइटेड (जेडीयू) ने शनिवार को एक बार फिर राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में एक प्रस्ताव पारित करके बिहार को विशेष दर्जा अनुदान या विशेष पैकेज की अपनी लंबे समय से चली आ रही मांग को आगे बढ़ाने का संकल्प लिया. ऐसे में आइए जानते हैं कि किसी राज्य को विशेष श्रेणी का दर्जा दिए जाने के क्या नियम हैं?
विशेष श्रेणी का वर्गीकरण 1969 में पांचवें वित्त आयोग की सिफारिशों पर पेश किया गया था. इसका उद्देश्य भौगोलिक और सामाजिक-आर्थिक चुनौतियों का सामना कर रहे राज्यों को अतिरिक्त वित्तीय सहायता और अन्य लाभ प्रदान करके उनका विकास करना है. यह अवधारणा समाजविज्ञानी धनंजय रामचंद्र गाडगिल के दिमाग की उपज थी, जो योजना आयोग (अब नीति आयोग) के उपाध्यक्ष थे, जिन्होंने योजना आयोग की तीसरी पंचवर्षीय योजना तैयार की थी.
गाडगिल फॉर्मूले के अनुसार, विशेष श्रेणी का दर्जा तब दिया जाता है, जब किसी राज्य में कुछ विशेषताएं हों. जैसे पहाड़ी और कठिन भूभाग, कम जनसंख्या घनत्व या महत्वपूर्ण आदिवासी आबादी, सीमाओं के पार रणनीतिक स्थान, आर्थिक और ढांचागत पिछड़ापन और राज्य के वित्त की अव्यवहार्य प्रकृति आदि.
इन राज्यों को विशेष राज्य का दर्जा प्राप्त
योजना आयोग की राष्ट्रीय विकास परिषद योजना सहायता के लिए 11 राज्यों को विशेष दर्जा दे चुकी है. ये राज्य असम, नागालैंड, हिमाचल प्रदेश, मणिपुर, मेघालय, सिक्किम, त्रिपुरा, अरुणाचल प्रदेश, मिजोरम, उत्तराखंड और तेलंगाना हैं. भारत के सबसे नए राज्य तेलंगाना को आंध्र प्रदेश से अलग होने के बाद यह दर्जा दिया गया था. हालांकि, 14वें वित्त आयोग ने पूर्वोत्तर और तीन पहाड़ी राज्यों को छोड़कर अन्य राज्यों के लिए 'विशेष श्रेणी का दर्जा' समाप्त कर दिया है. आयोग ने टैक्स को 32% से बढ़ाकर 42% करके इन राज्यों के संसाधन अंतर को पाटने का प्रस्ताव दिया है.
वहीं, भाजपा के गठबंधन सहयोगी, तेलुगु देशम पार्टी (टीडीपी) और जनता दल (यूनाइटेड) (जेडी(यू)) अपने-अपने राज्यों के लिए विशेष श्रेणी के दर्जे की मांग कर रहे हैं. यह दोनों दलों के लिए लंबे समय से एक मुद्दा रहा है, जिन्होंने केंद्र सरकार से इस मान्यता के लिए लगातार दबाव डाला है. आंध्र प्रदेश में स्थित टीडीपी ने तर्क दिया है कि साल 2014 में विभाजन के बाद आर्थिक और विकास संबंधी चुनौतियों के कारण राज्य को विशेष श्रेणी का दर्जा मिलना चाहिए.