आखिर केरल को क्यों झेलनी पड़ेगी डोनाल्ड ट्रंप के लगाए 50% टैरिफ की मार?

केरल प्रदेश आकार में भले ही छोटा हो, लेकिन इसका वैश्विक प्रभाव काफ़ी बड़ा है, जिसमें ₹5,000 करोड़ से अधिक दांव पर लगे हैं।;

Update: 2025-08-09 14:31 GMT
केरल से अमेरिका और अन्य देशों को विभिन्न प्रकार के मसाले निर्यात किए जा रहे हैं। (प्रतीकात्मक तस्वीर)

"ट्रंप का दुश्मन होना बेहतर है या दोस्त?", ये सवाल केरल के पूर्व वित्त मंत्री डॉ. थॉमस आइजक ने एक तीखे फ़ेसबुक पोस्ट में उठाया। वे लिखते हैं, "चीन अमेरिका का नंबर वन दुश्मन है, भारत दोस्त माना जाता है। लेकिन टैक्स तो हम पर ज़्यादा लगाया जा रहा है।"

केरल के लिए आर्थिक आपदा

अर्थशास्त्री-राजनेता डॉ. आइजक के ये शब्द विडंबना और गुस्से दोनों को दर्शाते हैं। उन्होंने खुलासा किया कि ट्रंप प्रशासन ने भारतीय वस्तुओं पर टैरिफ़ बढ़ाकर 50% कर दिया है, जो रूसी तेल आयात पर कार्रवाई के बहाने लागू किया जा रहा है। केरल के लिए, जिसकी अर्थव्यवस्था गहरे जमे हुए निर्यात क्षेत्रों पर निर्भर है, यह कदम आर्थिक आपदा साबित हो सकता है।

केरल भले छोटा राज्य है, लेकिन इसकी वैश्विक पहचान मज़बूत है—इडुक्की और अन्य ऊँचाई वाले इलाकों की काली मिर्च और इलायची, बागानों की हल्दी और जायफल, कुटीर उद्योगों की काजू और नारियल जटा, पहाड़ियों की चाय, और समुद्री तटों की समुद्री मछलियाँ। मिलाकर, अमेरिका को होने वाला निर्यात सालाना लगभग ₹5,300 करोड़ का है। इनमें मसाले अकेले ₹2,900 करोड़ के हैं, समुद्री खाद्य ₹1,080 करोड़, पारंपरिक उद्योग (काजू, नारियल जटा, दालें) ₹1,080 करोड़, और चाय व कॉफ़ी ₹250 करोड़ का योगदान देते हैं।

कीमत गिरने का खतरा

डॉ. आइजक का कहना है कि भले ही कुछ वस्तुएँ वैकल्पिक बाज़ार ढूँढ लें या घरेलू बाज़ार में बिकें, लेकिन कीमत में भारी गिरावट पूरी उत्पादन श्रृंखला और आजीविका को तोड़ सकती है। "यह दाम गिरना सिर्फ़ निर्यात हिस्सेदारी को नहीं बल्कि पूरी उत्पादन प्रणाली को प्रभावित करेगा। इससे होने वाला राष्ट्रीय आय का नुकसान इस समय अनुमान से बाहर है," उन्होंने कहा।

इतिहास दोहराने का डर

इसके पीछे एक डरावना ऐतिहासिक संदर्भ भी है। केरल का कृषि क्षेत्र, जो कभी 5% सालाना की दर से बढ़ता था, ASEAN व्यापार समझौते के बाद सस्ते आयात से पटरी से उतर गया था। रबर, नारियल और अन्य बागान फ़सलें बुरी तरह प्रभावित हुईं। अब वही उद्योग, जो निर्यात पर टिके रहकर बचे थे, फिर से संकट का सामना कर रहे हैं।

सेवा क्षेत्र पर असर

केरल की सेवा अर्थव्यवस्था, जो इसकी आधुनिक वृद्धि का आधार है, भी संवेदनशील है। पर्यटन, कृषि और सहायक क्षेत्रों से मिलने वाली आय पर फलता-फूलता है। यदि किसान और छोटे उत्पादक की आमदनी घटती है, तो परिवहन, खुदरा और आतिथ्य जैसे क्षेत्रों में भी खपत कम हो जाएगी।

रुपये की गिरावट का डर

यह असर सिर्फ़ केरल तक सीमित नहीं रहेगा। भारत के विदेशी मुद्रा भंडार पर दबाव पड़ेगा और रुपया और गिर सकता है। जनवरी में ₹83.12 से 7 अगस्त तक ₹87.70 तक पहुँच चुका रुपया, नवंबर तक ₹95 पर जा सकता है अगर टैरिफ़ बरकरार रहे। इससे ईंधन, मशीनरी और ज़रूरी सामान महंगे होंगे।

सरकार की चेतावनी

मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन ने इस पर गंभीर चिंता जताते हुए इसे "वैश्विक व्यापार सिद्धांतों का खुला उल्लंघन" कहा और चेताया कि यह केरल के समुद्री खाद्य, मसाले, चाय और नारियल जटा जैसे प्रमुख निर्यातों को बर्बाद कर देगा। वित्त मंत्री केएन बालगोपाल ने भी कहा कि यह टैरिफ़ युद्ध कोविड से भी बदतर असर डाल सकता है।

उन्होंने चेताया कि ऑस्ट्रेलिया जैसे विकसित देशों से सस्ते आयात (जैसे ₹30 प्रति लीटर दूध) स्थानीय उत्पादकों को बर्बाद कर सकते हैं। साथ ही उन्होंने केरल के कर्ज़ को लेकर सोशल मीडिया में फैलाई जा रही ₹6 लाख करोड़ की अफ़वाह को खारिज किया और असल अनुमान ₹4.7 लाख करोड़ बताया।

कड़ियाँ जुड़ना और असर फैलना

केरल की आर्थिक संरचना ऐसी है कि ज़रा-सा झटका भी कई क्षेत्रों में असर डाल देता है। मसाले की कीमत गिरने से किसान के साथ मज़दूर, व्यापारी, परिवहन कर्मी और खुदरा बाज़ार सब प्रभावित होते हैं। समुद्री खाद्य उद्योग भी पहले से गिरावट में है—2023-24 में समुद्री निर्यात 10% मात्रा और 12.7% मूल्य में घटकर ₹7,231.84 करोड़ रह गया।

भविष्य की चुनौती

डॉ. आइजक का मानना है कि केरल अकेले खड़ा नहीं रह सकता। वे ब्राज़ील की तरह भारत को विकासशील अर्थव्यवस्थाओं की रक्षा के लिए नेतृत्व करने की अपील करते हैं। उनका कहना है, "गुटनिरपेक्ष आंदोलन की विरासत दाँव पर है। असंतुलित व्यापार नीतियों से बचने के लिए वैश्विक एकजुटता और रणनीतिक कूटनीति ही ढाल बन सकती है।"

कई अर्थशास्त्रियों और नीति-निर्माताओं का मानना है कि ये टैरिफ़ सिर्फ़ एक आर्थिक झटका नहीं, बल्कि केरल की पहचान के लिए चुनौती है—किसान से लेकर मछुआरे तक, बागान मज़दूर से लेकर दुकानदार तक, सबकी रोज़ी-रोटी इस नाज़ुक आर्थिक संतुलन पर टिकी है। अगर इसे नहीं रोका गया, तो इसका असर सिर्फ़ मंदी तक सीमित नहीं रहेगा, बल्कि सदियों पुराने धंधों और परंपराओं को मिटा सकता है।

Tags:    

Similar News